पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१५९

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अति परमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश ( अ ) १४५ अति परमाणु विद्युत्कण कि इन पदार्थों में से खासकर वही पदार्थ दिखाई दो अर्थ हो सकते हैं-(१) जिस प्रकाशमें रेडि- पड़ते हैं जिनके परमाणु वज़नी होते है। यम जलता है उस प्रकाशका ही विच्छिन्न-किरण तीव्र किरण विसर्जन शक्ति-वाले रद रेडियम) पट । (२) रेडियमसे निकलने वाले प्रकाशका तथा पोल (पोलोनियम ) आदि पदार्थों में से जो विच्छिन्नकिरणपट । यदि दूसरे प्रकारका विछिन्न- 'अ' किरण निकलती है उनका जशदगंधकिदसे किरणपट देखा जाय तो यह पता चलता है कि श्राघात होता है जिससे प्रकाशित किरणे निकलने वह नत्रवायु ( Nitrogen) का है। इससे यह लगती हैं। ये किरणे किंचित् बड़ी की जाने पर सिद्ध होता है कि रेडियम यदि वायुमें रहे तो दिखाई देने लमती है। अथवा इस क्षार स्फटिक नत्र पर बहुत धक्के बैठते हैं। रेडियमका जो खयं पर इसका प्रयोग करनेसे भी उनमें से किरणे प्रकाश है वह दूसरी वस्तु पर होने वाले उसके निकलने लगती हैं। परिणामके कारण है। यदि सादा शीशा रेडियम कुछ ऐसे परिवर्तन भी होते हैं जो किरण रूप की किरण पर रक्खा जाय तो वह काला हो में नहीं होते, इस कारण परमाणुका वजन नहीं जावेगा। बदलता। बल्कि जव जव 'अ' किरण विक्षेपण विद्युदर्शककी सहायतासे रेडियम धातुका होता हो तब तब सौर (हेलियम ) वायुके पर- पता बहुत ही सूक्ष्म भेदग्राही रीतिसे लगाया माणुके वजनके प्रमाणसे इसका वजन कम होना जाता है। रेडियमकी किरण विसर्जन क्रियाकी चाहिये । राँटज़न किरणोंके साथ सर्वदा विदय- अपेक्षा जो अधिक विद्युदरवी-भवनकी शक्ति है कण रहते हैं। ये सब निकले हुए पदार्थ वायुरूप उसका उसमें उपयोग होता है। प्रत्येक 'अ' में या उसके सदृश होते हैं और शेष ( Solid किरणकण अपनी गति-रोध होनेके पूर्व हजारों Deposit) घन निक्षेप रूपमें होते हैं। ये निसृत विद्युदणु उत्पन्न करता है। इसी सूक्ष्म ग्राह- द्रव्य उसी स्थान पर जमा होकर रहते हैं और ये कताका विद्युद्भारित विदयुद्दर्शक यह दर्शाता है जिस पदार्थ पर जमा रहते हैं उसकी किरण-विस- कि उसके विदयुन्नाशके योगसे कितनी विद्युएवी- र्जन क्रिया पूर्वसे भी अधिक होने लगती है. भवन क्रिया होती है किन्तु एक मिलीग्रॉम रेडियम क्योंकि ये निसृत द्रव्य मूल द्रव्यकी अपेक्षा तीव्र से प्रत्येक सेकेण्डमें इस प्रकारके कोटिशः कण क्रिया-कारक होते हैं। रेडियम परसे निसृत द्रव्य निकलते हैं। शून्यांशके नीचे १५० का शके समय द्रवरूपमै (१८) विद्युद्विषयक उत्पत्ति-डब्ल्यू० बीन नामक आते हैं। | विज्ञानवेत्ताने यह पता लगाया है कि यह शक्ति __ जिस समय 'अ' किरण का लोहचुम्बकीय | किरणसे निकलती है। तथा 'अ' और 'ब' किरण क्षेत्रमें प्रवेश किया जाता है उस समय अपने मार्ग परमाणुओंकी अलग अलग भेदक शक्तिसे लाभ से वे किञ्चित वक्र हो जाते हैं। इससे यह पता उठाकर एक प्रकारकी किरणोंको छोड़ते जाते हैं चलता है कि उनके ऊपरका विद्युत्भार धन है। और दूसरी प्रकारकी किरणोंको एकत्रित करते रूडर फोर्ड तथा बक्करल श्रादि विज्ञान वेत्ताओका जाते हैं। स्ट्रटने एक ऐसा नवीन यन्त्र तय्यार मत ऐसा ही था। किन्तु थोड़े दिन हुए सॉडी किया है कि जिससे पता चलता है कि किस प्रकार नामक विज्ञान वेत्ताने यह शंका की कि यह धन | ले विद्युत् उत्पन्न होती है। उसने शीशेकी एक विद्युत्भार मूल का नहीं हैं बल्कि वायुके विद्- छोटी नली लेकर उसके बाहरके पार्श्वको विदयुत्प्र- युदरावी भवनसे बीचमें ही आया होगा क्यों कि वाही किया और उसने सुवर्ण पत्र लगाया। तब यदि निर्वात् स्थान ठीक रीतिसे बनाया गया हो उसने नलीमें रेडियमका क्षार रख कर विद्युत्म- तो किरणोंके अङ्ग में बक्रता नहीं आती। इससे वाही पदार्थोंसे उसका सम्बन्ध तोड़ कर उसने यह सिद्ध कर दिखाया कि मूलारम्भमें उनके अंगों उसके चारो तरफ निर्वात प्रदेश स्थापित किया। में किसी प्रकारका विद्युद्भार नहीं होता। इस | रेडियमसे धन तथा ऋण दोनों ही कण समान प्रकारके दो प्रयोग करके उसने यह सिद्ध कर प्रमाणमें निकलते हैं, किन्तु ऋण कण छोटे तथा दिया था। इसी भाँति उसने यह भी दिखाया है भेदक होते हैं। इसी कारण वे शीघ्र निकल जाते कि रेडियम धातुकी किरण-विसर्जक प्रत्येक उष्ण हैं और धन उसी प्रकार बढ़ते जाते हैं। इस मानताके समय समान रहती है। कारण सुवर्ण-पत्र पर विद्युत्भार जमा हो जाता (१७) रेडियम धातुके योगसे दिखलाई देने वाला वि- है। इससे यह सिद्ध होता है कि किरण विसर्जन च्छिन्न किरणपट-रेडियमके विच्छिन्नकिरणपटके से विद्युत्का उत्पादन होता है। यह बात १६