पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१६

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अकबर

मदनगर शहर अज्जारफे हाथ अप्ताथा 1 किद्वाभी वह " अहब्रव्रनगरअ सारा राज्य न ले सका । अनेक । राजंवीतिशौने निदृत्मशाहींका तरुन दूसरी जगह ५ से जाकर वहाँ कुछ दिनों तक राज्य क्रिया । । तत्पभ्रात् ब्रकारने सारा खानदैश अपने अधि । कारमैं फर लिया । उसने बरार ओर खानदेश का " ग्नासघ-प्रर्वघ अपने पौधे लड़के दानिपालर्का सौपा । इसके मादसन् १६०१ ई० मै बाहु आगरे . को लोट आया ।

अकबर का अन्तिम काल अन्यन्म कपृके साथ ' बीता । उसके संवंधिर्योंमें से नथा मित्र मंडलीमै ले पद्रुतसे लोया एकाएक काके मर गये, जिससे ' उसे पदुत्तदुद्रक्ष दुआ' । सबने भी उसे दुद्रख दिया । यह वियोहीं ओर कोणी था । दूजी ससीमका शिक्षक था, परन्तु उन दोर्वामै वजनी । न यौ। सलीम दुष्ट प्रकृतिक, मनुष्य था । वह अपनी दादीफा भी अपमान कस्ता था । इलाहा- डादृमै सखीब्रने अपने ब्रापके नियुक्त किये हुए _ साबारिर्षोंकौ निकाल कर अपने कपम्पात्रोंर्का ३ नियुक्त किया । हखकैसिवा वह चिहारप्रान्तकौ । धतूलीका रुपया अपने पास रख करु बहीं खसंत्र ३ रुपसेशासन करनेलगा था । इसके षादजधअनुख- फक्त पक्सिफी खड़ाईसे लक्ष रहा था, आने ओदृर्वाहै राजासे उसका लून करवा डालर । इस । भर्यप्रार अपराधके सिये भी अकव्ररने सलीमको ५ कविन खुबा न दी । इससे इतिहासवेत्ता अनुमान . रुत्मातै है कि अकबर' द्भुदगअत्यन्त हुर्वब्लाहोंअथश्चा था । परन्तु ष्टगसिसनका कहना है कि अशारब्रने ' अन्त तक यह भालूहां न हुआ कि अबुखकृझुखके खूनमे सलीमका भी हाथ था ।

व्रफवरकोंसड़कौसे कुछभी सुखन मिला । ५ प्रयात: उसेर्दा जोंढमाँ पुष द्वार, परन्तु वे बचपन हींमैंभरगथे । उसका तीसरा लड़का ससीम, चौथा दानियाल र्भार षमैचवाँ मुराद था । द्दनयेंसे दानिग्राक्ष बुद्धिमान था, और हित्वंर्मिकविखाय . मीकिंयां करता था । अपने दो भारथोंकी त्ताठेदृ वह भी शराबी था । धीडेदी दिन पहिहा दक्षिणकौ ' तडाईर्में डाब्जापै मुरादकौ मृत्यु हुई । सन् । १६०५1 ईख मैं प्रकारका प्यारा बेटा गोपाल भी । इसी कारण पर गया । इसपर अकबर पागलसा । होगया और बुरी तरह बीमार पढ़ गया । शीधही ; १५ डामृतृड्डार ९१२ १६०५ ईष्टर्का आयारेयें शकषरुकौ मृत्यु हो गई । जिस समय वह बीमार था, उसी ३ समयहूँरु राशगहाँके सिये झगहै होने लगे । किन्तु । अन्तम अकाखे निक्लि किया कि तलीमदी महीं ।

दृद्देश्लोश ( अ ) ६

अफवा'

पर बैठे 1 अकबर धर्मके नंदन्धरैरै यदुनहीँ उदार अरी म्नथापिं उसके समय उठाने इभद्वाभ धर्यकौ शाखों। का पालन किया । बोल-बीका बुलाक? उससे कलमा पढ़वाया ओप' उसे, साथ साथ स्वयं भी पढ़। ।

स्वभाघ-बर्णनड्डेअक्रबस्का शरीर र्माटा ओ? कैपा गोरा था : उसका त्माद्रट चौडा नथा मेहरा तेजस्वी था । यह साइगीसे महना थार्थाष' प्रनेक्र काम नियमपूर्वक करना था । यह सदा किसी न किसी कामये लगा तना था । बज बहुत कम सोना था । अकाय’ ग्राल्यावस्थासिं बघुन ग्याना था. पकेंनु धीरे धीरे वह पदुन्यारी थिनझागे थन गया । अबुखफज़लका कहना कि यद्द 'झाडी वक्त माना खाना था र्थश्य उनका ध्यान पदार्थोंकी अं।" नहीं अनंग था । आधिक में उसने भयेंप्त मत्मा भी छोड़ दिया है यह बहुधा उपवास भी फग्ना था । कभी कभी यह मद्य. अफीम औ? गाँज्ञेका मेयन भी

३ काचा था है अकबर बड़। मदृवर्शालच्वग श्रेश्य साथ

की उसे स्थान परियम क्रालेकौ आदत श्री 1 कहने है कि यह मोडेना’ चैक्योंम धदृइठेमै २५० मीलफी दुर्ग नय काना था । मदनि खेल उसे पनुन अच्छे लगते थे । शिफाचंपै उसे गड़। अनिच्चा मिलना था । उसने अपनी यन्दुर्ण१के मिल भिन्न नाम ग्धनद्दे। थे और यह निश्चिन कर पश्चा था पित्वंमका उप- योग कब करना चाहिये । यह बढा प्रतिभाशाली था ओर उसे यमैविफ कला बहुत अच्छपै लगनी थी । उसने अपनी वुद्धिसे वदुत्तसो युनिमाँनिफाती यों । बह नये प्रयोग तथा नये नये पदार्थ नैथार

" काना चाहना था । फिक्र भी यह वान नहीं है कि

उसके सभी प्रयाग त्रुद्धिमत्तापृहुँएँ दुआ करने ये । उसने यह बान देम्ल्लेके सिय, क्रि भबुणका स्वभाविक धर्म र्कानसा कुछ नन्हें-न-नी पशैयेकं। एक-साथ वैद कर श्यामा आठ' ऐसी व्यवस्था कर दो कि काई उनसे तोलने न पाये । जब चार वर्ष वाद यश बाहर निकाले गार नो मालूम दुआकिं थे गूँगे होगये । उसने र्गगाकेउदुब्राम का पता लगाया । उसे चिघकखाका भी र्शाक था । उसने कलाओं बढाया र्धस्म उसका ग्रदुन कुछ सुधार कराया । अकबर का गाने का भी शाक था । …पश्ले पहल हिन्दुस्नानमै तय्याकू उसीके सप्रययआपी । उसने स्वयं भोउसका प्रयाग किया । उसने हिन्दुओंका प्रसन्न रस्रनेके लिये बहुत से काम किये । हिन्दुओकौ उन प्रथाच्चोंर्का जा कि उसे अच्छी नहीं जैनों उसने पद कर दिया । उसने यालयिथाह. पशु-यज्ञ आहि बन्द कामु हिये