पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१६१

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रहती है। एक की जगह दूसरा ही पदाथ्र वनता है। अथवा पहिला ही दुसरे रूपमे दिखाई पडता है। इन सबके होनेके समय किरएविसर्जनक्रया से ही यह होता है।

     परमाएओकी अस्थिरताके विपयमें लाजकामत्ः-परमारगुके आसपास परमारगु बाहा नामका जो विदयुत्कए घूमता है उसकी शत्तिका हास किरए विसर्जन क्रियाके कारए होता है और धीरे २ परमाएकी ओर वह खिंचता जाता है और उसकी गति बदने पर उसका कार्यक्षम जडत्व भी बदने लगते है और फिर मध्या-भिगामी शात्तिके योग से उसे अपनी कक्षामें रखना कटिन हो जाता है। यह शत्ति विदयुदाकष्र पर ही अवलँम्बित है गति पर नही। अत्ः जैसे जैसे गति बदेगी वैसेही वह कम होगा। अंतमें एक एसा समय आवेजा कि विदयुदाकष्रे इस किरएके गोलेको अधिकार में रखने के लिए पयाप्त नही होता और फिर वह वर्तमान गतिसे दूर हो जाने का प्रयत्न करता है। इस प्र्कार दूर हो जाने से उसको अधिकार में रखने वाली विदयुदाकषए वेगकम होने लगता है किन्तु उसका मध्योत्सारी वेग कायम ही रहती है। इस प्रकारकी स्पधाले समतोलता नष्ट होती है और वह कए स्वत्ः के गतिचक्र्के स्पर्श रेखाकी और परमाएसे दुर निकल जाता है। और इस भाँति एक नयी प्रकार की किरएविसर्जन क्रियाका आर्ंभ होने लगता है। इसका बेक्बेरल नामक विशावेत्ता ने पता लगाया था। दो एक सहसा उत्सर्जन होनेसे ईथरमें एक प्रकार्की लहर उत्पन्न होती है।
        परमाए तथा अतिपरमाए विघुत्कए के आकारमें बहुत भिन्नता है। यदि अति परमाए विघुत्कए एक कागे समान माना जाय और एक परमाणुमें वे हजार माने जाय तो उस परमाएका आकार खुले अवकाश्में करीय लगभग १०० घन फीट होजा। एसा होना पर भी उसी अति होता है। इसिसे उसके कक्षामें जो इसका संयोग होता है।
        अति-परमाए-विघुतकएके गुएधर्म पर विचार करके उसके विषयमें कुछ नित्र्चित मत कर लेना युत्ति स्ंगत नही होगा क्योकि धन विघुत भागसे इतनी क्यो ब्ंधी हुई होना चाहिए और मात्र इतनी स्वतन्त्रतासे क्यों घूमने चाहिए। किन्तु धन बिना भीभाँति होता है। लारमूर नामक विशानवेत्ता कह्ता है कि धन शीशेमें पडा हुआ है।
      अब तक विबय में जो कुछ मालूम है, उस पर विचार करनेसे समान इनका स्वत्ंत्र अस्तित्वका नहीं पता लगता किन्तु