पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१६५

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इत्यादि भि लिखना छोड दी। उनका सबसे प्रसिध्द ग्र्ंत "म्ंतिक-श्रतार" हें। इसमे उन्होंने श्रात्मा का प्राप्त करने के उपाय तथा लाभ भली- भाँति दर्शायें हें। अत्यग्रिष्टोय-सप्त सोमसंस्थाश्रों में से एक याग करना पडता हें। इस में के सब कर्म श्रग्निष्टोम के समा नहीं करने पडते हें। इस मे यह विशेषता हें कि श्रग्निष्टोम में सुत्याके श्रन्तिम दिन को बारह शास्त्रओं श्ंसन और बारह स्तोत्रओं का गान होता हें किन्तु श्रत्यग्रिष्टोम में इनकी स्ंस्या तेरह होती हें। आज कल ये सप्त-सोम स्ंहथा (याग) अलग अलग कोई नही करता। अग्निष्टोम के बाद अंतिम सोमस्ंस्था जिसे 'सर्व प्रष्ट नामक'याग कहते हें और उस में सत्यग्निष्तोम, उक्थ्य, षोडशी, अतिरात्र,वाजपय आदि का समावेश किय जाता हें। इसका उल्लेख स्ंहिता ग्र्ंत में नही मिलता। अत्राफ- यह हैदराबद के छारों तरफ के स्थान को कहते हें। यह हैदराबद रियासत के कई छोटे छोटे गाँव तथा कस्बों को मिलाकर बना हें। इसका अधिकांश भाग पहाडि हें। मुशी तथा माँजरा नदियाँ इस जिले से होकर बहती है। संरक्षित जंगलों मे चीता, लक्ष्रर, भालू तथा कभी कभी बाघ भी मिल जाती है। यहाँ पर तालाब तथा भूरने बहुत है। अक्तूबर से मार्च तक का मौसम अच्छा तथा स्वास्थकर रहता है। यहाँ वार्षिक व्रुष्टिकी ११५० ई० से १३२५ ई० तक वारगंल काकतीय राजाऔं के अधैकार में था। किन्तु दक्षिण मुसल्मानों के हाथ में आने पर यह भी उन्ही के हाथ में आ गया। ब्राह्मी वंशके समय में तेल्ंगा के सूबेधार मुहम्म्द्शाहने स्वंत-त्रता की घोष कर कर दी और १५१२ इ० में 'सुलतान कुली कुतुबशाह' की पदवी धारण की। औरंगजेब ने यहजिला कुतुबव्ंशीय राजाओं से छीन कर देहली के आधीन कर लिया था। तद्न्तर शवी शतान्दी के उत्तरार्क्ष में जय हैदराबाद रियासत की स्थापन हुई तो इस जिले का उस में समावेश हो गया। हैदराबाद के पक्ष्चिम गोलकुएडाका किला कुतुबवंशकी राजधानी थी। हैदराबाद कू छोड कर श्रन्य स्थानों की जनसंख्या लगभग सवा चार लाख है। वे तेलगू भाषा बोलते है। खेती-प्रायः: यहाँ रेताली ज़मीन ही अधिक है। किन्तु कुछ्ह स्थानो की मिट्टी बडी उपजाऊहै। ज्वार, बाजरा और चावल यहाँ की मुख्य पैदावार है। इस जिले में कंकड, वासज तथा अनाइट इत्यादि रवनिज पदार्थ पाये जाते है। अयंरपेट ताल्लुकें में अशुध्द सोडा शाह्बादी पत्थ्र ताल्लुके में शाह्बादी पत्थर पाये जाते हैं। व्यापार तथा साडियाँ और असफ नगर में ताँव और पीतल के वर्तन बडे उत्तम बनते है। ज्वार, चावल, कपास, गुड, तम्बाकू, चमडा, हड्डी इत्यादि पदार्थ इस जिल्ले से बाहर भेजे जाते है। नमक, अफीम, रेशमी तथा सूती वस्त्र करोसिन का तेल इत्यादि बाहर से इस बाह्र से इस जिल्ले से आते है। व्यापार का केन्द्र हो रहा है किन्तु बाज़ार लगते है। स्टेट रेलवे गुज़री है। हैदराबद गोदावरी वैली रेलवे की शाख हैदराबद निकलती है। हैदराबद से ५ सडकें निकलती है। (१)शमसा-वादसे महबूबनगर, (२)नलगोद्ला, (३)बीबी नगर से भोगरी (४) मेदचल तथा (५)लिंग- पल्ली से प्ंतचेर। एक सडक धारूर से कोहीर को जाती है। शाशन- प्रणाली- इस जिले में ताल्लुके है- (१)मेहचल, (२) जकल, (३) पतलूर,(४) असफनगर (५) अंबरपेट तथा (६) शाहबाद। दो ताल्लुकों की एक एक में मिलाकर एक भाग बनाया गया है। इस विभाग पर एक ताल्लुकेदार नियुक्त रहता है, प्रत्येक ताल्लुक एक तह्सीलदार क्र आधीन ओता है।