पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अथर्ववेद ज्ञानकोष (अ) १६२ अथर्ववेद हुतासो अस्य वेशसोहतासापरिवेशसः। अथो | पिशाचों, चोरों और जङ्गलमें भटकनेवालोसे ये चुल्लका इव सर्वे ते क्रिमयो हताः ॥ १२॥ में कुछभी संबंध (सरोकार) नहीं रखता। इसके सर्वेषां च क्रिमीणां सर्वासां च क्रिमीणाम् । विपरीत मैं जिस जिस गाँवमें जाता हूँ वहाँ के भिनिम्यश्मना शिरो दहाम्यग्निना मुखम् ॥ १३ ॥ पिशाच गायब हो जाते हैं ॥७॥ अथर्व० ५.२३. जिन जिन गाँवों में मेरे मंत्र सामर्थ्यका चमत्कार हे धनके स्वामी इन्द्र! इस बालकके शरीर दृष्टिगोचर होता है वहाँसे पिशाच दूर भागते हैं। पर उत्पन्न कृमि ( कीड़ों) को मार डाल। मेरे और लोगोंको किसी तरहका कष्ट नहीं होता। उन्न (तेजस्वी) मंत्रोंके बलसे सब शत्रु मर गये॥२॥ इन मंत्रोंसे स्पष्ट है कि मांत्रिक लोग प्राय: जो कृमि (कीड़ा) आंख में जाता है, जो नाक शक्तिमें कितना अटूट विश्वास रखते थे। में घुसता है, जो दातोंमें घर बनाता है, उसे में लोगोंमें एक कल्पना यहभी प्रचलित है कि मारे डालता हूँ॥३॥ राक्षस, भूत और पिशाच श्रादि मानवजातिमें दो एक जाति के, दो भिन्न जातिके, दो काले, रोग उत्पन्न करते हैं। दूसरी कल्पना-जो संसारमें दो लाल, एक भूरा और भूरे कानवाला, गिद्ध बहुत रूढ़ है-यहभी है कि श्रासुरीस्त्री-पुरुष (भूत और भेडिया, ये सब मार डाले गए॥४॥ चुडेल ) मानवी स्त्री-पुरुषोंको रातके समय घेरते जिन कीड़ोंकी बगले सफेद हैं, जो काले हैं है और उनपर जबर्दस्ती करते हैं। प्राचीन हिन्दु- और जिनकी भुजायें सफेद हैं. जिनके रूप अनेक ओंमें ऐसे स्त्री-पुरुष अप्सराएँ और गन्धर्व माने हैं। ऐसे कीड़ोको मैं मार डालता हूँ॥५॥ गए हैं । ये जल-देवता वन-देवता या निसर्ग कृमियों (कीड़ो) का राजा मार डाला गया, (सृष्टि ) देवताओंकी तरहही थे। इन लोगोंके जिसकी माँ, भाई बहन आदि मार डाले गए वह रहनेके स्थान नदियाँ और पेड़ आदि हैं। ये लोग कृमि भी मार डाला गया॥ ११ ॥ मनुष्योंको भुलावा देकर उनसे सृष्टिके नियमोंके उसका परिवार नष्ट होगया. उसके आसपास विरुद्ध संभोग करने के लिये अपने रहनेके स्थान के लोग मार डाले गए और वे भी जो बहुत क्षुद्र छोड़कर बाहर निकल पड़ते हैं। ऐसे देवताओंसे (छोटे) थे नष्ट हो गए ॥ १२॥ अपनेको बचानेके लिये उस काल के मांत्रिक अज- सब स्त्री पुरुष (नर-मादा) कृमि (कीड़ों) शृंगी नामकी सुगंधित वनस्पतिको काममें लाते का-उनमेंसे हरएक का-सिर में पत्थरसे कूचता थे। उस मौके पर वे अथर्ववेदके ४थे कांडके ३७व हूँ और हरएक का मंह अग्निसे जलाता हूँ॥१३॥ सक्तको भी कहते थे। इस वेदमें ऐसे भी बहुतसे मंत्र हैं जो भिन्न त्वया वयमप्सरसो गन्धर्वांश्चातयामहे । अज- भिन्न रोगोंके उत्पादक ( पैदा करनेवाले) माने मृङ्गयज रक्षः सर्वान् गन्धेन नाशय ॥२॥ गए हैं। उनको पिशाच अथवा राक्षसके नामोसे नदी यन्त्वप्सरसोपां तारमवश्वसम्। गुल्गुलू : संबोधित किया गया है। उद्देश केवल उनका पीला नलद्यौवक्षगन्धिः प्रमन्दनी। तत् परेताप्स- अपसारण करना है। इस विषयमें निम्नलिखित रसःप्रतिवुद्धा अभूतन ॥ ३॥ ऋचाएं हैं- यत्राश्वत्था न्यग्रोधा महावृक्षाः शिखण्डिनः। तपनो अस्मि पिशाचानां व्याघ्रो गोमतामिव । तत् परेताप्सरसःप्रतिबुद्धा अभूतन ॥४॥ श्वानः सिंहमिव दृष्टा ते न विन्दन्ते न्यञ्चनम् ॥६॥ श्रानृत्यतः शिखण्डिनो गन्धर्वस्याप्सरापतेः। __न पिशाचैः सं शक्नोमि न स्तेनैन वनर्गुभिः। भिननि मुष्कावपि यामि शेपः॥ ७॥ पिशाचास्तस्मान्नश्यन्ति यमहं ग्राममाविशे॥७॥ श्ववैकः कपिरिवैकः कुमारः सर्वकेशकः। प्रियो __यं ग्राममाविशत इदमुग्रं सहो मम । पिशाचा- दृश इव भूत्वा गन्धर्वः सचते स्त्रियस्तमितो नाश- स्तस्मान्नश्यन्ति न पापमुप जानते ॥८॥ यामसि ब्रह्मणा वीर्यावता॥११॥ अथर्व०४.३६. तेरे बलपर हम गंधवों और अप्सराओंको ढोरोके मालिकोको जिस तरह बाघसे हानि नाश करते हैं। हे अजश्रृंगि, सब राक्षसोको भगा उठानी पड़ती है उसी तरह पिशाच (भूत) मेरे दे; अपनी सुगंधिसे सबको नष्ट कर दें ॥२॥ मंत्र सामर्थ्य के सामने वे-बस हो जाते हैं। सिंहको ये अप्सराएँ नदीमें अपने स्थान पर चली देखकर कुत्ता जिस प्रकार छिपनेका समय भी नहीं जायँ । गूगुल. पीला, नलदी, अक्षगंधी, प्रमन्दनी पाता उसी प्रकार पिशाचमी (मुझसे छिपकर) श्रादिके हवनसे वे डर जाय। अब उनके चले कहीं छिप नहीं सकते ॥६॥ जाने पर तुम्हारा चित्त शांत हुआ॥३॥