पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१८

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अक्वत्रु हींनंकोंश ( अ ) ८ अकबर

. . . . दृ , ५ . _.. रु सूबेदार स्तुता था र्थाब' उसे मुल्की ओर फीजी ६ डाजमूनं पक्कहुँमाँहिभकृ" है श्यनाका ३३३३३

। कि ३१८८१- आदृकृजयस भी अधिक कूअं था । माँ.

होनी त्तरहदेंट्वे काम साप गये थे । ५ … _ रा हिम्बुस्तानमैं साकारपी आमकुनीफा मुख्य ५ वह क्रब्धकै आर्दशम ३33३३' कृमृक्रम नहीं काना धाघार कृपिक्रर होनेके कारण यहयड़ामहत्वपूर्ण । धा, इसी काल्या मुँह गरीब त्रि९त्१ड़े ३३३३३ था । अलाउद्दीन तथा शेरशाद्रने इसके सम्बन्धमैं दृ पहला 1 सांज्जा" ( उई चित्तास्क ३३३३ वाद ) झुलसे नियम बनाये थे । सन् ११८२ ई० मैं चक्र' गु मृज्जात्नतृहुँआदृष्ण भड्डाहीं ३३३३३' ३३हीचम्मी व्रस्ने रुम्भस्त राज्य: डारुहमृडे किये और राजा 1 अतिमभानंद्रप्रउसनप्रजापृहित्तकहिंयेहुंपृदृद्रस काम टोडरप्रक्ष और शादृमनत्रुर्ता शमच्चार्वदीकै काम पर ३ किये : सुद्ध में फैहुं किये स्म णणाका गुलाम नियुक्त किया । उसने तीसरी क्षप्रावंद्दी करवाई । ष्ण त्रकूनेको प्रथा उसम बच कर दी 1 सारे णज्यकौ इस षर्षकै आँच्चीकीकौमत लेकर भूकरु विमिन भदुमशुमृश्दी फरानेफा यह अभिप्राय था कर दिया गया । अफपरने श्रसामियपैसे नकद ५ करकाब्राझ खब्रपाड्डोंयाश्यदृ पृडे । हूँस्मज्जाने णत्मा रुपये लेनेकी प्रथा आरम्भ की । सारे जमीनफी । के मैंनिक आवश्या हूँनुधामां क सिंयब्धड्स ३३३३ पैभाएश करनेके पक्षपत् किंश्न बाँधी गयी । सामा' । दिये । यद्यपि ड्सहूँ अमृमी वज्जारैर्योंकी एरिक न्यत्तइ आमदनी का तृतीय लेनेकौ प्रण धी। ' लिये पराई रिप्रर्वपैफा धम-म्रष्ट किया था, नधापि

मालगुजारी, अतिरिक्त किंसानोंके दुट्ठारै कर माफ कर दिये गये । और द्रजारेसे जमीन देनेकी - प्रथा बच कर दी गाते । अकारुकौ इच्छा थी कि

सेन पस्थिभ करके अपनी आमदनी पढापै है ,

रसलिये वह उन्हें पेशगीकै रुपमें फर्ज दिया क्रस्ता था । अकाल पड़ने पर सरकारी कर पूरा अथवा मंशा: माफ कर दिया जस्ता था । उसने ऐसे कानून बनाये. जिनसे कर वसूल करनेवाले फर्म- चारी मूस, नड्डाराने आद्विलेफर प्रजाको कष्ट न दै। सरकारी कर्मचारियों द्वारा कानून र्ताड़े जानेकी शिकांयरा आने पर वह उन्हें कठिन दंड दैता था 1 खेतीकै काममैं न खायी जानेवाली जमीनर्का परखी बनानेके सिये अकवरने र्तार्गोंर्का र्भात्सादन दिया तथा उनके सिये षदुत्तसी सुविधाएँ कर ही थीं । प्रत्येंक फिसानकै पास कितनी जमीन हैं, उसको किठना कर देना षड़ता है आदि वातें यरा-

उसने व्यभिचाश' यच्च काने के षदुन से उपाय किये । अत्यधिक शगप पोनेदालेर्का एँड देना . निश्चित किया । इसमें शक नहींर्दफि 'यशसं' पफ महान प्रतापी राजपुरा: ही गया द । यह बिलकुल पक्षपान-शडित्त था 1 दिन्दूश्रुमलागनोंके चीज यह फिसीदृस्कादृद्रा भेद नहीं यानं।। था । उसने दानों धमोंकी बुगइयाँदूशं कषनेका प्रयत्न किया । यह अयन्त परोपकारी था । उसने नये-नये नियम बनाकर-जिनमें नीनि नथा उदाग्म। भत्तक्ली थी-बल साम्राज्यर्णा नोंच पओं जमाई । उसने भिन्न भिन्न जातियों र्थाकं भ्रर्माके पारणा बिर्काधा भाषरेंर्का चुद्धिमानीसे दबाकर उकेंअन्दछा रूप दिया ।

उसके लढ़कपनका सारा समय खेरूकूदमै ही व्यताव्रदुआ; परन्तु बुद्धिमान तंणीकी संगति सेधहरेसामहापुफप हीखुश । सयकै साथसएरनु-

बर लिख ली जाती थीं ।

हिन्दू ओर मुसलमान दोनोंसे समान का जिया डाटा भी । अफषरका अत व, कि हिन्दुओ पर काला अधिक र्वाझ ग में । ब्रस्तगुजागीफे 1 अतिरिक्त तैयार की हुई वदुतसी चीजों पर भी । कर देने पत्ते ये : अफषस्ने उडिया जैसे वदुत्र ३ से कर उठा दियेये फिर भी उसने यदुत्तसे नये कर खाद दिये ये ।

अकबर की सेनिक व्यवस्था धदुत्त उत्तम थी हूँ उसने रस्त्रपृत राजाओं की सेनार्गे ऊंचे ऊँचे स्थान दिये, जिससे थे खुश थे । फीजी अफसरों को जागीरें न देकर नुणादृरा निर्धारित फर_ दिया गया था । अफयरके पास दो तरदृकौ सेनाएँ थीं । एक सुगा। सेमर दूसरी राजपूत सेना । मुगल लोग भाड़ेकै टदृटुथोंकौ त्तरहाकोंम करते थे पर

दृगस-पास यदुनखे सदुगृमाँपै पुरुनों का जभघदृ ता गया था। अत्रुलफत्ल आ? उसका भा! केंणों- र्दानोंही बिद्धानतया चतुर ये। वे र्वानों अफ- ब्रनंझेहुयँहाँ रहते थे ।

के फलो शाहजादा मुराद का गुरु था । अकबर फजीकी कांबो१न्द्रको बहुत पसंद कगार था इसीलिये आगे चरुपद्रर वह कविराज' की उपाधि से पिबूपिश किया गया । फजल सप धर्मोंपो समान दृष्टिसे हैब्बढद्रा था । यह पशु। भागी पंक्ति था: उसनेउसेमाथोंर्ताषदृदृछं किया : असा- धारण नुणिडार्द णेनेसै कारण मृश्यागाड उसका रोज स्मस्मता था' । डामाँयर' द्वारा उसने प्रति गृस्ततिपारकों घार्भिश वादविवाद आर्दभ काने का सिलसिला जारी किया है वह लेखक भी था ।

भूति प्रगट फुग्नेफा उसमे एक खान गुण था । वह ८ ५ गुणप्राहो आर लोकसंग्रहीं श्री, इम फाष्ण उसके