पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१८२

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अथर्ववेद अथर्ववेद षभो वासितामिया विवद्धोमिक्रन्ट पड़ता किन्तु जो ज्ञानकोष (अ) १६८ हे वरुण ! तुम्हारे सात सात तीन श्रेणीके से यह समझा जाता था कि वरुण देवता राजाके पाश-उत्तम, मध्यम, निकृष्ट-सदा तय्यार रहते चुनावके साथ स्वयं उपस्थित रहते हैं। किसी हैं। वे पशि असत्यवादीको बन्धनकारक हो। देश निर्वासित राजाको गद्दी पर पुनः बैठानेके वह सत्यवादीको कष्ट न दे। समय (अथर्व ३३) जो मन्त्र विधिका प्रयोग हे वरुण ! सौ पाशोसे बाँध । हे नृचक्ष! उस किया जाता है, वे मन्त्र भी उपरोक्त मन्त्रोंके असत्यवादीको छोड़ मत ! उस धृर्तका पेट बढ़ समान ही बड़े रोचक तथा सुन्दर हैं। इस भाग जाने दे अर्थात् जलोदर (जलंधरका रोग) हो में सबसे पहले युद्धगति तथा संग्राममन्त्र हैं। जाने दे ! पेटके कोष्टकमें प्रवेश कर जा। जिन सूक्तोसे दुन्दुभिकी प्रार्थना कर वरुणको युद्ध वरुण रोगको उत्पन्न करता है और नाश भी क्षेत्रमें विजय प्राप्तिसे लिये आमन्त्रित करते हैं वे करता है। वरुण सर्वज्ञ है किन्तु स्वयं अज्ञात सूक्त बड़े ही मजेदार हैं। इसका उदाहरण पाँचवे है ! वरुण दैवी तथा मानुषिक दोनों ही शक्ति है। | कांडका २२ वाँ सूक्त है। इसमेंकी कुछ ऋचाएँ इन सब पाशोंसे हम तुमको (अमुक नाम- नीचे दी जाती हैं- वाले तथा अमुक गोत्रोत्पन्नको ) बाँधते हैं। उच्चैघोषो दुन्दुभिः सत्वनायन् वानस्पत्यः तुमको भलीभांति देखकर तुमपर पाश फेकते हैं। संभृत उस्त्रियाभिः। वाचं चुणुवानो दमयन्त्सप- अथर्ववेदका जर्मन भाषान्तरकर्ता रॉथ वरुण नान्सिह इव जेष्यन्नभि तंस्तनीहि ॥१॥ सूक्तके विषयमै अपना मत इस भाँति प्रकट करता सिंह इवास्तानीद् द्रुवयो विवद्धोभिक्रन्दन्नृ- है इतना उच्चकोटिका वर्णन वाला गीत सम्पूर्ण षभो वासितामिव वृषा त्वं वध्रयस्ते सपना ऐन्द्र- वेदमें दूसरा नहीं देख पड़ता किन्तु जो साहित्यक स्ते शुष्मो अभिमातिषाहः ॥२॥ दृष्टिसे सर्वोत्तम भाग है वह वस्तुतः अभिचार वृषेव यूथे सहसा विदानो गव्यन्नभि रुव मन्त्रोंकी प्रस्तावना मात्र है। यह तर्क अनुचित सन्धनाजित् । शुचा विध्य हृदयं परेषां हित्वा होगा कि इस वेदमें और अन्य स्थानों में भी पुराने ग्रामान् प्रच्युता यन्तु शत्रषः ॥ ३॥ सूक्तोंके कुछ विशिष्ट अभिचार मन्त्रोंमें जोड़ने दुन्दुभेचं प्रयतां वदन्तीमाशृण्वती नाथिता लायक भाग जोड़ दिये गए हैं। उपरोक्त मन्त्रमें घोषबुद्धा । नारी पुत्र धावतु हस्तगृह्यामित्री भीता पहलेकी ५-६ ऋचाएँ किसी सूक्तके टुकड़े हैं। समरे वधानाम् ॥ ४॥ डॉ० विंटरनिटज़ रॉथके मतका समर्थन करते अथर्व०५.२०. हैं। वे ब्लूमफील्डके उस मतको निराधार बत । लकड़ीका बना हुआ बाधोंसे घिरा हुआ, लाते हैं। जिसमें वे अभिचार मन्त्रीको सूक्त वीरोचित आचरण करनेवाला दुंदुभि बड़ा भया- यतलाते हैं। | नक शब्द कर रहा है। अपनी आवाज़ तेज़ करके राजनीति और मन्ा शास्त्र-राजाओंके लिये तु सिंहकी तरह गरज और शत्रोकी नाकमें दम उपयोगी मन्त्रोंका एक वर्ग बहुत बड़ा है। इसमें कर दे॥१॥ शत्रुके विरुद्ध अभिचार विधि तथा कुछ पौष्टिक बँधा हुआ दुन्दुभि सिंहकी तरह गरजा; मंत्र है। प्राचीन समयसे ही भारतवर्ष में प्रत्येक उसने वृषभ (वैल) को तरह जोरका डंकार राजाके यहाँ एक पुरोहित रहता था। वह किया । हे दुन्दुभि ! तू बैल (वृषभ) है, तेरे राजाओंके उपर्युक्त मन्त्र प्रयोग तथा उनसे शत्र डरपोक हैं; शत्रुओंके जीतने में तू इंद्रके सम्बन्ध रखनेवाले सूक्तोका तथा वचनोका जान- समान है ॥२॥ कार होता था। अथर्ववेदसे और क्षत्रियोंके जानवरोंके गिरोहमें परम शक्ति संपन्न बैलकी कर्मका निकट सम्बन्ध है। इसलिये इस वेदमे तरह तू प्रसिद्ध है। तू लूट जमा करते हुए जोरसे राज्याभिषेकके समय जिस पवित्र जल व्याघ्र चर्म हुंकार करता जा । शत्रओके हृदयको दहला दे कि श्रादिकी आवश्यकता होती है उनके सम्बन्धमें वे घबरा जाये और अपने घर-बार छोड़ कर मन्त्र है। राजकी परिकीर्ति बढ़ने, दूसरे राजाओं चले जायें ॥३॥ पर उसका रोष रहनेके सम्बन्धमै भी मन्त्र है बहुत दूर तक दुंदुभिका शब्द सुनकर शत्रुकी और शरीर पर कवच धारण करने तथा रथ पर स्त्री डरके मारे अपने बच्चेका हाथ पकड़ती हुई आरूढ़ होने के समय की जानेवाली प्रार्थनाएँ हैं रणभूमिसे भाग जाय ॥ ५॥ ( अथर्व ३.४) वरुण शब्द 'वर' धातु है यह तो हो नहीं सकता था कि ब्राह्मण सदा जिसका अर्थ है 'चुनना'। इसी कारण इसी शब्द राजा और प्रजा को भलाईके लियेही मंत्रोका