पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१८६

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अथर्ववेद अनके ( अ ) १७२ आय वशा माता रपयम वशामला स्वन तय है वशायायश आयुध- उ१भित्तमजायत ।. १८ ।: गऊ अरे और अल का संरक्षण करती है । इसके पीछे सो दूधके जि, सौ दूध दुहने वाले और सौ प्याले रहते है । जिन देव-का इसके शरीर मैं वास होता है देही इसको जानते है । यह क्षधियोंकी और रबर की माता है । इस का शब यब है । चित्र की उपरि' इसीके कारण होती है : इसप्रशवेकी सीमा निम्न लिखित अचल दिखायी देती है- यथ-ममृत मायर्वरों प्रत्युमुपासते । गा ही का अमृत-हते है : इसीको उस समझ कर इसका पूजा करत थे । अंह सकी मवद देवा मबग ऐ है: विनर अम: । २६ ।. मलय, अब पिब, अरि-ये सब वशा ( भी ) के ही रूप हैं । अब आगे लिखा गया है कि नित्य व्ययपृमें मौका क्या स्थान है-- एव विद्या, सकी प्रति यबीपाष [: २७ 1. जा इस प्रवर जानता-, मौका प्रतिग्रह ( दान ) करना चाहिये । भ जि, ४ ४ प्र ४ प्रापस्कावो वरों दल सर्वा-ममखते । -त्-१हि८ट्ठामत्र्षयषि सहमते तप: 1. ऐ३ 1. प्राहाणका गाय देनेवाला सब लोकी को प्राप्त पुर क्योंकि गऊ:: ऋत ( सत्य ), ब्रह्म और तप-य सब वास करते हैं । अत.'-- वजूद उब जीवन्ति वहाँ मनु' उत । यश, सवमभवद य-ल विपश्यति ।।९४यु उस अथ-, १०, पृ० देवताओं का पेट गोचर निर्भर है उसी प्रकार मनुष्य भी गोयर हीनिर्मर है । जअंतक आँकी किल पहुंचती हैंवहोतिक सब गर ही की माया है । जर्मन विद्वान डरी ( 190.1880:1 ) में अथर्व वेवके नारिवकसूला का अर्थ रपट करने की कुंरिशकी है और बहुत यल वे उसका कम मिपबण सफल भी द्वार हैं । उदाहरण के लिये १०व काम के २रे उन ब्रह्मसिद्धिका विचार जड-मब और मदेम-सकी क्यों१से किया गयाहै । उसी का ११ वे कडिके हु: थे सूल में आध्याभिक दृष्टिसे विचार किया गया है है विटरनीयजके मचम रस सुब इतना आध्यात्मिक महले है ही नहीं । इनका कथन है कि इन अनके लेखक (को तलाशनी थे । मनुष्य विराट विश्व-, अंश है-इस ताम ओज उन्होंने स्वयं नहीं की थी बक्ति यह सियार पहले ही प्रचलित था । इन्होंने उसे पढ़ अव्यक्त और असंगत रधिसे लगोके समय रखनेकी कोशिश की । अबके १० थे औडलके १२१ वं सून एक अच्छी बैझववेत्ष तश१कतीने वियके अनुपम वैभवका बनि बम ही सव भावज किया है । परन्तु वह संदेह, पड़जाता है कि ऐसे विश्वको उत्पन्न करने वाला कोन है । ठीक इसके विपरीत अशर्यवेदमें [कडि१०, जप तो ) मैं एक कनि ( जस, ) मलय- शरीरके अबयवंय खल वर्णन करता हैऔर बन करता है कि इनको किसने बनता है केन यह अच्छी अस्य केन आँख-निगु-ले बोजा-ली पेशन: केन आनि बम अब: ब ।। है [1 करमा-मवायर-वजा-ताल रब वय निर्वात्य व्यापक हिम-नो: संधीक उ त-शेल । । र है । इस संबध की आठ अचार हैं और आगे ही हुई भी ऋचा-भि 'ममरसना और उसके जीवन संबंधी समस्त वासौकी बीच पड़ता. है । प्रिय-यल बल स्वय: संवा-द्य: । आनन्दानुओ नन्द" कमर वह-भाया आर्तिरवसनिअंति: कुतो"'.-". । को अरिमन्नय व्य दराज. कम नि.. (. ११ ।। को अस्थिर रूपम-संत मामाजी उनम च । गातुमहोअरिमन्काकेतुमझरिवाणिछो१२: जी जिए म ४ ४ प्र को अरिमसयंकोनुतंकृतोटिब, कुतोमृतपू।१शा इसके पश्चासूउन्दी कवियों ( (बकते ) ने सवाल किया है कि सूशिकेऊपश मवने किस प्रकार अधिकार प्राप्तकिया : इस प्रकारझे सब प्रशन का एकही उत्तर दिया गया है कि मनुष्य धहावप है, अत: उसे यह शक्ति प्राप्त हुए । यह-तक तो यह सक उदर न होते चुप भी शुद्ध और व्यय है । किन्तु आगेकी २६ से ३३ अचानक (व्य वही अंरिप्राधियलए लेख शुरू हो जाता है । एकाध ऋचात्८न देखिये । भूधुनिमस्य संसीव्याथयों हृदयं च यत् । मसत-बद्धि प्रेरयवपवमानोधिशीलि: 11, जा) उद वर अश्वत्थ, शिरो देव. समुचित: । तव प्राणों अभि रक्षति-री असमर्थ, मन: ।२७। अम १० २. ऐसी ऋचाऔर्मचयशानकीछोज करना मानो उन्हें अनुचित महाव लहै-मरिशता- उबर अयर्यलहिवाके ११ उ कय ८ व वल