पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१९

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अकबर

उसकी भाषा सौधो-खादौ थी । अपने लेन । में वह सबकें प्रति प्रेम ओर आदर व्यक्त करता । था । 'अफयरन्नाभब्ब' र्मथउसीका लिखा हुआ हँ है । इसके मीन भाग है । अन्तिम भागको आने अकबरी' फहट्टे हैं । इसमें ब्रशारकी शासन व्यवस्थाका वाम है । तब्जालीन परि- स्थिष्टिका अध्ययन करनेमैं इस मंथतें अच्छी सहायता मिलती है । आइने ग्रझारीकार्थप्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हो गया है : राजा मानसिंह अफधरका रक सेनापति था । . यादशाहने उसे 'मिजएँक्रिगे उपाधि दी थी 1 ५ 'धिमाँका अर्थ एँस्नाहैं 'राजकूमार' । रसो मानसिंहकै काष्ण अक्लावे पहुत्तसे रणक्षेत्रोंपै । विजय प्रान की श्री । गुजरानकी चद्वाईमें । अफत्ररकों मानसिंहने र्यार संफटसे बचाया था । ५ निचौणट्वेंगड़णों दम्बत कग्नेमै भी मश्चसिंहका पृ षदुन वडा नाथ था है राजा र्दाडरमखकै सुपुर्द जमाया-मौका काम मृ था । पान्तु कई जगहोंकै वलवान्र्यरैको दबानेका ३ भार उन्हीं पर आ पदा । अक्रवरने कानून षनाफर सय हिसप्त-क्लिश्च फारसोपै स्तवाए । सांसी दषचारी भाषा हुई और हिन्मुत्रोंकौ मब्रघुग्न उसका अध्ययन काना पडा । जो हिदू फाषटरुगेफा अच्छा विद्वान होता था उसे फीका राजकी नैत्कापै मिल जाती थी 1 राजा र्टाडम्भरुद्द नेजमावंवंर्थि नदुनसे सुधार किये । जमाबन्दी ओर सेनिक व्यवस्थाओं उस समय उसकी जांड़का दूसरा आदमी नहीं था । ॰ अकदरके व्रस्नारका दूसरा प्रसिद्ध मनुष्य वीरथस था । यह गरीब ब्रष्णण था, परंतु इसकी हाजिर-डाघापीसे बुश होकर अकवस्ने इसे अपने , पास गम सिथा । राजपूत रश्याओंरौ दृरबारोंर्मे वह राजप्रनिनिधिका काम करना था । यह राजपूर्तोंकों पुगलोंकै साथ मुखहकग्नेयें सहायता तेजा थाओय' , शाही खश्चदानफै साथव्याह-शावी तय करनेकी जिम्मेदारी भी उसी पर थी । रक्षकों बोलचाल यदुतही सीधी पर धर्मयुक्त हुआ फ़रती थी । हिन्दू । धर्मकी यदुतसौ उत्तमन्द्रत्तम त्तत्यशामकी यखोंका । उसने यादशादृकै दृश्यमैं बीज दो दिया था, रमी पृ लिये झुलसे मुसलमान सरदार उससे अकारण । देष रखते थे । । भास्तप्रसिध्द गायक तानसेन भी अफयरके ५ दस्नारका पक रव था । पहले एड्स उसका गाना सुव्रतेहाँ व्रदृदृशाहते डसैदौलाख रुपया इनाम ५

दिया । इसकी बनाई मुई वहुक्ली कथिभाएँ हैं '

ज्ञानकोश ( अ ) १ '

अकबर

जिनमें मरकमें नाम पाया जाता है ।

इन सोर्गोंके अलावा रफ ओर विद्वान उल्लेख मोग्म है । इनका नाम था । यह संगीत, व्यंगंतेप और इतिहासका प्रेमी था । संस्कृशका अध्ययन कर इसने ब्रहाभास्त चौर राग्रायणका फाल्सीमैं अनुवाद किया । इसने 'मुम्लडानुच्चा षारीख’ नामका एक ग्रंथ लिखा है जिसमें अकबर के शत्सनकालका पूरु। इतिहास है है चूंकि यह कट्टर मुम्नठ्ठाप्राग था, इसलिये आश्वरका प्रीति- भाजन न हा सका ।

इसतरह दिखायी देगाकि अफपरकै दरपास्मै ब्रगुतसे विद्वान एकत्रित थे । केवल गौ रत्रही नहीं, हजारों रन्न व्रषथारदी शोभाब्रड़ातेघे । थींगाथींवगेकें समपमैं गुणी ओंर पराक्रमी लोग सामने आ सकते थे । अफनंदृकै समयमे चाहरसे वद्रुनसे मुसलमान भास्तदर्षमैं आये । दरपारमैं एक दिन भी रेसा व्यतीत नहीं होना था जिसमें किसी गुणीका आदर न हुआ हो । केवल भान्त- यर्यदी के नहीं, समस्त संसश्चझे गुणी र्ताग उस समय ड़श्चारर्में आकर अपने गुणोंकै कारण उचित आदर पाते थे । इन र्तश्मस्लिं अच्छी खातिर होती थी और इनके उत्तम विचारोंकी कटु की जाती श्री । इसका नतीजा यह दुधा कि मुगलसाप्राउथशी कीर्ति और यश चारों ओर फैलने लगा ।

अफवत्रर्दे। लीलावती, जातक. हरिवंश आदि ग्रंथोंफे फारलीमैं अनुवाद कराये । अकधाके

हैं समयकै अनेक इतिहास फास्सीमै मिलते हैं 1

अपनी पादशाहनकें। कायम शम्बनेके दृरांहैसै अश्वरने जो कार्य किये उनमें नवीन धमकी स्थम्भदृ।। एक खाश वात थी । घार्मिंफ धिषर्षोंमै अकबर उदार र्भाहुं घरा ढीला था । मुसलमानों का कट्टरपन उसम न था । 'नयरोझाका त्योहार मुसलमानी त्योहार न होते द्वार भी अकबर उसमें शूक्तीरू होता था । दरवारग्रमिअ-धित्र पंदृशाक परिधान कर यह सहर-ग्रहों की पूजा करता था । उसीप्रकार अपनी राजपूत्र-रानिपौकें साथ बैठ- फदृ दह णा होम आहि भी किया करता था । व्रश्चहैंक्षमे व्रवश्यप्रेन्न उसका वर्ताव एक कट्टर मुसलमानके तैसा था । १ ८

अकबर द्वारा रस्ताब्र धश्ली अधसेस्ना होते देख उलेमा दुखों होते ये! दृश्चारमैं उनकी प्रव्रिहा थी है ब्रहत्यपूण प्रओका निर्णय वगैर इन होंगौको सम्मतिके नहीं होता था .। बैणापाँफी दृटाफशशासनव्यच्चस्था अकषस्ने अपने टायोंपै खी