पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१९१

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पिक शम्स सम्बग्ध के आघारसे-सिद्ध शेती है । ३ दोंनों सूत्रों मे उन-उन सूनों के दो एक सूत्र का अवतरण लेते समय उब्लॉ कै प्रतीक दिए दुए 3 दिखाई देते है भ्यहरीति रुमेशा को दी है। ट्वें कौशिक सूत्र मैं तो उस समय कै शेसि का ही अनुकरण फिपा गयाहँ । उस शेसि कै अनुसार किसी वैदकै दूसरी शाचामैं से सूक्त अथवा पाठ तथा अन्य वेदो की शातार्योंर्में से तूफया पाठ देते समय उनका पूर्णरुपसे विवरण देना आवश्यक ३ था ।वैतान सूत्रवै भी इसी रीतिका अनुकरण दृश्चिद्द है; परंतु इसमें रकधिशेष प्रकारसे ध्यानर्में ३ रखने योग्य आस्वाद हैं । वह इस तरह हैं८… ट्वे दो सूक्त अथवा जो पाठ कौशिक सूप्रके साथ ३ साथ बेताब सूध मे भी आया होगा उन सूकों का या पाठ का अवतरण देते समय बैतानमें केवल दृ प्रती कों कौ ही दिया है । यद्यपिय हीं अभ्य संहिता मे दिखाई देता हो अथवा अस्तिन्न मे होंने पाली ३ बित्सी भी संहितामै वह दिखाई न देता हो ओ" इ यद्यपि वह कैथल कौशिक त्त्रमैं ही दिखाई देता रै हो तोभी बैताम सूत्रमै इस रातको महत्व नहीं दिया है 1 एक दो उदाहरण देनेसे या मडवी है तरह समझमें आयगा । ३ (१) तैत्तिरीय संहिता ३. २॰ ४, ४ में जो पाट रै हँ ८६ शुक्ल यजुर्वेदमै ओत क्यों, कात्या, २, १.२२ तथा कों¸ ९३. ५1. मैं संपूर्ण दिया हैं; परन्तु हूँ ये… तू १¸ २० मे इस पाठका 'अहेबैधिधज्य’ इस तरह्र केवल प्रवीक हीं हिया दुआहैं। ५ ५ २ ) कौ. तू ६, ११ में एक मन्त्र ऐ दारिसाने एसे कल्पना नाम दिया है । याकोंदी साहवकोयह अम्म रिप्लीभी संहितार्मे नहीं दिखाई दिया बैटान सूक्त २४7७ मैं इस मात्रका 'विमुज्ञामि'नामक केवल प्रतीकहीं दिया है 1 दृ ८ आगे उस टीशिक मूत्र पर विचार किया हुँ ८ तावेगन्क्सि पर सै तत्काल प्यानमैं आने योग्य है । ओत बिधि-र्यो की जो परिभापा है वह इस सूघमें नहीं है। दोसर, अध्यमुँ और उद्रुगातर शद पारिभाषिक अर्थसे फुल कौशिक सूत्र ग्रंथमैं कहीं भी दिखाई नहीं देते तथा धौसांनीका उपयोग केवल रुचिन्स्था गौणत्व से किया है । जैसे८-२२, १४; ६७, ६८ ७०। ९-१२; ७१7 १.६3 ७७५ २३३ ८०३ १८.२३3 मा। ३७-३२; ८८, २०; ८९, १५ । अग्नि हीं प्रका दो समय उल्लेख किया है । ०२, ४३; ८-५, २८1 यह ग्रंथ, "गृह्य सूत्र' शूम्लके अर्थकी दृष्टि से देवा जागती रसे गृह्य सूत्रभी नहीं कह सकते इस तरहकै ग्रंयमें हमेशा आनेवाली मस्तकौ विधि याने गर्भाधान बिनाह अंत्येष्टि इत्यादि संस्कार, सथ्यू। मधुपर्क, आज्य तन्त्र रन्यादि, इस ग्रंथमै आप हैं । परन्तु उन्हें यंथर्मे -प्राधान्य नहीं दिया है । ब्लूम क्खिके मतसे ग्रंथकै मुल्य भाग मैं, गृहा बिपयोंकौ कुछ न कुछ गौण स्वरुप देकर उन्हें ग्रंथमें इधर उधर सूत्र भर दिया होगा अयर्व में कै सूकौफौ कएसे समय उनके साथ जो विधि करनी पड़ती हैं उनका यह तूत्रभय वर्णन है । प्राचीन कालसे अब्र सफ सूप्रका पाठ तथा कुछ बिथियुक्त आचार एक साथहों फस्नेका नियम रहा है । इन्हों आचारोक्रा सुधरा दुआ स्वरुप सूत्र में दिया है । यधपि एन विक्योंका आबै सेमी अधिक भाग गृहा सूत्रोंसे भरा हुआ है, सोमी यह भान लेनाकि इस मंथका अथर्व सूध ही बीज है. ओर दुसरे भाग यादमें फ्लूफहँ किए गए हैं वड़ा कठिन है 1 तथापि यह कैसे भीहों हमें तो यह मान लेनेप्रे कोई आपत्ति नहीं है कि कौशिक सूत्र अथर्व' तथा 'गृह्य’ हम पोनोंदी सतंत्र सूकौका मिश्रण हे । नीचे किया मुआ मियेचन हम दोनों खतंत्र सूवीकै मिश्रणफी ओर ध्यान देकर किया गया है जै शिफ्लूम्र फी श्चनाश कारू निर्णय-इस तूत्रकौ स्तन के समय तथा स्थानके निषयका साम्प्रदायिक ज्ञान उपलच्चध नहीं है । अथर्व ही के साहित्य मे सापेक्ष कातानुकम कै सव्यन्ध में दो खभथोंफा उल्लेख आया है । प्रयमत: ममी तथा श्लोका काल रहा होगा 1 आगे यह तो हम