पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२०७

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सूत्रसे हैंडइस परिभूश्यानुसार सूत्रमे ९१ जगह हैं सूककौ उदश कर पूव शब्द आया है दसते यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि कौशिक अथर्वकौ प्राचीन ग्रहिका मूत्र हैं तथा प्रावीन प्रति शौनकौय है ओर यह कौशिक बैतान तथा षतिशस्था इन तीनों ही क्योंकी संहिता है । हुं रन दीनों संहितामौमैं मुख्य साम्य यह है किं सलोधनकै प्रन्तमैं आनेवाला' औ इत्यादि खरमै दृ तन्धि नहीं कौ है यह बात स्पष्ट है कि कौशिक सूघचाली अथ- ८ र्षण संहिटाकी प्राचीन प्रति अक्षित्वमें अवश्य 3 थी क्योंकि उसभैंकै ब्रद्रुत्तसे तूकौका अवतरण प्रतीकोंर्में किया है । इसके अनुसार जो यश याग आदि‘ करें उसपोसंहितापाठआनाअश्यश्यक हैं १९ एँ काँउका आगे विचार किया गया हैं उसे छोड़ देंनेपर धाकौदृपेदोंकै सूत्रोंमैं शुरुते अन्त तफदी दुई ऋचाय धदुतहीं पोडीहैं, ३ कौशिक ६. १७ अथर्व ६. ८५. २१ कौ० १०६. ७; ७५,। अथर्व १४. १, ९३ अथपैप्श ४८, २; कौमृ ५ ९७. ६ में अथर्व ८. २. ९८ कौ० इत्यादि दै । अन्त के ज्जाहरणके अतिरिक्त पहले लीन उदाहरणोंपै अम्ब संहितासे जान धूझकर सिया नहीं है, यह हूँ केवल आकस्मिकहैं किंशुरुसे अदृततक मन्त्र दृ अथर्वपैदकी ऋचार्योते कुछ मिलतेहैं। इस ३ प्रकारकी स्थिति पिभिन्न शाखाओंके प्रात्रोंकी हैं सुहाना करते समय हमेशा उत्पत्र होती है । ५ कौशिक सूत्रमैं ११ तथा २० वें कांड सदाके लिये दु निकाल दिये अथे हैं उसमैका ११ माँ कडि तो अध्यव्रटार्य तंथा रूपशाय खरूपकैलिथे ब्रास्मृग्रंय पृ होनेकै कारण निकाला होगा; ओर दीसबाँश्च दृ सृर्वरैपै रचे जानेकै बाद संदितामैं मिलाया गया होगा, अथवाउसका ओतसे स्पप्टक्ष्यसे सश्वन्ध होनेकै कारण वह निकाल दिया गया होगा दूसरी ल्लाभा ही अधिक सम्मवनीय मालूम पड़ती है प्टीमथशकै तूर्वरैकै लिये तथा लोत्रोंकै दृ लिये कुछ अपवाद छोडकर

संहिचामे के लिये हुए नहीं हैं । कौ० ६ ३७. मैं दारिलाने एक छोटेसे प्रतीफकै सिये ( १९३ ७९ सौरक्ली का सफल पाठ दिया हैं । यह एक अबुध पात है । ऊपर श्चिश्या गयादै फि कौशिक के अथर्व ५मूत्रकै मामले संपोषित किये मुए भागमैं ९९ ष काण्ड कां एफ भी अपसरण प्रतीक मैं भी नहीं दिया है । इस शामा कौ तैध्यार की हाँ तण धानी संहिता ओर रपट रूपसे अग्य स्थानसे आये हुए मन समूह के पीच का स्थान कौशिक सूत्रर्में १९ वें काण्ड का होगा । राँथके मतानुसार पिप्पलस्क शामा भार्में इस प्रकार १९ वै काण्ड का बिषय फैला दुआ है यह माना ज्ञा सकता हैं कि इस काण्डका बिषय अथर्ववेदकौ सप शाचाओकै सम्प्रदार्योंको मालूम था ओर वेद पहले संस्करणकै समय निकाल दिया गया था परन्तु यादमैं उचिठ माकू। पड़नेधर मूखवेइमै मिला लिया गया हींगा कौशिक सूत्रके बिचार संशययुक्त दिलाई देते हैं ५ उसकी शाखाकै कुछ मात्र हतनेपरिथितहैंफि उनका निदर्शन केवल प्रतीफसे ही करनेपर काभ चल जाता दै, ओर कुदृभन्त्र ऐसे हैं निभकै बारेमे शुरुते अंत हूँ तक देना पड़ता है । माइके अथर्व सास्लिबैदृन है अशोका परिपथ दृढ़ मालुम पड़ता है ३ परिशिष्टपै १९ माँ काँड पाकी के अथर्ववेद के हूँ समान नहीं माना गया हैं ओर उसीके अवतरण ५ विशेषता पार पार आते हैं. उदाहटणार्थ १९५5८ दु नक्षत्र क्या १० मैं लिया ये, २९-९ नक्षत्र २६ तथा अथर्व परिशिष्टर्मे ४, ४. ९, २ मे लिया है । रत्मावि पृ अथर्व-परिशिष्ट ३४ की गणमालामैं १९ पै दृ कोंउकै नटुतसे भन्म अवतरण करके लिये हैं हिले पँटने एक ऐसा प्रश्न उपस्थित किया है कि क्या श्न प्लोकै पूर्ण निरीक्षणसे ऐसा व्हा जा सकता है कि एक पार मंत्र अथवा सूत्र जिस ग्रे रूरूणों संहिटामैं आये हैं उससे ये क्यों भी मित्र दृ खरूपमे होने