पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२०९

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हूए इस छॊटॆ से राज्य्ने ४५० ई० पू० मे ईरान पर विजय पताका फहरा दिया। इस विजयका अये प्रसिद् राजनीति थोमिटोक्लीज को ही अद्दिक हॆ। ईरान् पर विजय प्रप्त करने के पख्शात् स्टिडॊज तथा सायमन नामक प्रलिद्द् नेतिइओको नेत्रत्व् मे अथेन्स उन्नतिके पथ पर अवसर होता रहा। अपने परायाताके कारए अथेन्स डॆलियन सघका अद्द्यज बन बैटा आर एक साम्राज्य माना जाने लगा। सायमनके बाद पेरीक्लीज नामक प्रसिद् राजा नीतिग्य हो गया हॆ। इसने खुल्ल्मखुल्ला अथेन्स के साम्राज्य त्वका प्रसार करना आरम्भ कर दिया था। ई० पू० ४४३-४४६ तक का समेय अथेन्स के इतिहास मे सर्वोत्तम कहा जा सकता हे। उस समय इसका व्यपार भी मिश्र तथा कोलचिज से लेकर इद्रिया तथा काथेंज तक फैला हूआ था। साहित्य तथा संस्क्रति के विशयमें तो उसके टक्करका कोई भी न था। येदि स्पार्टा अपने कटोर नियमों के लिये प्रसिद था तो अथेंस अपने सौंदर्या पूजा में अद्वितीय था। अथेंस सदा ही घ्यान तथा विघा का भएडार समभा जाता रहा हे। कला कौशल में भी इस्के सामने सभी देशॊंको सिर भुकाना पडता था। इतना होने पर भी यह कहा नहीं जा सकता हॆ कि वैभपूर्ण उज्वल चित्र पर चन्द्रमाकी नाईं कही भी द्दब्बा नहीं था। सव गुए सपन्न पेरिक्लीजके पक्शात् आथेंस में जो मन्त्रि मएडल हूआ वह स्वार्थ तथा भोगविलासके ऐसे भयंकर गडे में जा गिरा था कि सम्रज्य प्रसारकी नीति ढीली पड्ने लगी पोलोपोनीशिखन युद्दमें अथेंस का धीरे धीरे हास होकर अध पतन होने लगा। उसके अतीत वैभव का आचि पत्क्शा स्वीकार करना पडा। मेसीडोनका भी सिकन्दर की म्रत्यु के बाद धीरे धीरे हाल हो रहा था और ई० पू० २२६ में उसके हाथ से निकल कर एक बार फिर स्वाधीन हूआ। इस बार यद्दपि यह अपने पुरे वैभव को प्राप्त न कर सका था तो भी सम्पूर्ण योरपमें अपना प्रजातन्बात्मक राज्यपद्दतिके लिये प्रसिद्द् यद्द्पि अथेन्स का अगला इतिहास बिल्कूल् परतन्त्र नहीं कह् सकते तौ भी रोमन साम्राज्य के बहूत कूछ अन्तर्गत अवशय था। २२७ ई० पू० में अथेन्सने रोमेन से मित्रता स्थापित कर ली थी। रोमन बादशाहोंकी वक्रह्शटि अथेन्सके राज्य पर सदा ही लगी रहती थी। अब अथेंसका राज्य युद्द तथा राजनैतिक काट छोटोंको लिये ही बिख्यात रह गया था। परन्तु यह वैभव भी अथेंस बहुत दिनों तक न भोग सका। जस्टीनि यनके नियमसे तत्वग्यानका अम्यास रोक दिया गया ओर अब प्रचीन अथेंसका अन्त हो गया। इसके आगे का इतिहास निम्न्लिकित तीन भागों में किया जा सकता हॆ--(१) विजान्शियम का शासनकाल, (२) रोम का शासनकाल तथा (३) तुकी शासनकाल। १७२१ ई० में इसने एक बार फिर स्वतन्त्र होने का प्रयत्म किया था। तुकौंका १७३३ ई० तक अकोपोलिस पर अधिकार रहा। तदनन्तर आधुनिक यूनान की यह राजधानी नियत हूई। आधुनिक ऎतिहासिक घटनायें यूनान के लेख के अन्तर्गत दिया हुआ हॆ क्योंकि इसका सम्बन्ध सम्पूर्ण यूनान देश से हॆ। अथोरा-- वडोदा राज्यके सिद्दपुर नामक एक उपभाग में लगभग डाई हजार जन संख्या का यह एक छोटा सा गांव हॆ। यहा पर गरोशजो का एक प्रसिद्द मन्दिर तथा एक धर्मशाला हॆ। अदन- यह अरेबिया के यमन का एक प्रसिद्द बन्दरागाह तथा नगर हॆ। यह उत्तर अ० १२४६ तथा पू० रे० ४५१० पर स्थित हॆ। यह बावलमएडपसे १०० मील पूर्व में लाल समुद्र के दक्शिणीय मुहाने पर बसा हुआ हॆ और अग्रेजोके आधीन हॆ। यहां की आब हवा को स्वास्थ्यकर ही कह सकते हॆ। पानी का बहुत कुछ प्रयनध पर भी उत्तम जल की बहुत कमी हॆ। कभी कभी बडॊ भीशण गर्मी पडती हॆ। अपने स्थानीय महत्वके कारण आदन यारप तथा एशियाके व्यापार का मुख्य केन्द्र बना हुआ हॆ। यहां कोयले की बडी बडी खाने हॆ ओर योरप जाने तथा आने वाला प्रत्येक जहाज यहा कोयला लेने के लिये अवश्य़ लड्कर डालता हॆ।यह नगर व्यापारके लिये भी बडा प्रसिद्द है। अरेबिया की मुख्य पैदावार यहां ही से बाहर भेजी जाती है। काफ़ी, गोंद, पर, रक्त, मोती तथा हाथी दांतका काम यहां से बाहर भेजा जाता है और रेशमा तथा सूती कपडॆ तथा खाघ पदार्त बाहरसे यहां आते है। अंग्रेजोंने यहा कि लाबन्दी कर रक्खी है ओर सौनिक छावनी स्थापित की है। यहां का विशाल् तथा रमणीक ताल दशर्नीय है। अंग्रेजो रज्य्मे यह नगर भी बडा उत्तम तथा दर्शनीय हो गया हॆ। य़हा की जन्सन्क्या भी उत्तरोत्तर बडती जा रही हॆ। स० १७३६ ई० मे केवल ४००० के लगभग थी, किन्तु ५४६२३ के लगभग हॆ। य़हा का प्रारम्भिक इतिहास विशेश उल्लेखनीय न्ही हॆ। सोलहवी शतादी के प्रारम्भ मे यह नगर पुर्तगीजके हाथ आया। किन्तु १७३० ई० से यह नगर स्वतन्त्र होगया और लहेजके शेखंवनशीय स्वतन्त्र सुलवान होने लगे। १८३७ ई० मे ऎक अन्ग्रेजी जहाज गयआदूनके समीप टूट तहस नहस हो गया। इसमे के मुसाफिरो के साथ अरब वालो ने बडी क्रूरता का परिचय दिया तथा सब समान लूट लिये। बम्बाई सरकारने अदन वालों से इस ध्रश्ट्ता का उत्तर चाहा ओर अन्तमें यह निक्शित हुआ कि अंग्रेजोअम को इसका हरजाना दिया जावेगा ओर वह वन्दरगाह भी अंग्रेजोंके हाथ बेच दिया जावेगा। किन्तु शीघ्र ही सुल्तान के पुत्रने यह सन्धीण्त्र तोड डाला। अन्तमें १६ जनवरी १७३६ ई० में बम्बाई सरकार को सेना भेजकर यह जीतना ही पडा। पहले यह बम्बई प्रान्तके ही आदीन था। किन्तु अब भारत सरकार के आधीन हो गया है। यहां के सैनिक तथा शासन प्रबन्ध के लिये भारत सरकारको बहुत व्यय करना पडता है ओर यह प्रक्श असेम्बली में भी कई वार उट चुका है।

         अदरक--देखिये आर्द्रक

अदवानी ताल्लुका-- मद्रासके बेलारी जिले के उत्तर की ओर् क यह एक ताल्लुका है। पहले यह निजामके राज्यके अर्न्तगत था। यह उत्तर अ० १५३० तथा १५४८ ओर पू० दे० ७६५६ से ७७३८ के बीचमें स्थित है। इसका क्शेत्रफ़ल ८३६ वर्गमील है। जनसंख्य़ा लगभग १ लाख ८० हजार है। इसमें तीन नगर तथा १६१ छोटे छोटे गाव है। इसका मुख्य स्थान अदवानी शहर है उसकी आधुनिक जनसंख्या लगभग १६५०० है। दूसरा नगर योमिगनूर है। वहा की जनसंक्या १४००० है। कोसिज की ८०० है। यह प्रदेश बिल्कुल चौरस है ओर मट्टी यहा की काली है। अतः कपास को उपज यहा की मुख्य है। कही कही पर टीले देख पडते है। यहा की मुख्य पैदावार कपास के अतिरिक्त चोलम तथा कोरा है। कर यहा १४ आने प्रति एकड लगता है। लारी फ़सलें बरसात के पानी पर ही निर्मर रहती है। जिस साल वर्श अच्छी नहीं होती उस साल बडा कश्ट होता है। १८७६-१८७८ ई० के भयंकर अकालमें तिहाई मनुश्य कालके मुंह् में पड गये। अदवानी शहर-- इसी नामके ताल्लुकेका मुख्य स्थान। उत्तर अक्शांश ६५३८ तथा पूर्व दे० ७७१७ में यह स्थित है। मद्राससे यह ३८७ मील की दूरी पर है। जिले भरमें मल्लारी के बाद य्ही सबसे शहर है। जनसंख्या (१६२१ ई०) ३०२३२ थी, आधुनिक आबादी २६५०० है। उनमें से ६० प्रतिशत हिन्दू थे। ओर ३७ प्रतिशत मुसलमान हैं। ईसाई बहूत थोडे हैं। अदवानी इस प्रांतमें कपासके व्यापारका मुख्या केंद्र है। यहा कपासके गट्टे वांधने के तथा विनौला अलग करने के अनेक कारखाने हैं। इन कारखानों में कपासके मैसिममें ७०० मनुश्योंको लगभग काम करते हैं, यहांका मुख्या घन्घा सूटी तथा रेशमी कपडोंको बुननेका है यहाकी दरियां मजबूत ओर पक्के रंगकी होनेके कारण प्रसिद्द हैं। इस शहरमें १८६७ ई० में यहां पर ५६५०० आमदनी तथा ५०००० खर्च था। पानीके लिये एक तालाब बना हुआ है जिसमें ४५०००० धन फ़ुट पानी आजाता है ओर उसमे सिचांमें बडी सहायता मिलती है। इतिहास-- यहांका किला गिरि शिखर पर निर्मित है। यह किला अपनी द्दडताके लिये प्रसिद्द है। क्रशणा तथा तुंगसडाके बीचकी उप जाऊ भूमिका यह मुख्या स्थान होनेके कारण द्क्शिण हिन्दोस्तानमें होनेवाली लडाइयोमें इस किलेसे बडो सहायता मिलती थी।