पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२१

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वर्ष चलाया। हिन्दुश्रोंकी धार्मिक भावनाफा आदर करनेके लिये उसने गोमांस खाना बंद करा दिया। वह अपनी सालागिरहके दिन हिन्दुश्रोंके समान तुला-दान करने लगा। दूसरी श्रोर वह पारसियोंकी तरह सूर्यकी उपास्न्ना करता था,और नवीन अझि तैयार करके उसकी पूजा करता था। लोगोंकी चमत्कार दिखाना उसे बहुत पसंद था। रोग अच्छा करनेके लिये अवह रोगियोंको अपने चरस्गोंका तीर्थ देता था। चच्चा होनेके लिये अनेक रित्रयां उसकी मशतें मानती थी। उसका दर्शन करनेके लिये बहुतसे लोग नित्य सवेरे श्राया करते थे।

  उसका मुख्य उधेश्य सब जातिके लोगोंको एकही शासनके नीचे लाना था। राज्यमें एकता स्थापित करनेके लिये मुसलमानी धर्म उसे अच्छा नही मालूम हुआ। अबुलफगजलकी यह कल्पना कि-राजा ईश्वरका अंश है-अकबर ने मान ली। अकबर स्वयं इस नये धर्मकी दीक्षा दिया करता था। जो कोई दीक्षा लेने के लिये आता था उसे अकबर एक चिन्ह या स्मारक दिया करता था।अक बर शब्दके दो अर्थ (अकबर का अर्थ बडा तथा अकबर बादशाह का नाम) होनेके कारण उपरोक्त वाक्यमें दो अर्थ 'ईश्वर महान है' तथा 'अकबर ही ईश्वर है' हो सकते है।
  
   तथापि उसने इस नवीन धर्मके सम्बन्धमें ज्यादती नहीं की।दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि उसने इस धर्मको माननेके लिये लोगोंको विवश नहीं किया। उसका मुख्य उधेश्य यही था कि राज्यका उत्कर्ष हो। स्वयं-स्थापित धर्मके अभिमानकी विवंकबुध्दि को नष्ट करनेवाली प्रबल वायुने उसके शरिर में प्रवेश नही किया था। इसके अतिरिक्त यह भी नही दिखाई देता,कि अकबर ने अपना धर्म चलानेके लिये सच्चे धर्म-संस्थापकके समान कटिन उघोग किया हो। यह बात कहने मे अतिशयोक्ति न होगी, कि अकबर सच्ची धर्म-स्थापना करने योग्य था ही नही। वह राजनीतिश था और ईसी लिये कि संसारके व्यवहार अच्छी तरह चले, उसने ये सब प्रयत्न किया। उसके धार्मिक परिवर्तन कितनेही योग्य क्यो न हो,पर यदि उनसे राज्यके काम में किसी प्रकारकी बाधा पडनेकी संभावना होती थी तो वह उन्हे स्वीकार नही करता था। धर्म के सम्बंध में उसने किसी पर अत्याचार नही किये। उसका विश्र्वास था, कि प्रत्येक धर्म में कुछ न कुछ तथ्य अवश्य है। उसकी बुध्दि किसी भी विषय पर स्वतंथत्र रुप से विचार करने योग्य थी, किन्तु वह हटी न था।
    आरम्भ में इस्लाम सम्प्रदाय पर उसकी द्द्ढ निट्ण थी; परन्तु जैसे-जैसे उसका ज्ञान बढने लगा, उसके मन मे सब धर्मो के प्रति समानता उत्पन्न होती गई। साथ ही पविथत्रता तथा नीतिके साथ व्यवहार करने वाले विभिन्न धर्मों के हजारों लोगों की सत्संगाति होनेके कारण उसे प्रतीत होने लगा कि धर्म तथा नीति में परस्पर कुछ भी संम्बन्ध नही है। सच पूछा जाय तो अकबर ने धर्म के सम्बंध में कुछ नही किया। हाँ, उसने पूर्व धर्मकी बहुत सी बातें उडा दीं। इस्लाम धर्मको अच्छा न समझकर उसके नाश करनेका उसने प्रयत्न किया;परन्तु नवीन धर्मको किसीने भी ह्रुदय से स्वीकार नही किया था: इस लिये वह उसके साथ ही साथ समाप्त हो गया। उसने स्वयं यह देखकर कि धर्मके कारण राज्य के कामों में बाधा पडती है, उसका प्रचार कम कर दिया।

(लेनपूल तथा सरदेसाईके 'मुसलमानी रियासत' ग्र्ंथके आधार पर।)

  अकबरपुर- तहसील। संयुक्तप्रांत। कानपुर ज़िले की एक तहसील। उत्तर अक्षां० २६२५ से २६३३ तक और पूर्व देशां ७६५७ से ८०११ के बीच में स्थित है। क्षैत्रफल २४५ वर्गमील है। इस तहसील मे १६६ गाँव है और खास अकबरपुर लगभग पाँच हज़ार जनसंख्या क एक गाँव है। सन् १६०३-४ मे कुल आमदनी २५१००० रूपये थी। इस तहसील की ज़मीन मे खारापन आजाने के कारण बहुत सी ज़मीन खेती के काम की नहीं रह गई है। इस तहसील को गंगानदी की लोअर कैनाल की एक शाखा से पानी मिलता है।
  अकबरपुर- तहसील। संयुक्तप्रांत। फैज़ाबाद ज़िले की एक तहसील। उत्तर अक्षां० २६२५ से २६३५ तक और पूर्व देशां ८२१३ से ८२५४ तक। क्षैत्रफल ५३७ वर्गमील। जनसंख्या लगभग तीन लाख पैंतालीस हज़ार । इस में अकबरपुर, मज़ारा तथा सुरहुरपुर तीन परगने है। इस में तीन बडे गाँव तथा ८५४ छोटे गाँव है।
   कुल आमदनी ५२४००० । मालगुज़ारी ४५१००० तथा कर की आय ८३००० । इसमे बहुत सी ज़मीन दल-दल और ऊसर है। इस ताल्लुके मुख्य स्थान अकबरपुर है।