पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२१३

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बंद करके अमीर उमरावासे संधि ही करते हैं,सो उसी के अनुसार करिए | पैसे के विषय मे कुछ ना कहिए| कृषन्गाको भेजे हुए के पत्र मे आदवॅनी हवेली थानो के संभंधमे उल्लेख है| रामचंद्र रिसवुड का नाना फॅरन्विस्को भेजे हुए पत्र से वीदित होता है कि वसालत जंग आदवॅनी के समीप ठरह है और सब ठीक है| य्धपि शक संवत मे मार होट ने आदवॅनीकी रक्षा की ,तथापि वे शक मे वैसा न कर सके | उस समय टीपू ने वह किला ले ही लिया | वालदेवशष्ट्री उसके संबंध मे इस प्रकार लिखते है| "वदमि पर क़ब्ज़ा होने के बाद हरीपांत तातियाँ माई के महीने के अंत मे , वहाँ से कूच करके गजेंद्र गडकी और गये| पैदल सिपाहियोंकि दो छोटी फ़ौजे उस किले के मोर्चा लेने के बाद टिपुके यहा से मदद के लिए आ रही थी|किंतु उन मार हठे सबरोने उन्हे बीच मे रोक कर सबको ख़तम कर दिया| उसके बाद किलेदारो ने घोर पड़े के मार्फत बातचीत करना आरंभ किया | आट दिन तक यादा विवाद होने के बाद किला स्वाधीन होने ही को था किी इतने मे यकायक यह खबर आई कि टीपू ने अधवानी को घेर लिया है|पाठको को पहले बताई हुई यह बात याद ही होगी कि अधवानी राज्य निज़म अली के भाई वसलत जंग का था| वसलत जंग इस समय मार चुके थे और उनके पुत्र मुहब्बत जंग अपने बाल बच्चो के साथ अधवानी मे थे| टीपू ने उस किले पर घेरा डाल कर बहुत तंग किया| परंतु मुहब्बत जंग जी तोड़ कर लड़ा और ष्त्रुओके दो हमले रद्ध किए| मुहब्बत जंग ने अपने चाचा याने निज़म अली से प्रार्थना की कि यदि वे मदद ना करेंगे तो वह बच्चो सहित शत्रु के हाथ मे पड़ड़ जाएगा; इसलिए यदि अपने कुलकी आबरू बचानी हो तो अथवा कम से कम अपने घर की महिलाओ को टीपू के हाथो मे जाने से बचाने के लिए तो सेना भेज कर सहयता करिए| निज़म अली ने तत्काल अपने छोटे भाई मुगल को अली के साथ पच्चीस हज़ार फौज रवाना की और हरीपांत तातियाँ को पत्र भेजा की वह अपनी सेना तथा मोगल अली के शेग्र ही अधवनि मे जाकर टिपुका घेरा हटावे| पत्र आतेही तातियाँ ने गजेंद्र गढ़ विजय करनेके लिए सेना अपने पास रख कर करीब ६ जून को अधवनि की तरफ रवाना की |उस सेना के मुख्य सरदार अप्पा बलवन्त्र राव थे और उनके आधीन बाजीपांत अप्पा,रघुनाथ नीलकरात पद्वर्धन तथा मुगल सेना सहित तहब्बर जंग सरदार नियुक्त किए गये थे| भागा नगर से मुगल अली आए थे| उन्हे अप्पा बलवंतने शामिल कर लिया और आधावनी की और तेज़ी से रवाना हो गये| उनके वहाँ पहुचते ही टीपू घेरा उठा कर तीन कोस पीछे हटा| तारीख ११ जून को तीनो सरदार, अप्पा बलवंत,बाजीपांत तथा रघुनाथ राव पतवर्धन तयार होकर टीपू पर चढ़ आए|टीपू ने सेना के आगे हज़ार बारह सो सवार रखे थे| मार हॅटो ने उन्हे मार भगाया और उसके सौ डेढ़ सौ घोड़े चीन लिए| इतने मे टीपू सुल्तान पैदल सिपाही तथा तोपोको लेकर शिविर से निकला और गोले बरसाने लगा| सूर्यास्त तक युध होता रहा और अंत मे मरहट्टोने टीपू का पीछा करते हुए शिवर तक हटा दिया| इतना युध हुआ तो भी मुगलो की चालीस पचास हज़ार सेना शिविर मे ही बैठी युध का तमाशा देखती रही|मरातो की उसने तनिक भी सहयता नही की|

  अप्पा बलवंत के निकल जाने पर दो दिन के बाद गजेंद्र गढ़ हारीपांत तातियाँ के हाथ मे आ गया| फिर वे भी आद्वनी की और गयी हुई सेना का पीछा करने के लिए वहाँ से निकल कर कावताल भानु तक गये| वे दिन अंत के थे तो भी तातियाँ विचारता था की तुंगभाद्रा को उत्तरतट पर थोड़ी सेना रख कर दूसरी और जाएँ और दूसरी और की सेना के साथ टीपू पर चढ़ाई कर दे और उस के देश मे उधम मचा दे| उस साल इस प्रतिमे मृग नक्षत्र की वर्षा नही हुई थी| यदि आगे एक दो नक्षत्र पानी ना बरसता होता तो तातियाँ की योजना सफल होती और शायद चार मास तक मुगल तथा मराठी सेनाओकी छनवी भी उधर ही हुई होती| परंतु आद्रहा नक्षत्र की वर्षा जोरोसे होने के कारण तातियाँ का दूसरी और जानेका विचार एक ही और आरह गया और उसे इस बात की चिंता होने लगी की जो दूसरी और अकेली फौज आधवानी की सहयता के लिए भेजी गयी थी,वह कहीं नदी मे बाढ़ आने से दूसरी और ही न रह जाए|ऐसे भभटके दीनो मे टीपू ने आद्वनी को