पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२१५

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लिए नियत करदी है| यह बर्तन तीन से दस फीट तक गहरे है और एक दूसरे से ६ फीट के अंतर पर गाड़े हुए है| इन बर्तनो के अवशेष तथा उसमे रखी हुई वस्तु आव भी अच्छी स्थिति मे मिलती है| असली सोनेके आभूषण उत्तम नकाशीदार लोहे तथा काँसे के बर्तन इत्यादि कूल मिलाकर अब तक १२०० वस्तुएँ मिल चुकी है|लोहे की चीज़ो मे टाँगने की लॅनट्न,तलवार,भले,चाकू,हात्ोड़े, केँची,चूड़िया,त्रिशूल,नकाशीदार सुराही इत्यादि अनेक वस्तु मिली है|काँसे के कटोरे,सुंदर दीपक इत्यादि भी मिले है| यह सब यत्त पूर्व मद्रास के अजयव घर मे रखी हुई है| कुछ का कथन है कि प्राचीन काल मे यहाँ एक बड़ा विशाल नगर बसा हुआ था|रिय साहब का मत है कि यह नगर तथा उसके अवशेष पांडव राजाओ के काल का होगा|मरातको को गाड़ने की प्रथा से इस मत की पुष्टि भी होती है|संशोधन का काम अब भी जारी है|इससे प्राचीन इतिहास का धीरे धीरे पता लगता जाएगा|

 अदिति- वेद तथा पुराण दोनो ही मे इसका उल्लेख मिलता है|
 पौरगिक स्वरूप-यह कश्यप ऋषि की तेहरा पत्नियो मे से सबसे बड़ी स्त्री थी|यह प्रचेतस दक्ष की कन्या थी|

आदित्या नमक बारा देवता इसी के पुत्र थे|एक बार मैनाक पर्वत पर स्थित विनशन नमक तीर्थ मे अदिति ने चरू पकाया था|प्राज्योतिष नमक एक असुरो का नगर था|वह मनुष्यो द्वारा अगम्य तथा अबेध समझा जाता था| उस नगर का भूमीपुत्र नारकासूर नमक महाबलवान दैत्य अदिति का रखत्चीत कुयडल चुराकर भागा जा रहा था| श्री कृष्ण ने वह कुयडल उससे छीन लिया और वापस ले आए|कदंब कवि द्वारा रचित'अदिति कुआएेदल अपहरण नमक नाटक मे यही कथा विस्तार पूर्वक दी हुई है|

   एक कथा दी हुई है की अदिति के पेट मे श्री कृष्ण ने सात बार गर्भ रूप मे वास किया था| अदिति के 

प्रॅशिन आदि जो भिन्न भिन्न अवतार है उनमे से एक मे उसके गर्भ से श्री कृष्ण भी उत्पन हुए थे|एक समय देव्युग मे जब सब बड़े बड़े महात्मा ही तीनो लोकपर अनुशासन करते थे,उस समय पुतरप्राप्ति के लिए एक पैर पर खड़े होकर अदिति ने घोर ताप किया था| इसी कारण विष्णुको जन्म-जन्मान्तर उसकी कोख से जन्म लेना पड़ा|

वैदिक स्वरूप:-अदिति पर वेद मे स्वतंत्र सूक्त नही मिलते किंतु इसका उल्लेख अनेक स्थानो मे आया है इसका कोई 

विशेष रूप भी निश्चित नही देख पड़ता|कहीं कहीं पर अनर्वा विशेषण प्रयुक्त किया है|मित्रा वरुण की तथा आर्यमा की इसको माता लिखा है|अत: यह राजमाता कह कर संबोधित की गई है|यह बलवान पुत्रो को उत्पान करने वाली कही गयी है| ऐसे आट पुत्र कह गये है|उसको 'पासतया' भी कहा है|

    पौरगिक कथाओ मे इसको दक्षकन्या तथा कश्यप पत्नी कह कर उल्लेख किया है|किंतु वेदो मे इसे विष्णु पत्नी 

लिखा है| 'दिति' का अर्थ बंधन किया है और 'अदिति' का अर्थ मुक्त है| जल प्रथवी आदि की उत्पान करने वाली इसको माना गया है| आगे के सुक्तो मे इसे इनकी मताभाव कर दूध पिलाने का वर्णन किया है|अन्य स्थानो पर इसे प्रथवी का हो रूप मानकर वर्णन किया है|ऐसा भास होता है कि इसे विश्वश्रीष्टि की मूर्ति का रूप दिया गया है| सूर्य की माता होने से कभी कभी इसे तेजोंयी माना गया है| तेज प्राप्ति के लिए उसकी प्रार्थनाएँ की गयी है| इसके अत्ये तेज का वर्णन करते हुए इसके मुख की तुलना 'उषा'से की है|कहीं कहीं पर ऋग्वेद मे वैदिक ग्रंथो मे इसको 'गो रूप' माना गया है|भूलोक के सोमरास की तुलना अदिति के दूध से की है|

    उपरोक्त कल्पानो से अदिति के दो मुख्य स्वरूप मालूम पड़ते है|एक्तो देव्मता ,दूसरे शारीरिक तथा नैतिक 

दोष बंधानो से मुक्त करने वाली अन्य शक्ति| इसके नाम संबंधी कल्पानो से इसे गौ प्रथवी,अंतरिक्ष,विश्व,आदि संगया प्राप्त होती है|किंतु इन निराकार वस्तुओ को आकार कैसे प्राप्त हुआ तथा सूर्यकी माता कैसे हुई,इसका कारण पता नही|वार्गा इनके मत से देवता को दूध देनेवाली माता अदिति आकाश रूप मे ही होगी| ऐसी कल्पना मे ही अदिति के मरत्व भाव को खोज निकालना होगा| दूसरे मत के अनुसार