पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२१७

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को ईदी गई जिस पर आगें चल कर शांतनु मोहित हों गये ये । इधर यह श्रणसराभी आप मुक्त होकर स्वर्गकों पधारी क्योंकि ब्रह्माका शाप था कि दो मानत्रोंको उत्पन्न करके वह आपसे मुक्त हो जावेगी। खदूतै-'विश्व' ( संसार ) का स्पष्टरूप जताने कें लिये जिस विचारधारा का अयसंव्र किया गया है उसीका भारतीय नामकरण श्रद्वैत हैं ! इसी को शारुत्रोंय ( शास्त्रयिदु ) भाषामें 'कैब्लाद्वैत" कहते है। इसका समर्तन करनेवाले कहते है कि यह विचारधारा या तत्वज्ञान खन्य भारतीय तत्वज्ञानों की श्रपेज्ञा श्रेष्ट पुर्ख है।एक बात यह भी है कि भारतवर्षमें इस विचार सरणी को माननेवाले मीथदुतहैं । इस विचारधारा' नाशूक्ररनेकै लियेवादमें 'विसिंप्रादैत' ‘शुद्धादैव्र और 'दैत' आदि अनेक मतसांभ्यदाय उत्पन्न हुए और कुछ समय तक यहा जोर पाँधे हुए थे, परन्तु डाहैत तत्वज्ञान का प्रभाव केवल भारतषर्षहीं पर नहीं फिन्तुसंसारकै सर्वमान्य विचारोंकै विकास:: भी पड़ रहा है । ऋगबैम्लकै १०पै मण्डखमैं तथा उसके उत्तरकालीन सूकौमैं दिखाई देनेवाले तत्व- ज्ञान विषयक क्योंके विचारों का उपनिषदों, फिसप्रकार विकास हुआ, देसेही इन ग्रंथोंमैं रतस्तत्रा बिखरा हुआ तत्वज्ञान "अहैतआरि" मनीकी अग्निम सीमापर सिख तरह जा पहुँचा- द्दत्पादिबिप्रमुँत्रुपूरतिद्वाड्डूणाही मनोरंजक है। यदि संस्कृतमे भारतीय तत्वडानका इतिहास ध्यानमेंलानाहींतं। यहदिखाईदेगा कि 'उपनिषदु' ग्रंयदी मूल (जड़ट्ठेहै और केवल यहीऐसे विषयों पर नान्दिफ ग्रंथ । उपनिषर्दोमैंलिथित्रतत्त्वडान छाँटकर एक जगह स्पष्ट दिया जुया नहीं है इस लिये सृष्टिफी उत्पत्ति जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नोंयर भी कोई अबाधित सिद्धान्त साफसाफ नव्रर नहीं आता 1 उपनिधदकै तत्त्व वेइति सूपीमैं अधिक स्पष्ट दिखायी देते हैं। कुछ सूत्रोंका समावेश दर्गनोंर्मे सुआ हैं । सब 'दर्शन' उपनिषम्मूखक नहीं हैं। सूत्र-साहित्यकै रचनाकालमें झणक दर्शन को सुव्यवस्थित आकार ( रुप ) दिया गया होगा । इसी कालमे संख्या, वैशेषिक भीमसिंक ८ हैयाविक आये अनेक साँप्रहृक्योंकै उरुपाइकौने अपने अपने मर्तोंकें अनुसार सूत्र-ग्रंध निर्माण किये ओर अपने मर्तो को एक निश्चित रूपमें टाला । ऐसे सूत्रकारों में एक मुख्य सूत्रकार आचार्य पादृरायणने 'शरीर सूत्र' वा "वेद2तसूत्र' तयार किया । पाल डॉयसेनबे शम उपस्थित की है कि आजकल प्राप्त होने वाले बाश्ययण सूर्गीमै जो बादराथण सम्बन्धी उल्लेख है उनसे पता नहीं चलता कि थे वादरायण सूत्रोंकै कर्चा थे या नहीं इस सूह्म-ग्रंथमै अनेक वेर्वात-विरोंधी मनीश खण्डन है । फिर भी इस बिषय का मठ पूर्णतया आज निश्चित नहीं है । गुन सूबों और भगवदुमीता पर बमुत्तसे वेहाँताचार्योंने अनेक भाष्य किये ओर अनेक अड्डा स्थापित किये । इनमेंसे शकिर'मस केंत्रलाब्र त' मत है । पश्चात्य पगिडत ११० गोदने अपने 'उपनिषदकै गांबज्ञान' नामक ग्रन्थमैं यह सिबांदा प्रतिपादित कियाहै कि आचार्य घादरायणने वेवांवसूर्षोंपे जिस "अदैत" भत की स्थापना को है उसी परंपरागत प्राप्तमव्रका पुनरोंदुधाटन शंकराचार्य) हुँ 'प्रस्थानत्रयी’ पर भाष्य लिखकर क्रिया । जर्मन परिजन जाऊँ यौयोने अपने ग्रंथ-येदान्त तूत्रोंपर शंकर भाष्य' की प्रस्तरवनार्में यह सिद्ध करनेका है प्रयव्र क्रियदृ है शंकुराचाट्टूमैं द्वारा 'अदैत' मतकौ स्थापना होनेके पूर्व अर्थात् सूत्ररब्ला कालसे रोकर अहूँत मत का प्रस्थापन करनेके कालचक्र ३ पौधायनआप्रेय, आश्यरष्ण ओइलोभी. कार्था-जिनि, काषकृत जेमिनी, यादरायण आदि अनेक वैदिक मागौके आचार्योमै जीय ओर ग्रहाकों पूर्ण १ एकताकै विषयों तीव्र अतभेइ था ( वेदांत सूत्र आ १, पाद ४, सूप २०-२२),। और भी _यादरायण सूत्रोंपे दिग्दसिंत होनेवाला सत्यमत, जाख्यावार्य दु के 'अबैत' मतसे नहीं मिलता वहिक रामानुजा-चार्म द्वारागादमैं प्रस्थाधित 'थिशिटार्दटड्ड मासे चै ही मिसवृर है आहैंनेफपपिडर्तोंपै तो इसविषयर्मे भी बघुन मत्रभेइ को देता है कि 'अबैत’ माका अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग 'मायाधात्र1 मूल प्रस्थानत्रयौमैं ही दिखायी देता है या शस्थिवार्षने अपनी अलौकिक बुद्धिकै बललेइसको द्देढ़ निकाला और अपने अबैत मव्रर्वे आड दिया । कौलतुफ ( मायावाद को ) जैसे विद्वानोंकां कथन है फि' मायावाद' मूख उपनिषद ग्रंर्थोंपै नहीं दिखायी देता वस्ति इसकी शंकराचार्यमे जन्य दिया । किन्तु इसके ३ विश्व पाआत्य पणिडवृ एशौहने दिखलाया है हिं दिखायी देता है या शस्थिवार्षने अपनी अलौकिक बुद्धिकै बललेइसको द्देढ़ निकाला और अपने अर्दश्त मतर्वे आड दिया । कीलनुक ( मायावाद को ) जैसे विद्वानोंकां कथन है फि' मायावाद' मूख उपनिषद ग्रंर्थोंपै नहीं दिखायी देता वस्ति इसकी शंकराचार्यमे जन्य दिया । किन्तु इसके विश्व पाआत्य परिमित एशौहने दिखलाया है कि मायावाद' का प्राथमिक ला उपनिषद अंयमें जगह जगह दिखायी देता है केबल उसको सिल- सिलेवार रखनेफा काम बादमे हुआ है । यदुनसे पण्डित यह भूलते हैं कि बेरों ही में मांयावखका अलिधत्य है । बैत अथवा अयु त उरी-नौका वर्गी- करण आजकखकै 'मोनिस्ट' अथवा "डपुश्रलिस्ट"