पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२३५

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नामक नाटक लिखा था। आनन्द वर्थनकै तथा उसके टिकाकरके ग्रंथोमें इसका उल्लेख पाया जाता हैं ( पिशेल Z,D,M,G,39,P,815 ) आनन्द वर्धका काल नवी क्का उत्तरार्ध समझा जाता है । अत: यह अनुमान किया जा सकता है कि अनन्न हर्ष इससे पूर्वमैं अवश्य हुआ होगा । इसने रखावली' का आधार कई जगह पर लिया है । अता यह स्पष्ट है कि इससे नाटक ७र्वी शताब्दी से ९ शताब्दीकॅ मध्यसे रचा गया होगा । तापस वरुसराजकी कथा महाकवि भाखके ३खप्रवासड़ेदत्ताके समानही है । हाँ, इसके नाटक मैं कृछं नवीन धटनाओं का उल्लेख अवश्य है संक्षिप्तमें उनका उल्लेख नीचे दिया जाता है। बासवदत्ताकी मृत्युके अनन्तर ' उदयन तपखी हो जाता है । आगे चलकर पौरान्धरायणकैउद-यनका चित्र देखते ही पद्मावती ' उसपर अनुरक्त हो जाती है छोर उसीके प्रेममैं तपखिनी बन जाती है 1 वासवदंत्ता तथा उदथनका संवाद इसमें नहीं दिया- हुआ है । इसमें. दोनोंका साक्षात प्रयागयें उसके समय होता है ओर तभीरूमएवत के मृत्युका समाचार भी प्राप्त होता है। अनननास…श्चका वृत्त कैवड़ेके वृक्षके समान'होता है 1 इसके पत्ते तीन, साढे तीनफीटलंबे तथा दो हश्र चौडे होते हैं । इसके पले प्राय: हलके हरे रङ्कके होते है । परन्तु कभी कभी ३रङ्ग-बिरंगे भी दृष्टिगोचर होते हैं । इस प्रेड़कातना बहुत ही नाटा रहता है । इस वृक्षकौ रचना ध्यान देने योग्य होती है । जब्र वृक्ष फल लगने योग्य हो जाता है तब उसमैंसे एक डंडी विक-लती है । उस र्द्धड१पर घने फूल लगते हैं । प्रत्येक फूलका स्वतंत्र फल नहीं होता किन्तु सव फूल मिलकर एक फल होता है।