पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२३६

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अनननास ज्ञानकोश.(अ) २१२ अनननास उसकी खपतकी ओर बहुत है। तथा इसके डालदेनी चाहिये । वेस्टइण्डीज़ के अनुभवसे व्यापारको बढ़ानेका पूरा पूरा प्रयत्न किया जा रहा फिरङ्गर कहता है कि अधिक खाद देने से पौधा है। यद्यपि भारतकी भूमि भी अनननासके लिये मर जाते हैं। सड़े हुए पत्ते, छिलके, सड़े हुए उपयुक्त है और पैदा भी यह बहुत होता है, किन्तु गोबर से युक्त और बालू कामय पोली जमीन पर न तो इसकी खेतीकी ही ओर विशेष ध्यान दिया अनननास पैदा होता है। छायामें पैदा हुए जाता है न इसका व्यापारिक दृष्टिसे ही कोई अनननास बड़े अवश्य होते हैं किन्तु वे स्वादमें महत्व है। इसकी खेती करके इसका व्यापार उतने अच्छे नहीं होते। फल तैयार होते समय करनेसे काफी लाभ उठाया जासकता है। पौधे को पानी बराबर देना चाहिये कुछ दिनोंके ( States Settlement ) स्टेटस सेटलमेन्टमें बाद पौधे का स्थलांतर करना लाभ दायक होता उपरोक्त मत सिद्ध किया जाचुका है। है। तीन चार वर्ष के बाद वे पौधे व्यर्थ हो जाते . उपयुक्त जलवायु तथा प्रदेश-पहले पहल भारत हैं। उस समय उनको उखाड़ कर जमीन फिरसे में यह पूर्वीयतट पर लगाया गया था, किन्तु शीघ्र तैयार करके दूसरे पौधे लगाने चाहिये। ही पश्चिमीय तट पर भी इसकी खेती होने लगी। सीलोन, ट्रावनकोर, मालावार, कोरा मांडल बंगाल, आसाम, बर्माकी भूमि तथा श्राबहवा कनारा और बङ्गाल इत्यादि प्रान्तमें इसकी खेती इसके उपयुक्त है। (Western-ghats) पश्चिमीघाट होती है। अनननास के वृक्ष बहुधा समुद्रके के किनारों पर यह बहुत पैदा होता है। खासिया| किनारे होते हैं। अर्थात् इन्हें बहुत नम हवा की की पहाड़ियोंमें तथा आसाममें यह स्वतः ही बहुत आवश्यकता होती है। अनननास की खेती पैदा होता है. और साथ ही साथ अच्छे मेलका स्वाधीन नहीं होती इसकी खेती नारियल, सुपारी होता है। डॉ. हेल्फरका कथन है कि तिनासरिममें अथवा श्राम के बगीचों में करते हैं। बम्बई शहर रुपयेमें पूरी एक नाव भरकर खरीदी जासकती है। के आस पास जहां रेलगाड़ी श्रा जा सकती है जाति अथवा किस्मै-भारतोय लेखक तो केवल वहां अनननास की खेती की ओर अधिक ध्यान इसकी दो किस्में बताते हैं। फिरमिगर (Firmi- दिया जाता है परन्तु ओर जगहोंमें इसकी खेती ger) का कथन है कि सिलहटी जाति का लापरवाही से की जाती है। अनननास छोटा होता है. आखे कम किन्तु वे बहुधा निम्नलिखित रीतिसे इसकी खेतीकी विचित्र प्रकार की होती हैं। ढाके का अनननास जाती है। इसकी कलम भी लगायी जाती है और चिकना और सफेद आँखदार होता है। उसने यह यो भी पैदा होता है। इसके छोटे छोटे पौधे सीलोन, पेनाङ्ग तथा इङ्गलैण्ड से आने वाले उखाड़ कर दो वर्ष तक गमलोमें लगा रखते हैं। अनननासों का भी वर्णन किया है किन्तु उसके तदनन्तर श्राम इत्यादिकी बाड़ीमें दो तीन फीट वर्णन में भी भारतीय अनननासों की भिन्न भिन्न गहरी जमीन जोत कर पौधा लगाते हैं। इसमें जातियों का वर्णन कहीं भी नहीं मिलता। फल लगनेमें दो तीन साल लगते हैं। पेड़ लगने भूमि तथा खाद-कुछ लोगों का मत है कि पर इसमें अनेक शाखाये फूटती है, और सब बालुकामयी तथा चिकनी मिट्टी वाली जमीन जमीन अनननासके वृक्ष व्याप लेते है। कुछ लोग इसके लिये उत्तम होती है। ऐसा स्थान जहाँ पेड लगनेपर वर्षाऋतुमें एक एक चुल्लूभर रेड़ी पानी एकत्रित न हो जाता हो वहाँ इसकी खेती के तेल की खली पौधोंमें देते हैं कोई अप्रैल या अधिक उपयुक्त होती है। कुछ का कथन है कि मई महीनेमें सारे बाग को पानीसे सींचते हैं। कि बालू में भी अनननास पैदा होते हैं। इसके अतिरिक्त और कोई विषेश कष्ट इसके लिये ज़मीनमें चूने का प्रमाण अधिक होना लाभ कोई नहीं करता। फूल जनवरी अथवा फरवरीमें दायक होता है। प्राणिज खाद बिना सड़े पौधे के आता है। और जूनमें फल तैय्यार होता है। पास नहीं डालना चाहिये क्योंकि उससे उनके वृद्धि | अनननासके वृक्ष खुले मैदानमें अच्छे नहीं होते। में बाधा पड़ती है। स्वीड का कथन है कि जमीन फलमें धूप लगनेपर फलभी अच्छा नहीं होता। जितनी उपजाऊ और खाद जितनी उत्तम हो बर्षा ऋतुमें कोंकनसे अनननास बाहर भेजने की उतना ही अनननास की उपजके लिये लाभदायक व्यवस्था नहीं है. इस लिये सब पैदावार व्यर्थ है। क्षार तथा सूखी हुई मछलियों की खाद की हो जाती है। बुडरो नामक विज्ञान-वेक्ताने बहुत स्तुतिकी है। पैदावार और फसल-फल तैय्यार होतहा उसका कथन है कि वर्षाके पूर्व वह खाद जमीनमें तनेके श्रासपास अथवा जमीनमें लगेहुए तनेस