पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२३७

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श्रकुर निकलने लगते हैं। इससे पैदावार श्रच्छी होती है। इस सम्बनघमे निकोलस साहबके बतलाये हुये खेतीके तरीके नीचे दिये जाते द्दे:-- छ:छ:फुटकी दुरी पर पंक्तियाँ खींचनी चाहिये, श्रौर् प्रत्येक पंक्तिर्में कमसे कम तीन फीटके श्रन्तर पर पौधे लगाने चाहिये । इस प्रकार एक एकड जमीनमें २५०० पौधे लग सकते है । पहली फसल श्रातेही पौधेके लगभग चार श्र्ंकुर छोड़कर शेष काट् डालने चाहिये । इससे दूसरी फसलमे १०००० फल उत्पत्र् होगें । पौधे क्ंटीले होनेके कारण बीचमें काम करनेके लिये श्रावश्यक स्थान पक्तिके मध्यमे रखना चाहिये । इसके श्रातिरिक्त,दो पक्तियोंमैं श्रधिक श्रन्तरके रखनेसे पुराने पौधे उखाड़कर नए पौधे दीनों पक्तियोँके बीचमैं लगाये जा सकते हैं । इस तरह् एकही जगह पर कई फसलें उत्पत्र् हो सकती हैं ।

 वेस्टइएडीज़मैं खेतीके श्राठ या भी मास बाद फल तय्यार् हो जाते हैं । फिरंगर का मत है कि

भारतके दक्षिण भागमैं श्रगस्तमैं इसकी खेती करनी चाहिये । फरवरी और मार्चमें पोधेमे फूल श्रा जाते हैं । जूलाई तथा श्रगस्त्में फूल् पकना श्रारम्भ होजा है तथा सितम्व्रर् श्रक्तूव्रर में वे बढ़ कर पूर्ण तय्यार हो जाते हैं । कभी कभी जब फूल् श्रानेमें देरी हो जाती है तो जाड़मैं फल तय्य्रार् होते हैं । भलीमाँति पकनेके लिये उष्णता की श्रावश्यकता होनेके कारण जांड़ेमैं यह श्रच्छे नहीं पक् पाते, श्रत्: स्वादमे भी ये खट्टे तथा श्रक्रिय लगते हैं । बुडरोका कथन है कि उत्तम प्रकारके पौधीके खेती जनवरीसे मार्षतक् बम्बई प्रान्तमैं करनी चाहिये श्रोर श्रंकुर फूटने तक बराबर पानी देते रहना चाहिये ।

 फलपृरा परिपक्क् होनेके पूर्व ही उसे तेज चाकूखे काटना चाहिये | यदि कहीं दूर फल भेजना हो तो प्रत्येक फलकों घास श्रथवा कागज में लपेटना चाहिये | दो श्रथवा तीनसे श्रधिक फलोंको एक्मे नहीं बाँधना चाहिये । फल दबने श्रथवा श्रधिक पकनेसे सड़नेका डर रहना है । एक फल स्र्र्ने से सब फल खराब हो जाते हैं ।
 धागा तय्यार् क्ररना-पत्तोसे उत्तम धागा निकलता है । फिलीपाइनं व्दीपमे एक पाइना नामक कपड़ा इससे तय्यर् करते है जो मलमल के समान होता है । उत्तर बड्गालके रद्वापुर जिले

के चमार जूते सीनेके लिये इसीसे धागा तय्यार करते हैँ । इसलिये धागेकी वहां श्रहित माँग रहती है । गोवाकी श्रौर् लोग धागेके कएठे गलेमैं पहनते हैं । खासिया पहाडी के श्राननासके धागेसे तय्यारकी हुई थेलीको बालिच नामक एक गृहस्थने १८३६ ई० में खरीदी थी। इससे स्पष्ट हे कि यहाँ कें लोग धागाका उपयोग पहले भी जानते थे । सन् ई० में ईस्ट इण्डियन श्रसोशियेशनके सन्मुख् वेन्ट्न् साहब ने श्रासामके व्यापारके सम्बन्धमें भाषण देते हुए कहा था कि सिलहट मैं श्रनननास, उसके पक्तोंके धागे उससे मधार्कका व्यापार किया जा सकता है । हाल ही मैं स्रर० जे० बक्रिन्धमने श्रासामी धागेको लंदनके इम्पीरियल इन्दटीट्थूट्में परीक्षार्थ् भेजा था । वह धागा परीक्षामें श्रति उत्तम ठ्हरा । इसके एक टन का मूल्य २० से २५ पौएड् तक हो सकता हैं । श्रन्य देशोंकी श्रपेक्षा यहाँ तो श्रनननाससे भाँति भातिके लाभकौ श्रौर् ध्यान भी नहीं दिया जाता इसका यदि पूर्ण उपयोग किया जावे तो श्रत्यन्त उपयोग् हो सकता है । इससे श्राष धिरुपमें श्रनेक उपयोग होसका है । इससे मघराक् श्रौर सिरका भी तय्यार् होता ।

 श्रौषधिगुएधर्म -- श्रनननासके पक्ता रस पेट की कृमियोंके नाशके लिये बड़ा लाभदायक है ।

दन्तविकारोंमें फलका सेवन करना चाहिये । चीनीके साथ ताजे पत्तोंका रस पिलानेसे हिचकी बन्द हो जाती है । कृछका मत है कि श्रनननासके रससे गर्भपात हो जाता है । कच्छे श्रनननासका सेवन् करनेसै स्तम्भित् ऋतुस्त्रात्र् ठीक समय पर होने लगता है । इसके सफेद भागके रसको चीनी मिलाकर पीनेसे पेटकी कीडी गिर जाती है । पक्के फलका रस सेवन करनेसे पीलियामें लाभ होता है । श्रनननासके पत्तेके धागोंसे उत्तम तथा मजबूत कपडा बनाया जा सकता है । सिघा-पुरके लिफीर्निया इत्यादि स्थानोंसे श्रनननासका मुरब्बा बाहर भेजा जाता है। इसी प्रकार यह व्यापार भारतके मालावार इत्यादि प्रान्तोंसे बडे सफलता पूवंक किया जा सकता है|

 श्रनन्त---(१)परमेवरका एक नाम् (२) एक कदुपुत्र | (३) कभी कमी यह शब्द शेषनागके लिये भी व्यवहारमें लाते है । (४) श्रनन्त चतुर्दशीको पूजा करके हाथमें बाँधा जानेवाला १४ गाठ्का एक डोरा । इसी प्रकार यह स्त्रियोंके बाय् हाथमें भी बांधा जाता है |
 श्रनन्तव्रत्--यद्द एक मुख्य भारतीय ब्रत है । । प्रति वर्ष भाद्रसुदी चतुर्द्शीको इस व्रतका पालन