पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२४१

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अ-ब ज्ञानकोश ( अ ) चाल बसम यहित्शेखमानहैयायन्हों, उवा९राशके लिये हो-कारण अ-जाकि का अर्श मतरसे म आयउ र व संत शक्तिभीकियाजासकताहै: है: हैं: प्रसाद-पारा-: हैर-बत्रा: । अनन्त हैमर का अम अनन्त जाम कलमी युरी-संगत नहीं है कि किसी हो समान समान किया जाना अभ: है । इसी अपर: वक्ष को संत.: का है१११ष्ट दो वचन । अनन्त कल्याण का सम्पूर्णहित गुण-वाचक अर्थ कीसौद्यसाके भेदसे तुकनानहीं जासकता 1 लगाना चाहिये । कलश ई-रकी मते उदाहरणार्थ यह नहीं कहा जा सकता कि नीले कम-रोज अस-कीच-काया और हरे रख्या भेद हरे छोर पीले र-के भेदके पंत रई ही : समान ही है । इन उदाहरणों, स्वय अथवा । अनन्त-विस-भा (प्र1द्वा०ह ) यहि एक कहि अण्डमान-धारण-असा-सायर".) अंश से देखाजाय तो वि१त्९भी अ-बम समावेश की-' परम. अम मानब हिल कोई : होता है, क्योंकि उन सख्या का समावेश होना है भी आधार नहीं हैं । उसी भय यहि मिल भिन्न गुणधर्म-आक उदाहरण लिये जाम तो इसमें तनिक भी सन नहीं रह जाता कि वे संख्या मर्मादित हैं । आधि सव अयन साम्य विकास द्वारा रस काधिनाई कोई उन हए नहीं व जाता कि यब पदार्थ अनन्त अब विभाज्य है । अनत-मर" तत्ववेत्तयने छजझके जोअनन्त१ही। क्रिखइससे यह नहीं कहा जासकता कि विअलों अस्तित्व ( अजि७१टा10म ) अनन्त है । यहि अम का अर्श इतना ही लिय-धि जीकल्पना करने योग्य गोले सत्य हो, तो यह कहना यल (के सिप्रार्थ असल ही अलख भार पर है । किन्तु यह कहना करिम है कि वि-ब ही अनन्त है । केवल -व्यज्ञादि१रिर अ-ब को कल्पना का उपयोग ईश्वर की ( पुर्ण होने की दृष्टिसे ही यह अल अवश्य कमल किया है है असत्य की ऐसी कहना कहा जासकता है । द प्राय ज्ञान, कांस तशरवयज' आहि आँके ही अनन्त. है यह भारकराचाय का श्चियमें ब१जा४रे है: इस बन्पनामैं यहि असत्य वंशज था । धमनी स्थिलके २० र अध्याय का अर्थ असीम लिया जाय तो अन-नसे । और वृ-तक पर इसने टीका की है । इसका तात्पर्य होगा केवल जय को अनन्त संख्याका शक संक ११४४ है (शंख बा० यन-भारतीय ज्ञान है सख्याकी घटना एकही तब पर होनेसे जयोतिशशज) कोई भी ।त शणिशश अमल सं-बाकी कल्पना ( हुए उह कृष्णभक्ति संदिका नामक नाटक कर सकता है देखा होने पर भी यह नहीं कहा का के था । इसके विरत, का नाम आय य: । जासकता शि संस सम्पूर्ण पार-रिक-य अस देव राजा बाज-के आय रहना से बह मिड होगा । ९ससे आम-म अनन्त । जाम । उसका दिखा अ-पर्व-न अनाज अनके विन समझने आ सकता है है का पुछ और पूर्व-खले आपस का जाती था : किन्तु अल का अर्थ असहित लगाने पर [ ( आँ-मजट-अउ, ईट, पीट-, रिपोर्ट ४ ) अनाज. की (जपना करम, अत्यन्त कय अन.-. "श्रीश.). आनि, है । कुच संश्वकारोने श-अन-मश-पर न बडे बस, गो-, वाणी जाय जन्तु होते हैं । अनुमान हैम' (दह देखब व्यर्थ हीष्टिद्ध द्वार । । यह अंधीपाद चले का ही एक धन है । रन.' जे/मगी है- मगे-पके 'सगर अनन्त-जाकिया तथ-की-कीचन सशिम्यहोताहै । आलम अथ पवार-विरान घटनाओं को पकरी गोल । के संबोशसे ही इनकी अयनिम उसकी रन करना है । भी रन सफेद, उत्तम को खराब, है है अपने चीरकर स, युगल-, के अथवा अनन्त को सम ( अम. है, २-तिर को ए । तीन पकरी यह कीधही पहचाने मसकते है । अथवा ., इत्यादिके स, समावेश करना: इनके कबन्ध-पर अनेक वलयहोते हैंऔर किन्तु अनन्तर-ब परिपूर्ण ईश्वर: शकी का प्रत्येक वलय: साथ दो देर उई रहने हैं । चल तनाव भी समय है 1 अत अमल शन्ति । मय क-शरी अथवा कीटवश्वगौले इनकी मैं से लिये द्वार कोई भी विशेष प्रण को ही प्रकट । तुल करने पर इन बहुत कमी म पन है । करना सम्भव देख यम' है, क्योंकि ऐसे समय इस छोर्णत्री अंयके दो मुख्य भाग किये गये है । अभय अथवा अप्रिय पदार्थ अलग कर दिये. पहला मतम अपन ( (प्र-पता ) और इधर, जाते हैं । ऐसे ही लिये हुए विशेरंके अनन्त मजखन ( ()1.101, ) का है: कुछ जानी