पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२४७

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अनन्त मूल ज्ञानकोष ( अ ) २२३ अनयमुड़ी यह निश्चय होनेपरकि फंदी तमाशा कर रहा है उस शक १५२० था । ग्रंथ-रामायण, रुक्मिणी का धड़ सिरसे अलग करनेकी उन्होंने प्राज्ञा दी। स्वयंवर, कालिया-मर्दन (सं. क. का सु.) यह समाचार तमाशेमें फंदीको मिलते ही उसने अनंतमुत-(विठ्ठल ) यह कवि करीब ७० तमाशेको कीर्तनमें परिवर्तन कर दिया। तब बाई वर्ष पूर्व बड़ौदामें हुआ था। इसके पिता अनंत प्रसन्न होकर और फंदीको इनाम.देकर आगे बढ़ीं हांगा नदीके किनारे पिंपल गाँवमें रहते थे। वे (म. कविचरित्र) पिंपल तथा तीन अन्य गाँवोंके जोशी और पट- अनन्तमूल-अनन्तमूल,अनन्तवेल सुगंधि | वारी थे। विलकी माँ का नाम राधाबाई था। वाला, सारिवा (संस्कृत) मग्रबू, उपलसरि, नन्नरि उसका देहान्त होनेके पश्चात् अनंतने सन्यास इत्यादि इस बनस्पतिको अनेक नामसे पुकारते ग्रहण किया। बिटलने पिताको ही गुरु किया था, हैं । उत्तर हिन्दुस्थान, बंगाल प्रान्त तथा दक्षिणमें अनंतसुतका " दत्तप्रबोध” नामक एकही ग्रंथ ट्रावनकोरसे सिलोन तकके सब प्रदेशों में पाई प्रसिद्ध है। जाती है। अनमदेश-यह पिंपल राजके दक्षिणमें (रेवा - . अंग्रेजी सार्सापरिलाके जोड़का रक्त शुद्ध करने कांठा मु. इ. ) और मानसेलके वीचका स्थान है. का गुण इस वनस्पति में है, इस कारण इसका एतद्दे- पहिले सुलतान अहमद (१४११-१४४३ ) के मित्र शीय औषधियोंमें उपयोग किया जाता है। बहुधा शेख अहमदके जन्म दिवसके उपलक्ष्यमें बनायी काढ़ा अथवा पाकके रूपमें अनन्तमूल देते हैं। हुई मसजिद यहां है। सूजन कम करनेके लिये, स्वास्थ्यवृद्धिके लिये और अनयमलय-यह उ० अ०१००१५' से १०°३१' मूत्ररेचक होनेके कारण इसका उपयोग होता है। और पूर रे० ७६°५७' से ७७०२०' में स्थित है। अग्निमांद्य, ज्वर, रक्तदोष, उपदंशादि विकारोंपर मद्रास प्रान्तके कोयमबटूर जिलेमें फैले हुए सह्याद्रि भी अनन्तमूल देते हैं। कभी कभी अनन्त बेलकी पर्वतका एक भाग है। इसे हाथीका पहाड़ भी बुकनी करके चावलके (खुद्दी ) में डालते हैं या | कहते हैं। इस पहाड़ की हवा नीलगिरि पहाड़की सूखे पत्तोका काढ़ा पकाते हैं. बाजारोमै इसको हवासे मिलती जुलती है। इस पहाड़की दो छोटी छोटी गड़ियाँ मिलती हैं। उसमें एक अथवा पक्तियाँ हैं: एक नीचे और एक ऊपर। नीचेकी अधिक पेडोंकी जड़ें बाँधी हुई रहती हैं, अनन्त पंक्तिकी ऊंचाई ३००० से ४५०० फीट है और मूल १२ आना या १ रुपये सेर मिलता है। यूरोप ऊपरकी पंक्तिकी ऊंचाई ७००० फीट तक है । में अनन्तमूल की पाउंड डेढ़ या दो शिलिंगको नीचेके पहाड़की ढालपर १८५०० एकड़ जमीन मिलता है, [बॅट, पदे; Ayurvedic system of कहवा बोनेके लिये तैयारकी गई है। पहाडपर medicine by N. N. Sen Gupta Vol. III] सुन्दर जंगल हैं। यहाँका सागवान मशहूर है। अनंतराम-इसने 'स्वानुभूति' नामक नाटक पहाइपरसे सागवान लानेका काम हाथियोसे अन्योक्तिपर लिखा था। लिया जाता है। माल नीचे आनेपर उसको बिल- अनंतशयन-यह ट्रावनकोरमें विष्णुका स्थान कुल नीचे ले जानेकी व्यवस्था एकतार बाँधकर है, यहाँ पर १४ हाथ लम्बी विष्णुकी मूर्ति है जो की है। इस पहाड़में मिलनेवाली भिन्न भिन्न शेष पर शयन करती है। इस कारण इसका वनस्पतियाँ और तंतुओंके नमूने कोयमबदरके नाम यह पड़ा है। श्रानंदगिरि अपने शंकर विजय जंगलपदार्थसंग्रहालयमें रखे गये हैं। इस जंगल में लिखते हैं कि जब भगवत्पूज्यपाद श्रीमच्छंक में शिकार पाये जाते हैं। नील गाय, बारहसिंघा, राचार्य दिग्विजय करते हुए यहाँ आये, और बाघ, रीछ, इत्यादि यहाँ बहुत मिलते हैं। कुछ देव दर्शन कर एक महीने भर रहे थे और उनको जंगली जातियाँभी इस जंगल में हैं। कादन, मुदवन, उपनयनादि संस्कारहीन विष्णुशर्मादिक ऐसे पुलैयन, मलसर इत्यादि इनमेंसे मुख्य हैं। छःप्रकारके वैष्णव मिले तब श्राचार्यजीने उनको (इं० ग० ५) उपदेश दिया और फिरसे ब्राह्मणत्वमें लाये। .. अनयमुडी-(हाथीका माथा) मद्रास इलाके पेशवाके समयमें भी यह देवस्थान प्रसिद्ध था में ट्रावनकोर राज्यके ठीक ईशान्यके कोनेको और उस समयके पत्रों में इसका उल्लेख है, . सह्यादि पर्वतकी चोटीपर यह उ० अ० १००१०' अनंतसत मुद्गल-(कृष्णदासमुद्गल) महीपति और पृ० रे०७७°४' में स्थित है। इसको ऊंचाई बाबाका कथन है कि यह नाथ महाराजके एक ७७३७ फीट है। दक्षिण हिन्दुस्थानमें इसके समान वर्ष पूर्व समाधिस्थ हुए होंगे। उससमयसमाधि ऊंचा पहाड और कोई नहीं है। इस पहाडसे अनंतसुत मुगलनाथ महाराजके एकचा पहाड़ श्री