पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२४९

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अनवलोभन ज्ञानकोश (अ) २२६ अनहद - - कर लिया गयकारी न होने को मृत्युक दिखाये पानी रहता है। गया था। है। इस मूर्ति के चरणोंकी ओर लक्ष्मी और तालाब बनवाया गया था। इसमें बारहो महीने नाभि में से निकले हुये कमलासन ब्रह्मा दिखाये पानी रहता है। और भी तीन तालाब हैं। यहाँ हैं। इसमें विष्णुके दशों अवतार भी दिखाये पुलिसका थाना है और हाट लगता है (अकोला गये हैं । गोविन्दराव चिंचणीको मृत्युके अनन्तर | डि. गॅ.) कोई भी अधिकारी न होने के कारण अनवल जब्त । अनसूया-(१) देवहूतोके गर्भसे उत्पन्न कर लिया गया। (ब० गॅ.) . नौ कन्याओंमेंसे एक कन्या । यह कदर्म ऋषिको . अनवलोभन-द्विजोंके सोलह संस्कारोंमें से कन्या थी। स्वायंभू मन्वन्तरके ब्रह्म-मानस पुत्र भी एक है। गृह्यकमौका वर्णन करने वाले अत्रि ऋषिकी यह स्त्री थी। गृह्यसूत्रोंमें इस संस्कारका उल्लेख अधिक नहीं (२) कहा जाता है कि वैवस्वत मन्वन्तरमें मिलता। आश्वलायन गृह्यसूत्रों में इस संस्कार अत्रिने पुनः जन्म लिया था और उनकी स्त्री यही का वर्णन कुछ मिलता है। बसवन-संस्कारके अनसूया हुई। बाद यह संस्कार करनेका उल्लेख मिलता है। अनसूया परम-पतिव्रता तथा महातपस्विनी स्त्रीके गर्भवती होनेके तीसरे महीने में यह थी। इसकी एक प्रसिद्ध कथा मिलती है कि एक करना चाहिये। गर्भरक्षाके लिये ही यह संस्कार बार निरन्तर दस वर्ष तक वर्षा न होनेपर भी किया जाता है। इसी कारण से इसका यह नाम इसने अपने तपोबलसे असीम कन्द,मूल,फल उत्पन्न रखा गया है (न अवलुप्यते गर्भोऽनेन)। बहुधा करके असंख्य प्रोणियोंकी रक्षाकी थी। दूसरी यह संस्कार भी पंसवन के साथ ही कर लिया जाता कथा है कि जब माण्डव्य ऋषि सूलीपर चढ़ाये है। पतिद्वारा अश्वगन्धाका रस गर्भिणीके दाहिने गये तो अन्धकारमें एक ऋषिपत्निसे उस शूलीको नाकके छिद्र में छोड़नेकी क्रिया ही इस संस्कारका | धक्का लगा, तो ऋषिने क्रुद्ध होकर श्राप दिया मुख्य भाग है। लोगोंका ऐसा विचार है कि इस | कि सूर्योदय होते ही तू वैधव्यको प्राप्त होगी। रस-सिञ्चनसे गर्भनाशका भय नहीं रहता । रस ऋषि-पत्निने भी अपने तपोबलसे सूर्योदय ही सिंचनके समय जो मन्त्र पढ़ा जाता है (माहं रोक रक्खा । इससे संसारका काम बन्द हो गया। पौत्रमघं नियाम् ) वह भी अर्थकी दृष्टिसे अव- यह ऋषिपत्नि अनसूयोकी परम सखी थी। सारे सरानुकूल ही है। . संसारमें हाहाकार मच गया सब ऋषि भी बड़े - अनसिंग-वाशिम ताल्लुकेके अकोला चिन्तित थे। जब उन्हें यह पता लगा कि वह ऋषि जिलामें वाशिमसे १५ मीलपर आग्नेय दिशामें पनि अनसूया की परमसखी है तो सब ऋषि यह बसा हुआ है। यहाँकी जनसंख्या लगभग दो देवताओं को साथ ले अनसूया की शरण में गये। सहस्र है। पहले यह इस परगनेका मुख्य स्थान अनसूयाने अपने तपोबलसे अपनी सखीका था। लोगोंका अनुमान है कि शृङ्गिऋषिके नामपर वैधव्य हरण कर सूर्योदय होने दिया। चित्रकूट यह गाँव बसा हुआ है। इन ऋषिका एक मन्दिर के दक्षिण वनप्रदेशमें इसका आश्रम था। यहाँ गाँवके उजाड़ स्थानपर बना हुआ मिलता है। पर श्रीरामचन्द्रने सीता तथा लक्ष्मण सहित मन्दिर पुराने हेमाडपंथी ढङ्गका बना हुआ है। वनवास कालमें इसके श्राश्रममें निवास किया इस मन्दिरकी व्यवस्थाकेलिये लोगोंने छः गाँव था। अनसूयाने सीताको बड़े प्रेमसे पतिव्रत धर्म इसके नामसे खरीदे हैं। पास ही एक बावड़ी का उपदेश देकर दिव्यवस्त्र तथा अंगराग भेट और नाला है जिनमें सदा पानी भरा रहता है। किया था। उस वस्त्रके पहिननेसे तथा अंगरागके बावडीके तटपर सतीका एक हाथ गाड़ा हुआ अनुलेपनसे शरीर सुन्दर, स्वच्छ और विगत-श्रम है। इस विषयमै अनेक कथाये हैं। चूड़ियों होता था। (वाल्मी० रा० अ० ११७) से हाथ भरा हुआ था, इस कारणसे यह जल नहीं । एक स्थान पर इस प्रकार का उल्लेख पाया है सका। कहा जाता है कि सतीके पिता दक्ष और कि अत्रिसुत दत्तात्रयकी यह माता थी । एक बार उसके पति शिवमें विरोधके कारण जब उसे ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश इनके पतिव्रत धर्म की आत्महत्या कर लेनी पड़ी तो शिवने उसके शव परीक्षा लेने आये। इसने अपने तपोबलसे इनको अनेक खण्ड कर डाले। वे खण्ड ५१ स्थानोंपर छोटे छोटे बालकोंके रूपमें परिवर्तन कर दिया। गिरे। इस स्थानपर हाथ गिरा था। वह वहीं उन्हींका श्रागे चलकर दत्तात्रेय अवतार हुआ। गाड़ दिया गया। इसके आसपासकी भूमि ऊसर अनहद-(अथवा अनाहद) इस शब्दका है। १८६९-१६०० ई० के अकालमें यहाँ एक पहाड़ी उल्लेख कबीरदासकी रचनाओमें बारम्बार आया था। है। इन ऋषिका एक मान्दीरामचन्द्रने सीता तथा किया मक कहा जाता है कि जब उसे ब्रह्मा, विजये। इसने अपने तपा