पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२५

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नोलाम्बर कहते हैं. ये हाथमै फौलाद का कडा पहनते हे और छोटा सा खंजर , चाकु एक लोहकी जंजीर और एक फौलाद का चक्र अपने नीली रंग की पगड़ी में चिपा कर रकथे थे. कूच श्रकाली जटा बटाथे हैं| जो जटा नहीं बाटाते वे केवल दूर और लौटा पानीका व्यवहार करते है| ये धूम्रपान करते हैं,परंतु जटाधारी ऐसा नहीं करते| नीले रंग की पगड़ी बंते बाधते हैं| श्रकलियोमे लड़ने का सामथ्य होनेकी कारन उन्हें निहंग श्रतहा अथार्त् बेफिक्र कहते हैं| सिक्ख इतिहास मे उनहोंने बड़े बड़े काम किए है|सन् मे मुल्तान के घेरेमे इन्होंने बडी बहादुती से किलेका बहरी हिस्सा कब्जे मे कर लिया और किला लगभग लेलिया था|फूलसिंह के चरित्र से इनके गुण तथा दोपोका अच्छी तराह पता लगेगा| सन् में जब अमृतसर में मेटकाफ पर हमला हुआ उस समय फूलसिंह पहले पहल इस हमले का नेता प्रसीद्ध हुआ|पश्रत् रणजीतसिंह ने उसे सिधकी वटीयो का मुक्य अधिकारी नियूक्त किया| वहाँ उसने मुसलमानी प्रजा को बहुत कष्ट दिया|बादमे वो कश्मीर भेजा गया|रणजीतसिंह फूलसिंहसे हमेशा डरता था| सन् मे तेहरीके युद्ध में फूलसिंह तथा उसके श्रकलियो ने अनुयायियोंने रणजीतसिंहकी श्र श्रोरसे लड़कर युसुफजईका हराया|परंतु इस लड़ाई में अपनी वीरता दिखाते हुए फूलसिंह ने खेत श्राया| नैशहरकी उसकी समादि इस समय हिन्दू मुसलमानोंका तीर्थ स्थान होगया हें|फूलसिंह के नेतृत्व में अंतव उसके पहले श्रकाली अपने शत्रुवो और मित्रों जे के लिए सामान रूपसे कृपदायी होगये है|सिक्ख राजा उनसे बहुत डरते थे क्योंकी श्रकालीयोने उनके अनेक बार उनसे जबर्दस्त धन चीन लिटा लिया था|सन् में स्वाय रणजीतसिंहबेने उनकी शक्ति कम ककरबे की प्रयत्न किया और इस कारण इस पथ का मगत्व कुछ घट गया| अमृतसरमें श्रकलियो का गति श्रकाल वूंग के नाम से प्रसिद्ध है| उस स्थान में श्रकाली धार्मिक विधियोंका पाठलेते और गुरुमाता का श्रवाहन किया करते है| वे संजातेथे की खालसाका नेतृत्व हमारी श्रोर है|रणजीतसिंहके समय से उनको सची गथी श्रानंदपूरमे है; परंतु यहाँ कह जासकता है कि उनकी सक्ति बहुत हि घट गयी थी|

इस प्रथमें ब्रहाचार्य का पालन करने की श्राझा है|शिष्य गुरु का जूठन कथा है श्रन्य सिक्खोंकी भांति ये लोग मांस अथवा व् शरबका व्यवहार नहीं करते परन्थु वे भाग हद से ज्यादा पाते है|सिक्खोंके प्रार्थना मंदिरो को गुरुद्वारा कहते हैं|इन मंदिरोंकी देखभाल करनेके लिए एक मंहथ रहता था| श्रागे ये मंहाथ दुराचारी होने लगे और सिक्ख भकतोको कष्ट पहुँचाने लगे|इस पर स्न में गुरुद्वारा प्रबधक कमिटी की स्थापना हुई| इस कमिटीके जो स्वयंसेवक है,उनकी गणना "श्रकाली" पंथमे की जाती है| आजकल श्रकाली लाखोंकी सख्यमे है| गुरुद्वारा प्रबधकं कमिटीने गुरुद्वारोको अपने अधिकार में कर लिया है| महंथोंको हाथसे गुरुद्वारा अपने कब्जेमे लेते समय रक्तपातभी हुआ था|स्न स् सन् में जब नाभाके राजा रिपुदमनसिह गद्दी से श्रलग कर दिये गये तो इन लोगों की यह प्रबल धारण होगई कि इनको साथ सरकार ने घोर अन्याय किया और इन लोगोंने नाभामें जाकर सत्याग्रह प्रारम्भ कर दिया| धीरे धीरे इनके इस सविनय शासन भाग के आंदोलन की धूम सारे देशमें मच गई|कांग्रेस का इस आन्दोलनमे पुरा पूरा सहयोग था| इस आन्दोलनमे कांग्रेस की तो बहुत कुछ आर्थिक हानि हुई हैं साथमें श्रकालियोकी भी इससे भड़ा भारी धकक्का लगा| यज्ञपि इस आंदोलन से जितनी हानि तथा कष्ट इन्हें उठाने पड़े उनको विचारते हुए सफलता बहुत कम श्रंशंमे प्राप्त हुई| श्रकिमिनियन - यहा श्रकीमिनिड अथवा हखामनी नामक एक प्राचीन हरानी राजघराना हें|इस घरानेने ईसाके पूर्व से लेकर तासन् तक ईरान पर शासन किया था|इस घराने का शासन का इतिहास आगे ईरान के अंतर्गथ दिया गया है|इस राजघराने के उपासना मार्ग का महत्त्व विशेष है|इस कारण उसके धार्मिक अंगों की विवेचना विस्थार्पूर्वक करेंगे|

इन राजाओंकी धार्मिक कल्पनाओंके संबंध में थोड़ी बहूत जानकारी यूनानी उत्तम साहित्य में;बबिलोनि, मिसरी और यूनानी प्राचीन अंकित लेकों में इन राजाओंकी प्राचीन हरानी भाषामें बबिलोनि तथा नूतन एलामी अनुवादमे तथा स्वयं उन्हीके अंकित लेखोंमे मिलति हैं|इस घरानेके जिन राजाओंके सम्बन्ध में यह विचार करना है वे सायरस कबायसिस पहला