पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२५३

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श्रौर लीडिया प्रान्तमें इसे "श्रटेमिस टाऊरो-पोलस" संम भते है। रोम देशमें "मंग्रामेटर"(Magna Mater)(महातमा) श्रौर मिश्र देवतासे इसका सम्बन्ध बताते हैं । श्रनिरुद्ध-(१) यह श्रीकृष्ता का पौत्र श्रौर प्रधुक्तका लडका था । राजा रुकिमएकी कन्या इसकी स्त्री थी । इसके बिवाहके समय बङी भारी लङाई हुई थी । इसको रोचना नामक स्त्री से हु से व्रज नामक पुत्र उत्पत्र हुश्रा था । वाएासुरकी कन्या उषा इसकी स्त्री थी । इसके विवाहमे वाएासुरका य़ादवोसे घोर युद्ध हुश्रा था । उषाहरएकी कथा मनोरंजक है । नाटक,सिनेमामें भी उषाहरण दिखाया जाता है । राजा रविवर्माका 'उषा स्वप्न’ चित्र बहुत हीं मनमोदक है । इस कथानकका नायक अनि-रूद्ध है, तथापि श्रोता लोगोके मनमे उसके पराक्रम अथवा दुसरे गुणोंका प्रभाव नहीं पड़ता ( भाग, दश ६१; महा अदि० २०९, महा सभा० ६० ) । (२) इस विषयमे इतना ही पता लगता है कि वि० स० १५२० ( शाक १४१५ ) मैं लिखे हुए शतानन्दकृत 'भास्वती करण' के टीकाकार तथा भावनशर्माके यह पुत्र थे। १४६४ ई० मे इसका जन्म हुश्रा था । श्रॅनीबेसेन्ट-डाक्टर-( एनीबेसेन्ट)-इस श्रसाधारण प्रतिभा की महिलाका जन्म स॰ १८४७ ई० के श्रक्तूबर मासमे हुआ था । यघपि इस श्रंग्रेज़ महिलाका जन्म तथा प्रारंक्मिक जोवन कट्टर तथा संकुचित ईसाई वाय़ुमएडलमे व्यतीत हुश्रो था किन्तु यह स्वयं बड़े उदार बिचारकी थी, श्रौर घार्मिक बन्धनोसे बिल्कुल मुक्त थी । श्रारम्भमैं इसके विचार कुछ नास्तिकोके से थे । यघपि इसने यह तो कभी भी कहने का साहस नहीं किया कि ईश्वरका श्रस्तित्व है हीं नहीं तो भी कुछ समय तक इसका कथन था कि ईश्वरके श्रस्तित्व का कोई भी प्रमाण मैं नहीं देखती श्रत: मेरा उस पर विश्वास भी नहीं है । उसका वैवा- हिक जोवन श्रत्यन्त दुःखपुर्ण था । एक बार तो उसने विषपान तक का विचार किया था किन्तु श्रान्तरिक प्रेरणासे शीघ्र हीं श्रपना विचार बदल डाला श्रौर उत्साहके साथ सब दुख सहनेके लिये कमर कसली । सामाजिक सैण-सा: १८७२ ई० से ही समाज ही अधिक आकृष्ट सुभाया है उस सास तिलों के अस्पताल ओर गिरजा परमे इसने गटे परिधम से काम किया था । आगे चतकां पूर्वथि लदा को धनद्दीन गुदृतियों के लिये भी पृसफी निरादर । सेवा बिशेष प्रसंशनीय है । फेथियन सोसट्सडी (13211३1211 ठेआंक्षड्डा) से भी इसका षेनिम्र उन्नाव था । उसकी स्पष्टवादिता तभी त्तचाईकै काष्ट उसके वहुत ले शत्रु होंगये थे । इसके जीषेनेका प्रारस्थिक भाग ( अर्माव१वा१ ई० दश ड्डिअस्वी आदृआडी स्त्रत्तदृप्रेदृगं तथा अप्राप्त फस्नेमें ही ५ इसने म्पतात्व किया था । भास्तमैं 'श प्रशन-जव यह बिलायढमैं थी तभी से भाररादे लिये इसके हेत्यमे विशेष अद्धा ३ ओर भक्ति थी । स० १३३ ई० के ६६र्वी नजमा को शामे भारब्रमेंपैदृरापैप किया था । रम्लसैस्लान्ह र-म होते हुए भं। भारटाकों भी यह च्चेपमी आसू- भूने समझती थी । प्राचौझ दिन्तु-सध्येतबि श्व के दृश्य पर पारो छापे लगाँ दोशी । "एक शा एरुथिप्रमे इससे पूछाफितुप्र अपने देशम सौटकां जाओगी । इस मंशा पर उसैजित होकर बैद कहने उगी कि भारत ही मेरा देश है 1 सत् १८९३ ले १८१७हँ८ रुक यह धूम एर हिन्दुओ की प्राचीन सभ्यता तथा ऐश्वर्य पर भाणा देतो रहीं 1 दक्षिण भारसके पड़े लिखे लोगौमे इसने जागृति डेत्पझ फादी और इसके उच्च दिशा, पिद्गचा सथा असीम प्रतिभडाके कारण यह विशेष थदासे देवी जाने रूमी । आय धिद्वानोंखे सण- यता लेकर हसने सनातन-घर्म समाधी ओफ पुस्तकें' प्रकाशित की । भगवत गीनामे ओछप्शके उपदेशों षरंदृत्तके षद्रुतसे ध्याचयान द्वार 1 सामाजिक क्या राजंबैतिक क्षेत्रमैं पदार्पण-दृष्ट विदेशी महिलाये भारत्तकै ऐसे अनेक गोत्र किये हैं जिससे मिक दृर्तिडासपै इसका नाम बिशेष उल्लेखनीय है 1 भारतीय संस्कृति को जीवित स्तपैके उईश्यसे इसने सन् १डे९८ई३ मैं शशीकी पबित्र "हैदूँभिमैं हिन्दू काजिजकौ स्था- वना को । उस समय आरतमैं केवल यहीं एक देसी संस्था थी जो संकुचित त्यफिरैधसे विहड्डा। मुक्त थी । उसके इस अहाब्र डहँश्यदी योरप तपा अमेरिका तक ले मनुक्योंमे सहायता वी थी । कूली हिन्दू णसिंजसे आगे चलफर मारच की सबसे प्रसिर्द्ध संस्था फाशीकै 'हिकूपिप्त- विद्यालय’ का प्राहाँभद्रवपुआ है इस र्णारसे यह ‘डापटरकौ षदगौसे विभूषित कौ गहे ।