पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२५५

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पर अपनी णेम्पाम्पाहाँ भाषा पिं-श्ली ही की हुँ अनुग्यशांव्रबै इसका पृर्याग होना कोई आश्चर्य स्ततेपे है इसका दृदृहेम्पावैम्पा । पृएँव्रिम्पादृ ' कीपावमहीं । गान्यनपिधाएकैद्रधतिरिरुव्ला खी_-पुड्स_ योजा, कायर:, प्रेमी क्या सेट्स आहि 3 पिपृश्यषयाँतमैं इसका प्रयोग शहींहाताअत्त ८४१८ रूभीहे. श्लीआबोंकौ व्यक्त . फानेपै फभाख किया । षधमैं इसका उदाहरण यदाकदा ही ब्रग्यसौब्रा है। सिंडी र्कल्फाश्याक्ति वडी विलक्षण भी । । है । सौदादृ 1शेपरी साहिवी एवं णल्याडा ट्यारूकौ रारीकौफा श्री सहना ही क्या है । डाहिरौ निडाहींमैं पिडाहयूमृ ८३३८८? डात्माष इनकी कविता सालिह शानू णिज्ञापृकू तथा _ प्रिरूत्ता है [काओ 1१। ब्रथाका भास्तषर्षमैं श्रपिंदृ प्यासे दृपिंपृएँ हैं है रूहीं कहीं तो व्रकृहिप्ल प्रणरनहींदष्टिगोषाहीव्रक्तू। हो, णब्रव्ला हैच्चों जीब जत्यण वि' शूफ स्तुड्सपृफ्लू दिया है 1 में इसका प्रायदृ विकास मृट्वेता है विस दुने 1१ शोम शेर उनकी व्रहिभापी झलक । डाप्नयांनं कारण क्योंकी 'डापौणों म्लर्तत्रुडाहीं थे देते हैं । . कहा जा सकता है । शम देगोये औद्योगिक एबं ( [ ) ब्राबुदो पुए काहिल गुणा। शब्दमे है । _ व्यक्तिगत संर्वप्रचाझे कारण कुभारिर्यरैणे पुरुवश . गौ-डाम्भते है जो दुबिमाँवी दृशय उभये है है: 2 सहयोग एवं उगले ए कान्तचासका मापा अक्सर ( २ ) ८८ गर्व क्या मीद के आने की है । . । मिला फस्ता है और उसी दशायें यह संभव भी बायाँ तुझे फिक्र भानोंदादै की है ।। 1 होसा है । भास्तषर्षबै क्यों ज्यों पाधास्य सव्यब्रा ( ३ ) जब्र साठ गिरह हुई तो टज्वथदंहुला है _ ' का विकास एवं पाभात्य संस्कृतिक: ११1१ होता ' यों शिव से ९८ बास १११ गुण है ।। . . जाता है दृगों दृगों इसका भी प्रचार होने भूणा है ( ४ ) ओम न ३८८१३ तुमसे ओदृ ऐ का । ओर सम्भघ है कि आगे चखकर यहाँ भी दृखणी नु . मैंने मोलोजान रेकै पम्पाहैतुके।। मृथाधसूपृहाये; . अब-म है व्रम्लश्चछाहे ५५११३। हंदृव्रवंणी राजा व्रजक्ति झाव्रदाद-णा दृद्गम्नज्जदृहुंव्रदृ समालिया हुए या । पिताकै कांहूँ पर दखने , है ईहूँड्डाप्रफश्चफे डागदृछिग्रचझ्वहींते हैं ।इच इड्डीड्डच्चोंद्धड्डे३३च्चाच्चोंमूद्रच्चिहंनुह्रदृक्तिष्टि' ब्जे हल्ले "क्योंट्सङ्कदृनुज्जह्रच्चाङ्गहं उ मुक्य राज्या झर ' _ उसपर पृ झेह-ट्विया और क्रलेचआँधषन्य श्यान किया । ! ।९८है९११२१पलिमा१९त्९१7गुहैं९' स्महूँमृहँ, था छोर परोक्ष नामके इनके तौनं पुर्द । अंश महीं रहा।। । अनकै ज्ञान पूर्ण हींमैंकौ 1१ ये हूँ (ल्याहाँपृश्या ३४ ) ३ ८ " - __ । क्रियामैंअपृरिद्दजेस्प व्यक्तिगत समपैद्धूनारदृसौहे 1 हूँर्कघुदृड़ेझमृशदृनंट्वेंट्वेंहुँथत्रुट्वेंहँकुद्धा हैं मूफसंट्वे हुँबाँहुँरैपीके बारम्बार होने त्रहुँगृ ५ ३३८३८ यम स्मस्नानमृरुथा उत्प श का एफ राच्चपुप्र भी जिसके पुज्जाप्र नामक एक _ थे रूपृदृदृएँहे ८३-०-८१३- मिले ३३ होखे है । ८१ पुप्न हा ।) _ फै _ . . . । बहीं, धिहँशेगमै यदनहींफहा ।२१त्६४, रेसा ३ ये यह शाक्य दृपा तात्मरात्रुत्र अणाश । ठाना आवश्यक दी । इत्र ख यर के गडा क्योंडादृभांफापुत्र था हैं इसे अंधक ३ विधनिहोद्याहैकिकोई रिध्दशेप परम्परा जालम च्चग्नफ्यूष्क नुत्र था : - - षश्लीब्रश्ली है, ओदृड्डीच्चे णार्वणण क्या ' (१3 ) १३३३३ मेनु पौर डाश्चणों रांज्यडा _ धिपास होता है 1 इस सायन्धपै आवश्यक्ता हुंड्डूह्र टुदुह्नङ्कसहुड्डिझ. हूर्षश, दुहुँ । कीनिफशजा हँसेनुभधपूर्ण रहती हैं अम्पू ८३3हूँ३ ज त ३१३1 न परुप्सीहेक्तिरि-एवे थे । द्दब्रफादृतिणसएमस । होता ।णुहुँ, जाता [हूँ हुग्लिण भाव राय 3८३ तीसरे प्रफरणमैं श्चिसा है । क्षणिक होती है-, अत: ८२१ ३1१८1११३ भी यिप डात्रुनअंर्ददृदृमृमूका साशरद्यत्तणदृदो अंहुँमैं मिध आसिफ फियझओकै आयश्यस्तानुड़ार का "श्लीणड्डेच्चिदृदृ । "झा" ।८११ष्ट्र१३९४त, औ: याचना । ऊँटुस .. _ दृर प्रन था। _ _ दृसूब्रव्र -प्रकू हुँट्सफैडखकां तीन भाग कांर्वग- फ्लू: ; तिहूँ गुह श्र्वफियद्विदेहुदुदृ रूणिड़ाच्चे ट्टाथमू दृपृएँ अदृश्य 3 णषल्यल्य सादृचर्थश -दृक्ल मत षा- अनुत्तया रीप पशु षहिर्यदृ ५ दियत्तफिमां। मैंभाँसंर्मोपाड़ेणअनुचब्र त्यिपी-धबूसा टूटा _ ब्रद्गनिच्ची है है यम ताया धद्वापै गटेभ