पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२५७

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इस नगर का उल्लेख ४११-१२ ई० मे चीनी बौध्द यात्री फाह्रानने अपने ग्रन्थमे किया है जिसमे उसने इसकी भडकीली इमारतो, सिचुक्शोकी विध्दत्ता और राजा तथा प्रजाके पवित्र आचरण् का सुन्दर वऱाणन किया है। उस समय अनुराध पुर मगधके नाल्नद विधापीठमें सिलोनके ही नही प्रत्युत उत्तर भारत एच्ं दुर दुर स्थानोंके विध्याथी अध्य यन के लिये आहे थे । इन्ही विध्याथीयों में गया(विहार) का सुप्रसिध्द भाध्याकार बुध्दघोष भी था। जिस समय बुध्दघोष सीलोन्में था उस समय जल के अभाव को दूर करने के लीए धातुसेन नामक राजा ने ४५०ई० में एक भील वनवायी जिसका घेरा पचास मील है । उसी भील से नहरों कें द्वारा शरोंमें पानी लाया गया है । इन नहरोंमें से कई अभी तक वर्तमान हैं और खेतीके काममें उनका उपयोग होता है । अनुराधपुर का अंतिम मुख्य काम यही बाँधा था।

  इसके अनन्तर यहाँ के राजपुरूषों में परस्पर युध्द हुये जिनमें वे तामिल 

लोगोंकी भी सहायता लिया करते थे । इन तामिल लुटेरोंकी सेनाओं ने अनुराधपुर को कई बार लूटा । ७५० ई० में यहाँ से राज धानी हटाकर पुलस्त्यपुर में ले जानी पडी । तब से ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य तक इसका शासन सूत्र कई बार कई पक्षोंमें बदलता रहा। ग्यारहव्वीं शताब्दीमें एक बार सिंहली पाखएडीने इसे अपने अधीकार में किया था पर वह भी राजच्युतकर दिया गया ,यहाँ तक कि १३०० ई० में अनुरधपुर की चरती प्रायः उजाड हो गयी और वोधि वूज्ञके निकट यत्रतत्र कतिपय सिक्षुकोंके अतिरिक और कोई न दिखायी पड्ता था । उसके आस पास ज्ँगल भी हो गया था । किन्तु आजकल पुन्ः वहाँ पर व्यवस्थित रुप से नगर बसानेका अंग्रेजों का विचार हो रहा है । १६०५ ई० में मटलेसे लेकर अनुराधपुर तक रेलवे लाइन भी चढा दी गयी है ।

अनुविन्द-(१) दुर्योधनके पक्षका एक वीर जिसे अर्जुनने मारा था । वसुदेवभगिनी राजाधि देवी और उसके पति अवन्तीके राजा जयसेनका कनिष्ठ पुत्र । ज्येष्ठ पुत्रका नाम विन्द था 
(२) विन्दा और अनूविन्द नाम्के कैकयराजा के दो पुत्र थे । अनुविन्द महाभारत में पाँडवों की और था । उसे साथ्यकीने मारा था। 
(३) धृतराष्ठ्के सौ पुत्रोँ में से एक।
  अनुशाल्व यह सौभपति शाल्व राजा का भाई था । शाल्वकों श्रीकृष्ण ने मारा था । इसीका बदला चुकाने के लिये पाँडवों के अक्ष्वमेध यज्ञ के समय यह सेना के साथ गुप्त रूप से हस्तिनापुर आया और अवसर पाकर   यज्ञ का घोडा चुरा लेगया । भीमसेन ने सेना साहित इस्का पीछा किया । प्रधुम्न और वृषकेतु ने इसे पकडने की प्रतिज्ञा की पर प्रधुम्न हार गया किन्तु वृषकेतु उसे पकड लाया । मृत्यु के भय से इसने अक्ष्व को लौटा दिया और मित्रता कर अक्ष्वमेध यज्ञ में सहायता करने का भी वचन दिया । इसका महाभारत में कही उल्लेख नहीं हैं । अनुपगढ-बीकानेर राज्य के सूरतगढ नजामत का एक मुख्य ठिकाना है । यह बिकानेर से ६२ मील उत्तर की और है । जन संख्या लगभग एक हजार है । यह उ०अ० २६ २२ पू०रे० ७३१२ में स्तिथ है । सन १७६= ई०में यहां एक किला बना था जिसका नाम बीकानेर के राजा अनूपसिंह के नाम पर रखा गया अनूपगढ विभाग में कुल ७५ गांव हैं जिनकी जन संख्या ६००० है । इनमें प्रति सैंकडें ५१ राठोर हैं इस विभाग में जल का अभाव है । खेती भी मामूली है किंतु चरागह अच्छे अच्छे हैं । सज्जी और लाना इस भागमें बहुत पैदा होते हैं । इससे सोडा बनाया जाता है ।  
   अनुप देश-इस प्रान्तकी राजधानी माहिष्मती थी जहाँ सहस्त्रार्जुन राज्य्  करता था ।महाभारत के समय नील नामक राजा राज करता था जो पाँडवों के पक्षमें था ।

अनुप शहर तहसील - स्ंयुक्त प्रांत के बुलन्द शहर ज़िलेके पूर्व दिशामे स्थित एक तहसील । इसमें अनुप शहर ,अहार और डिवाई तीन परगने हैं । यह उ०श्र० २६५ से २६३७ और पू रे० ७७२३ से ७६,२६ में स्थित है । इसका ज्ञोत्रफल ४४४ वर्ग मील है । जनसंख्या लगभग दो लाख अस्सी हज़ार है ।