पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२५८

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इस तहसील में चार करवे और ३७६ गांय है । १६०३४ ई० में यहाँ की जमीन का लगान (४६६०००) और अन्य कर ६००००) था । अपर गैंजेज कैनल अनुप शहर शाखासे यहाँ की सिंचाई होती है । १६०३४ ई० में जोती हुई जमीन में से १५६ वर्तमील कछवाडी थी ।

अनुप शहर -स्ंयुक्तप्रांत के वुलन्द शहर जिले के अनुपशहर तहसील की मुख्य जगह । यह उ० श्र० २६,२१ और पू० रे० ७६१६ में स्थित है । जनसंख्य लगभग आठ हाज़ार है । मुगल सम्रट जहाँगीरके समये में राजा अनुपरायने यह शहर बसाया था जो दिल्ली और रूहेलखएडके रास्ते पर है । उस रास्ते में होने के कारण अट्ठारहवीं शताब्दी में इसका बडा महत्व था । १७२७ ई० से १७५६ ई० तक अहमद शाह अब्दाली इस प्रांतमे था । १७६१ई०  में जिस दलने मराठोंको हराया था उस दल को यहीं व्यवस्थित रूप दिया गया था । १७७३ ई० में अवधके वजोर और अंग्रेज़ोंने रूहेलखएड पर चढाई करने वाले मराठों का सामना किया । उस समय तक वृटिश छावनी यहीं  थी , पर उसके बाद वह मेरठ लायी गयी । १६६६ई० में यहाँ म्घुनिसिपै लिटी स्थापित की गई और यहाँ की आय ११०००) और व्यय १५०००)था । पास ही ईस्ट इण्डियन रेलवे का डिवाई स्टेशन है जा १४ मीलकी दूरी है । यहाँ एक तहसील,स्कूल और मिशनरी ऐंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल है । शहर के  लिये यहाँ कपडे,कम्बल और जूते बनते हैं । यहाँ नील का भी एक कारखाना है । यहाँ पानी लगमग २६२५ बरसता है । 
 अनुपवायु - इसको वलदल वायु,मथिल इत्यादि भी कहते हैं । दलदल के सढे हुए पानी तथा उसी प्राकार के अन्य गन्दे पदार्थों से इस वायु की उत्पप्ति होती है । लकडी अथवा ऐन्द्रिक पदार्थों के शुष्क पतनसे यह वायु तय्यार होता है । कभी कभी मट्टीके तेलकी खानोंके पास यह वायु पाया जाता है । मनुष्यके वायुप्रसरणमें भी इसका अंश रहता है । पत्थरके कोयलेके धूवमें भी यह बहुत प्रमाणमें होता है ।

कृति नं० १-कृत्रिम रूप से इसको तय्यार करने के लिये कर्बध्दिगन्धकिद और उज्जगन्धकिद के भाप का मिश्रणा तांबे पर ले जाने से ,'अनुप' तय्यार होता है। उसका सूत्र निम्नलिखित है -कर्बन-ध्दि गन्धकिद +उज्जगंन्धकिद +ताँम्र =ताम्रगिन्धकिद+अनूप ।

  किंतु न्ं ० २-दो भाग सोडियम ऑसिटेढ, दो भाग दाह्क पालाश अथवा सोडियम और तीन भाग बिना भुजाया हुआ चूना मिलाकर तांबे अथवा लोहे के पात्र में गर्म करने से अनूप तय्यार होता है उसका सूत्र इस भांति है-सोडियम आसिटेट+दाह्क सोडियम =अनूप+ सोडियम कर्बन ।
   चूना केवल इतने ही के लिये मिलाया जाता है कि वह पिघलने न पावे । इस भांति त्य्यार किये हुए अनूपमें उज्ज, दारिन और ईथलिन का अंश भी रहता है ।
  कृति नं० ३-शुद्ध अनूप तय्यार क्ररने के लिये मेथिल अदिद पर ज्स्ते और पानी का प्र्योग करना चाहिये । वहुधा केवल जस्ते का प्र्योग सफल नहीं होता; अत: तांबे पर मढे हुए जस्ते को उपयोगमें लाना चाहिये । इसे यशदताम्रयुगम कहते हैं । इस्को तापक-फ्लास्क्में डालकर उस्में मेथिल अदिद और उतना ही अल्कोहाल मिलाना चाहिये। तदनन्तर जल तापसे फ्लास्क को गरम करना चाहिये । इससे धीरे धीरे अनुप वायु तय्यार हो कर निकलता है । कुछ देर तक पानी पर रहने देने से अदिदि और अल्कहलकी भाप पानी में विद्रुत हो कर फ्लास्कमें शध्द अनुप रह जाता है । रसायनिक-क्रियाका सूत्र निम्न-लिखित प्रकार से होता है । 
मेथिल+अदिदयशद+पानी=अनुप+यशद+अद+उज्जित
  धर्म -अनुप कउ४ विना रंगका गन्धहीन वायु होता है । इसका वि ग० ५५६ है । यधपि इस पर ज्वलन-क्रियाका प्रभाव नहीं होता किन्तु हवामें स्व्यं ज्वलनीय है । इसकी ज्योति फीकी रहती है । पानीमें यह नहीं घुलता किन्तु अलक-इलमें घुल जाता है । हयाके १४० तापमान पर एक गुना भारके नीचे रस रूप होता है । यह रस रूप वायु-१३२ पर उबलता है और -१६६ पर जमने लगता है । इसका स्थित्यन्तर तापमान ६६५ है । इसमें हवा मिलनेसे आग लगातेही उडने लगता है । यह कायल के खानों में बाराबर