पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२६७

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भारत वर्ष क्रषि प्रदान देश में तो गेंहु ,जौ ,चना,चावल,दाल इत्यादिका हो विशेष महत्व देख पडता है। गेंहु तथा जौ का श्राटा विशेष रूप से व्यवहार में लाया जाता है श्रौर होता भी है इन्हीं का श्राटा सबसे उत्तम।चोकर सहित श्राटा जल १३-६ ' १३-८ । १२४ १३-१ १२-५ ५ १५-८ । ७६८५ बैहोजनयुक्तखत्त्व ५ १२-४ १११ १अ४ ७९ २४३८ २३-० ' २७ स्थिषषहार्य दृ १-४ _ २-२ १-२ ५ ०-९ १-९ । १-६ ।अर भर्ति ५ ६ज्य ६५१९ १०-८ ७६-१ ५1५-८ ४९-३ । २०न्द कूव्रदृदृज्ञदारूतृहेरूड्डहीव्र २५९ ३ ५-३ १९-२ - ०-६ ३-६ ७ए ०७ क्षार ३ १-८ । १-७ हुँ ३-० १-० २-४ ५ अ१ । १५३ फल त्तणशाफ दृल्यादिमै यग्रपिडत्तपै बौधिक हुँ अभावसे ही उत्पत्रुट्ठोंते हैं । भपिष्यकौ त्रराषश्यफ- गुण नहीं हैं जाएँ फासफीरस ( 131१६5०11०- . दाप्रौकौ पृरां कवक लिये शरीर भी विटामिन म्भदृ ) पनुन होता है जिससे मागसिफ कार्य करने- काफी अंशमैं संचय फर सकनेकी शक्ति रखता है ।शूहौट्वे लिये अत् बिशेष लाभकारी होते हैं । नाना हँ जीषनकै शेशधफाशमैं बंदे यथेष्ट एफपित कर प्रशाके क्षारीसे युक्त होनेके आण मानव शरीर 4 श्चनेसेआगे चलकर मनुष्य इन रीगोसेआमी पर तथा खास्थ्य दृटिसे इसका बजा उत्तभ प्रभाष ५ रक्षा कर सकता है, आ: धर्थरैकें लिये यह विशेष होना है । द्रक्त-पित्त दोष दृप्या अपच द्ददृग्रादिते ८ रूपसे ३प्राबश्यक होता है । पौतों य द पतुत्तसे अर्षा पीडित अनुप्योंकैतियै ये बिशेष उपयोगी होते हैं। मैं मौते बंगुरा अंशौर्में पाया जाता है किन्तु विशेष ऊपर फटा जा मुश है कि जीषत्रकेखिये कई रूपसे मायके ताजा दूध, मशान, अणे रत्यादिमैं प्रफारकै रासायनिक इब्रगेकीभाषश्यक्ता। होती होता है ओर उनपर थोड़ षटुत प्रकाश भी डाला गया 'पो' विटामिन का पता 'ए' से पहले ही लग है किंतु आद्धरूरूकै हैबोनिक विटामिन ही को । उका था । आंतक रखके विषयमै जो पतां क्या सयसे अधिक प्रघानइव देते है । यहीं एक ऐसी ३ है वह प्रानध ज्जावनकैसिये फम उपयोगी नटों श्यार्य है जिसपर आनचस्नारुण्यशिर्मर है । यह ' हैं । इखकै प्रभाव से रोकी वेरी' ( ष्टदृद्रा-ष्टरूनु ) पदार्थ नित्य व्यवहारों लायेजाने चालेअत्रोंर्मे पाया पैतप्रा ( 13१३11३ड्ड८1 ) स्तायुयोंकें रोग ( 1५1९८५७७: जाता है । यद्यपि अभी इस पिश्ययें ज्ञान केव्रमृ। पृ जिधिऊंत्जी ) कलि, णद्रान्हिग्रगृमैं दोष दृम्पादि परिमित है किन्तु जो कुछु भी विहित हो चुका है ' अनेक रोग होने लगते हैं । पैरीयेरौ भी प्रधाच्च उसका उल्लेख नितान्त आवश्यक है । अब तक । स्नायुयों काही रोग है । आरम्भमें तो दनागुयों पाँच भार्गोंमैं विटामिन बाटे जाते हैं--' ४९ ) 'ए' मैं असण षाव्र। होती है और पढ़ते झड़ने माँस ( 1३ ) 'दो' ( 6 ) खी’ ( 13 )११ तथा ( 11 ) ई है ८ पेशियाँ शिशिर होकर देशा हो जाती हैं ५ ८२१३ ये विभाग इनके विशेष गुणघर्मकै अनुसार ही ' मृ3यु तक हो जाती है । पेख्यासे स्वागु १८३११ किये गये हैं । यदि शारीरिक आषश्यस्तानुउश्च मस्तिष्क दीनोंएरै आक्रान्त दोज्ञासे हैं, न्नजा क्या प्राय विटामिन श्मारे शरीरमैं नित्य न पहुँच होने ख्याती है । अंतर्मे मनुष्य उम्माव्र ग्रसित होम्कै सो धीरे धीरे किसी न फिसीभथग्नफअथडा है जाता है । इसका अभाव हमारे शरीर को सौधहीं असाध्य रोत्राकै चंगुरूमे दृष्टि जाना अनिवार्य है, हुं खटकने क्षगटाहै । इससे पता तगठाहैं कि मानद ओर अच्छी बजा भयानक परिणाम हो सकता है । १९१५ई० मैं विटामिन 'प' का आविष्क८ ८ स्व सकना । अत: ऐसे ग्राफा निरन्तर की दुआ । प्रयोग करके देखा गया कि इसके अभाव । सैमन आवश्यक है जिसमें विटामिन 'बी' यथेष्ट से मेनोंफौ विशेष हानि पहूँब्रतीहै । और भी यह दृ ही । यह विशेष रूपसे ताजा फलों बोर तरफा- सभी तूर्तीश प्रधान रक्षक माना गया है । साधारण सर्दी जुकाम आदी ऐसे रोग जिनमें नाक गला और साँस नाली श्राकान्त होती हैं इसके व्यवहार में लाना अधिक लाभदाय है। वारली श्रतवा जौ से माल्ट नामक पौष्टिक पदार्थ उत्पन्न होता है। श्रमावसे ही उत्पन्न होते हैं। भविष्य की श्रावश्यकताक्षकों पूरा करने केलिए शरीर ए विटामीन काफी श्रंशमें संचय कर सकने की शक्ति रखता है। जीवन के शैशव काल में इन्हें यथेष्ट एकत्रित कर रखने से आगे चलकर मनुष्य इन रोगों से अपनी रक्षा कर सकता है, अतः लिये यह विशेष रूप से आवश्यक होता है। योतो वह बहुत से श्रत्रों में थोडे बहुत श्रंशो में पाया जाता है किन्तु विशेष रूप से गायके ताजा दूध , मक्कन,श्रगडे आदी में होता हैं। बी विटामीन का पता 'ए' से पहले ही लग चुका था । अबतक इसके विषय में जो पता लग चुका था वह मानव जीवन केलिए कम उपयोग नहीं है। इसके प्रभाव से 'वेरी वेरी' ,पेलग्रा,स्नायुयोंको रोग ,कब्ज,पाचनक्रया मेें दोष इत्यादी अनेक रोग होने लगते है।'वेरी वेरी' भी प्रगानतः रनायुयों का ही रोग है। श्रारम्म में तो रनायु यो में अहसा पीडा होती है ओर बडते बडते मांस पेशियाँ शितिल होकर बेकार हो जाती है। पेलत्रासे स्नायु श्रौर मस्तिष्क दोनो हीं आकांत हो जाते हैं,त्वचा लाल होने लगती है। अंत में मनुष्य उन्माद ग्रसित हो जाता है। इसका अभाव हमारे शरीर को शीघ्र ही खटकने लगता है। इससे पता लगता है कि मानव शरीर इसको सक्षित करके बहुत दिनों तक नहीं रख सकता । अतः ऐसे श्रत्र का निरंतर ही सेवन आवश्यक है जिसमें विटामीन बी यथेष्ट हों। यह विशेष रूप से ताजा फलों और तरकारियाँ गेहुँ तथा अन्य श्रत्रों के कीटाणु ईस्त सलाद इत्यादी में पाया जाता है।