पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२७०

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किसी व्यक्ति अथवा सम्परिहुवियोयद्वारा अपनेनि- र्वाहकीव्यघस्या करने-बड अधिकारी दोजाताहै इस अधिकारफीआधस्त्र अथवा गुजारा कहतेद्दे

                         हिन्हओ के नियम

इस परिपालनाधिकार का जितना महत्व दिन्दूहुंग्यघरुथामैं है उतना किसी अन्य देशकी व्यवरुथामैं नहीं, कयोंकि अन्य देशोमे तो यह अधिकार केवल आश्रित पुत्रो सथा खिथोंको ही है पर हिंदुओमै सदिप्रखित परिवार प्रश्वश्ले, कारण परिधादृके प्राय: सभी व्यक्तियोकौ यह अधिकार प्राप्त है । इसके अतिरिक्त उसके विवाह आहि समस्त धार्मिक संस्कारोंके भी व्ययका भार सम्मिलित परिवार ही उठाना पडता है । यह दूसरी बात है कि सम्मिलित परिवार-: किसी सदस्यको उसकी व्यक्रिगत्र अयोग्यता अथवा अग्य कारणोंते उस परिवार" सम्पसिमे उत्तरा- धिकारका अधिकार न प्राप्त हो किं भी भरण- पोपणका अधिकार तो उसे भी मिल ही जाता है सम्मिलित परिवार-: किस य्यक्तिकौ उत्तराधिकार प्राप्त है तथा कोन केवल अत्रस्त्रकाहीं अधिकारी है उसके सम्बन्धमै याशवरुक्य स्मृतिमैं लिग है-

                 क्कीगोंष्य पतितस्तज्ञ: र्पगुरुन्मत्तकों जद: |
                थच्चधोहचिस्तिग रीगाथा मतैग्यश्चनिरेंशका: ||

अर्थ…नपुंसक,पसित, र्पगु, उम्मपां पागल जहाँ( मूर्त ), अंधा, असाध्य, रोगी, तथा उनकी संवानकौ दाय भाग न देकर केवल अन्नक्ल ही देना चाहिये दिन्दूघर्म शास्रलुतार अत्त षखका उत्तरदा- यित्व दो प्रकारका होता है-एक व्यक्तिगत ओर पूसा। साम्पत्तिक । परिवाद्रके कुछ सदस्य ऐसे भी हैं जिनके डान्नपस्रका उत्तरदायित्व व्यक्ति विशेष पर प्रत्येक अव्ररथार्मे रहता हो है । जैसे मनुमृरुमृबिमैं लिखा है कि…

   व्रुदॊ च माता पितरों साथ्वी मायाँ सुता शिशु:
  अनाचार शर्त कृत्या भर्चस्या भनुस्त्रमीत्। 
                                               [ मनु ८ । ३५ ]

श्रर्थ-बूद्ध मातापिता, पतिव्रता खी एवं शिशु संतानका सौ दुष्कर्म करके भी पालन पोषण करना चाहिये यह तो हुआ व्यकिंझत्त उत्तरदायित्पका उब दृरण । इगम्पक्षिक उदाहरणकै बिषयमें इतना ही कहना पर्याप्त होगाक्रि सम्मिलित परिवारों, कुछव्यक्ति ऐसे भी होने हैं जिनके पाखनफा अधिकार जस सम्मिलित परिवाद: अथवा उस यरिवारकी सम्पत्ति पर होता हॆ। अत:बह्न,चुत्रा उनके लड़के, विधवा भावज आदिका परिपशिनाजिकार व्यक्ति विशेष पर न होकर उस सम्मलित परिवार की सम्पत्ति पर होता है. पुत्र का अधिकार…पुधके पदृत्तनपोपणका उत्तर- दायित्व उसके युबा [ बालिग ] होंनेनफ विना पर रहता है । ऐली ही व्यत्ररुथा अभ्य राहौपै है पुत्रके युवा होनेपर इस व्यक्तिगत उत्तरवाधिस्वसे पिता मुक्त होजाता है । किंतु यदि पिता और पुष एक ही सम्मिलित परिवारमे रहते ही तो पुत्रकै युबा होनेपर भी उसके भरणपीपणका भार उस सम्मिलित परिवार पर रहता है क्योंकि सम्मि- लिन परिवारकी पैतृकू सम्पत्तिमैं पुत्रके जाम लेते ही उसका भी उशिराधिकांर बा अधिकार होजाता है । ऐसो दशायें जव तक विभक्त न होजायें तव तक दुबका युवा होनेके अनन्तर भी उस सम्मि- सिव्र परिवारकी सम्पत्तिसे भरण पोधणका अधि- कार है। इसके अतिरिक्त जिन रप्रक्योंको विभक्त न करनेका नियम चला आता है उनका उत्तरा- धिकार वडे पुअको होता है । ऐसी दशायें _ सा छोटे पुत्रोंकौ युवा होनेके बाद भी उस राज्यकौ ओरसे भरण पोषणकां अधिकार प्राप्त होता है।

काथार्यों का अधिकार-विवाह पर्यन्त कन्याणोंकै भरणपोक्याका उत्तरदायित्व पिता पर रहता है वितान मृहयुकै उपरांत थे निराशया होजाती हैं किंतु पिटाकी सम्पत्तिसे भरणपोपणका व्यय लेने का उनका अधिकार है । विवाह होंबाने पर फन्यापं पतिके फुलकी हीजाती हैं और तवसे उनके अन्नवखका भार पतिको सहन करना पड़ता है । पति_कौमृत्युकुँ उपरहुँत उसकी दृनम्पत्तिसे श्या लेनेका अधिकार पिधबाओकों है । पति कीयदिकौई सम्पतिन होतो कानूनन उनके अन्नवस्त्रका उत्तरदायी नहीं है फिरभी उसकेपालक्योंषणका पैनिक उत्तरदाबित्वकांथाकै ससुर पर पड़ता है एवं उसकी भी मृत्यु होनेपर उसकी सम्पत्तिसे अषवस्त्र चत्तस्नेका उसका अधिकार है। यहि ससुरकौ भीकोंई सम्पचिन होनो फिर पितापर उसके अझक्लका नैतिक उत्तर- दायित्व पड़ता है । विवाहित एवं बिधना लड़की का उसके पिटाकी सम्पति पर कोई अधिकार है या नहीं यह विवादास्पद विषय है । 
   पौत्रका अत्र वत्तच्चि-जग्म तैतेहीं उत्तराधिकार का अधिकार प्राप्त होनेके कारण पैत्रिक सम्पति से पोत्रोंको अब वस्त्रलेनेका अधिका-है पर त्यक्तिशा उनके पितामर्दों पर इत्-केलिये कोई उत्तरदायित्व नहीं है ।