पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२७१

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अशैस्त श्ली-हिंड्डूकह्यूनके अनुसार अनी- रस पुधके अत्त वल्ला उत्तरदायित्व उसके पिटापर एवं, उसकी मृत्युकै अनन्तर उसकी पैतृक अथवा खानि अर्जितसम्पशि यर होता है। परयह अधिकार उसी तक परिमितहै उसके पुत्रका फिर उसमें से कुछ भी मानेका ५ अधिकार नहीं है । हाँ, अनौरस पुबकै अध वस्त्र पू का अधिकार मिताक्षराके अनुकूल युमा होनेके ३ उपरान्त व्रकभी रहता है पर दायभागमें ऐसा नहीं होता । इसके साथहीं यद्यपि यह भी विधान हैं है कि जो अनौरस पुत्र हिन्स्वीसे उत्पन्न हुम हो उ-कको डान्नवस्त्र मानेका अधिकार होता है तथापि आय धर्माधहामिनीछियों से हुँत्पब्र पुत्र सिविल प्रोसीजर कोडकी धारा ४८८ के आधार यर दावा कर सकता है । पर ।षेताकी मृत्युकै पद्यातूउसकी सम्पत्तिपर वह इसके लिये ग्राधानहीं कर सकता । हिन्दू कान्ट्ठार्मे अनौरस युवीकों अन्नधस्त्र पानेका अधिकार नहीं दिया गया है, किन्तु यह भी सिबिण प्रोसिजर कोडकी उपर्युक्त धाराके आधार पर उसके सिये दावा कर सकती है ज्ञाता पिता-मूद्ध माता पिताकै अध १९१प्रका भार प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है । और पैतृक सम्पति न होनेकी भी दशार्मे अपनी उपार्जित सम्पसिसे उनका पालन पोषण करनेका उत्तर- दायित्व होता है । पुप्रके मरने पर उसकी 1 सापसिसै अब्र क्या पावेकै थे अधिकारी होते हैं । अंपबीकेभवयोष्यका उत्तरवावित्बपति ५ पर व्यक्तिगत रुपसे रहता है; सम्पप्तिसे उसका 1 कोंईश्माघ नहीं, किन्तु यदि किसीने अपनी १बीकास्थाशकर दिया होतो उसी दशामैंवह ३ उसके सावन्धियोसे शाख पानेकी अधिका- रणी हींसक्रती है जब उसके गतिकी सम्पत्ति संवन्धिर्योंके अधिकारों: हो |

 नियभटा लोकां अपने पतिके साथ रहकर उसकी आकाडर्गेकै अनुसार चलना चाहिये । अत: मतिसे खतंष रहनेकेसिये अन्नघस्त्र पावेका किसी खीकों अधिकार नहीं है । फिन्तु यहि पति खर्थ उसे अपने साथ रखना न चाहे अथवा कोई अन्य उपयुक्त कारण हो तो वह अन्नषस्त्र पानेकी अधिकारिणी हो जाती है । पविफे दूसरा विवाह कर लेने या साधारण झगडा-लडाई से यहि कोई खी मतिसे अखग रहकर अव्रवस्त्र खेना चाहे तो उसे नहीं मिल सकता । किन्तु यहि पति उसके म साथ अत्याचार फरसा हो अथवा ऐसा वर्ताव्र करता हो जिससे उसे प्राण जानेका भय हो दृदृ वह स्वतंत्र रहकर पतिसे अज वस्त्र पानेकी अधि- कारिणी हो सकती है । पतिसे अलग प्यार यहि खी व्यभिचारिणी हो जाय तव उसका बह अधिकार नाट होजाता है पिक्तु यहि फिर वह शुखाचारिणीटों जाय और अपराधी पर पथा- चाप एवं प्रायश्चित्त कर ले तब फिर उसे पतिके अधिकार प्राप्त हो जाते हैं । किन्तु यदि उसने अपनेसे किसी वीय जातिके पुरुषकै साथ व्यभि- चार किया हो तब उसकी शुद्धि नहीं हो सकती न उसको अव्रत्रस्त्र मानेका ही अधिकार होता है |

सागरिका उत्तरदायित्व-हिन्दू कान्नमैं अपने आथितकौ अन्नवस्त्र देनेका व्यक्तिगत उत्तरदायित्व माता, पिता, रबी और पुत्रों तक ही परिमित है । इसके अतिरिक्त मम्मन्धिपूर्शके पारूनपोषणका भार सम्पत्तिपर धवलस्मिच है । इसका साधारण नियम यह है कि जिसकी सम्पत्ति होगी उसपर अन्नवखकेलिये शवलश्चित्त रहनेवाले व्यक्तियोकै पालनपोपणकाभार उस सापन्तिकै उत्तराधिकारी पर रहता है । यह तो ऊपर कहा ही गया है कि सश्मिलित परिवारले सव ज्यक्तिर्योंके पालनपोषण का भार पैत्रिक सम्पक्तिकी आपसे उस कृट्ठमकै क्रत्तर्रे पर रहा हैं। विधवा…उत्तराधिकारकै अधिकारसे जिस दिधवाको उसके पतिकी सम्पति नहीं प्राप्त होती उसके पस्तगपोंषणका उत्तरदायित्व ( है ) उसके गतिकी खतंप्र सम्पत्ति पर रहता है । ' ( २ ) पति को सम्पशिरेंसे अत्र धरु। मिखनेका यह अधिकार पतिकी मृत्युकै समय, यदि वह पतिसे स्वतंत्र और पृथफूरद्दली हो तो भी नष्ट महीं होता है इसके अतिरिक्त पतिके जीवनपयेंत स्वतंत्र रहकर अन्न मृस्त्र माँगनेक्वा अभिचार हैश्माग्यड्डा' खोको न भी हो, तो भी मिधवाकै बिषयर्मे यह नियम नहीं लागू होता । अर्थात् विधवाको पतिके ही परिवार-: साथ रहना चाहिये यह कोई अनिवार्य नहीं है ससुरालकों छोड़कर यहि यह पिताके तथा अन्य फिसोकै घर रहे तब भी उसका अझधस्त्र सेनेका यह अधिकार सर्वदा बना रहता है 1 क्रिन्तु यहि वह स्वतंत्र रहकर व्ययभिचारिणी होजाय या कोई अयोग्य आचरण करे तो उसका अन्नवस्त्रका अधिकार नष्ट हो जाता है । मृत पतिकी सम्पति यहि वहुत कम हो तय भी न्यायालय उसे ग्लास नहीं दिला सकता । विधवा: वाह करने पर उससे पहले पतिफे परिवारले मिलनेवाला शाशाका अधिकार नष्ट होजाता है । हिन्दू विष-