पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२७२

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चाद्देधवाह कानून ६८३1६ धारा २ ] अजचब्रकै खचैकौ स्का-दिघधाकै भरर1पीपण की रकम ठहराते समय ( है ) उसके पतिकौ लिज्ञा१त्तका सत्य ( र ) समाजमे उसका स्थान छोर ( ३ ) विधवाकी आवश्यकताएँ वर्ष उसके धार्मिक कृक्योंका विकार किया जाताहै । इसके अतिरिक्त डस पिघवाके पास वस्र तथा अलंकार आहि अनुत्पादक खीधनकै अतिरिक्त यहि दूसरा द्रम्योत्पादक धन अथवा जीविका चलाने योग्य दुसर: स्वतंत्र घन हो तो उस विधदाको अन्नवस्त्र मंर्णिनेका अरिहूँफगुदु नहीं होता। अभ्य व्यजित्योंके पालनपोथणकी रकभनिमित्त करते समय भी ऊपर कहीं तीनों यानों पर ध्यान हैनेका नियम है । उसी तरह मृत व्यक्तिको सम्पसिमैं जो अंत र होगा उसीके परिमाणमैं अम्म धस्त्रकै अथिकारर्में भी अंतर होगा।

                                                     मुसलमानी कानून

ध्वस्त…पुक्योंकी तरह णियोंकै भी मायके की सम्पसिमैं उत्तराधिकारकाअधिकार मितनेकै कारण तथा हिन्दू फान्नूनकै समान सम्मिक्ति परिवार- पद्धति न होंनेकै कारण मुसलमानी नियमोंमैं अग्न वस्त्रकै अभिकारक? क्षेत्र पनुत कुछ मर्यादित होता है । जिसपुरुय या खीको निधि सम्पशिर्मेसे अपना खर्च चखानेकी व्यवस्था हो देखे किसी भी व्यक्तियो अपने अन्मषरुटका भार दूसरों पर डालने का कोई अधिकार नहीं है, यहाँतक कि मुसल- आनी कातूनके अनुसार खीकौ भी सदा अन्नयस्त्र का अधिकार प्राप्त नहीं होता। गो-साधारण नियम यही है कि पतिको खी का पालनपीपण करना चाहिये, विल पतिका यह उ त्तरदायित्व तभी शक जाना रहता है क्याफ सो उसके उपयोक्ता आती हो । उक्खरणके लिये यहि खी वैवाहिक सम्पन्ध पूरा करनेके अयोग्य हूँ? अर्थात् अहहुँम्बयरका हो, या आशाकूदूरिणी न हो या कातूनकै अनुसादं, कारण म होनेपरभी पतिको न चाहती हो था उसके अधिकारों: म रहती हो तो उसे अधवस्त्रका अधिकार-, माप्तहोता । फिन्तु यहि ऊपर लिखे कारणोंमैं कोई भी न हो तो खी चाहे निर्धन था धनी, मुस- कमान धर्मकौ या इतर धर्मकी, उपयुक्त था अनु- पयुक्त' हैंसी भी क्यों न हो उसे अशधस्त्र देनेके लिये पति वाम होता है । वह खो भविष्य जोधनकै हिये ऊन्नवस्त्रका दबाकर सकती हैपा व्यतीत समयके ऊन्नवस्त्रका उसे कोई अधिकार, नहीं होता । साथहीं स्सायस्त्रका यह अधिकार

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जबतक वैवाहिक सम्बध वना रहे. तभीक्तकरहटा है | दृस सम्नन्ध'न्है विच्छेद (Divorse ) होने अथवा विधवा हो जानेथरण्ड अधिकार गट हो'जाताहै । किंतु, पतिपत्नीकों एकदूसरे को छोड़ दैनेकै समय अलग रहकर जो समय व्यतीत करना पड़ता है उस सभयमैं भी श्यास्रका अधिकार होता है । मुसलमानी फातूनके अनुसार एक समयचार ही सिर्योसे विवाह करने की आतां है । अत्तदृपरुँक्यों था इससे अधिकखी या खियोंकौ उत्तराधिकार या आश्चन्नका अधि- कार नहीं होता | पुत्र-पुत्र तथा पुपिर्थोंकै अल्पवयस्क रहने तक [इण्डियन मेज्ञारिटी एक्ट Indian Minority Act के अनुसार ] उनके पोषणका भार पिलाया: होता है । पर लडके के युवा [ बालिग ] होतेहो यह उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है 1 हाँ, यहि युवा पुत्र अशक्त हो ओर पिता धनी हो तो उसपर लड़कें के पालन पोषण का भार रहता है । इसके विपरीत छोटे लड़कैसे उसकी योग्यताके अनु- रुप उत्पादक काम कराकर अधिक आमदनी करानेका _पिटा कौ… अधिकार है ब्रड़फिर्वीकै विवाह पर्यन्त एवं वैधव्य अश्या तलाक होनेपर पारूनपोषणका भार रिटायर रहता है । यहि निर्धनता.: कारण पिता उनका पालन करनेमें असमर्थ हो छोर डजकै दादाया माता अच्छी रिथतिमै होंतो थे उनके पालनपोश्याके जिम्मे’- दार हैं । उसके अजन्ता यहि पिताकौ स्थिति अरुछोहों जाय तमने उससे इसके सम्बन्धमैं खर्वकी मुईरकम धभूदृ। करसकतेहैं। कोई मुसलमान यदि अपनी स्री अथवा व्यथा अनोंरस पुबोंका पालन करना नहीं चाहता हीं तो वह खो, चौरस था अनौरस लडके सिविल प्रोसीजर कौडकी भारा ४द्ध८प० के अनुसार अन्नवस्त्रके क्षचैको रफूम का दुत्या कर सक्रते हे। मासा पिता…-अपने थमते द्रव्य उपार्जन करनेमें समर्थ होते हुम भी निर्धन माता पिटाकै पालनग्रेश्चिका भार उनकी योग्य संतति पर समान रूपसे रहता है । उदाहरणार्यद्र-एक निर्धन पिता का एक लड़का है जिसकी आय तीन हजार रुपये की है तथा एक रुड़की भी है जिसको आय पन्द्रह सौ रुपयेकौ है । ऐसो दशार्में कानून यहीं कहता हैकि वह लड़का तथा खड़कौ दोनो ही को उचित है कि अपने माता पिताके पालनके लिये यदि पचास रुपये की आवश्यकता हो तो प्रति मास पचीस-पचीस दृपये दिया करें |