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बचना चाहिये। बहुत से देशों में तो ऐसे रोगियों के रहने का विषेश प्रबन्ध करके उनकी बस्ती ही अलग बनाई गई है। उनके कार्य , जीवनचर्य्या इत्यादि सब पर ध्यान रखना जाता है। उनकी सुविधा का विशेष ध्यान रखना जाता है। बालक रोगियों पर विशेष ध्यान रखना जाता है।

   इस रोग में औषधि से अधिक आवश्यक नियमित रहन सहन ही है। सोडियम (Sodium) पोटेशियम (Potassium) स्ट्रानशियम (Strontium) अमोनियम (Ammonium) इत्यादि औषधियॉं इसके लिये विशेष हितकारी हैं। अनेक रोगियों को इससे लाभ होते देखा गया है। पोटेशियम ब्रोमाइड २०-३० ग्रेम तक पानी में घोलकर देना चाहिये। कुछ का मत है कि उपरोक्त तीनों औषधियो को मिश्रित करके - सोडियम , पोटेशियम तथा अमोनियम - ३० ग्रेम देने अधिक लाभ होता है। महीनों अथवा वर्षों तक दवाई का प्रयोग करते रहना पड़ता है। निरन्तर सेवन से दौरों का अन्तर कम होने लगता है। दौरे क बेद भी कम होने लगता है और रहता भी कम देर तक है। यदि कुछ दिन औषधोपसेवन से दौरे बन्द होते हुए मालूम भी पड़े तो भी बन्द होने के बाद कम से कम दो साल तक निरन्तर इसका सेवन करते रहना चाहिये। यदि ब्रोमाइड अधिक दिया जाता है तो सुस्ती अधिक होती है , ऐसी अवस्था में इसकी मात्रा कम कर देनी चाहिये। यदि रोगी को इससे अन्य कोई हानि देख पड़े तो बीच बीच में इसको मात्रा बन्द कर देनी चाहिये। ब्रोमाइड के दोष को मारने के लिए ग्लिसरो फासफेट २०-३० ग्रेन तक मिलकर देना चाहिये। कुचले का सत (Iodide) भी बहुत कम मात्रा में दिया जा सकता है। इसको पानी में भलीभांति घोल लेना चाहिये। इसमें एक प्रकार का विष होता है और यह बड़ी तीव्र औषधि है। अतः इसमें २-३ बूंद लायकर आरसनिक (Liquor Arsenic) (सोमलविष) मिला देना चाहिये। नमक न खाने से औषधि का गुणा अधिक होता है। बीच-बीच में आवश्यकतानुसार ब्रोमाइड के साथ अन्य औषधियॉं मिलाकर देनी चाहिये। वेलाडोना , जिकसज्फेट , आक्साइड , कैलशियम , ब्लैसिटेट , एन्टीपायरीन इत्यादि औषधियॉं भी लाभदायक होती हैं।
   दौरे की अवस्था के प्रयोग - यदि दौरे में हाथ पैर सुन्न पड़ने लगते हों तो हाथ पैर मलना चाहिये। इससे अक्सर दौरा रुक जाता है अथवा जल्दी ही दूर हो जाता है। यदि रोगी बुद्धिमान है तो उसको कुछ पहले से इसका अनुभव होने लगता है। ऐसी अवस्था में पहले ही से सावधान हो जाने से अथवा उपाय करने से भी दौरा रुक जाता है। कुछ का मत है कि मानसिक शक्ति द्वारा भी दौरा रोका जा सकता है। चित्त को सावधान करके यह दृढ़ निश्चय करके कि दौरा नहीं ही होगा , किसी दूसरे प्रसन्न होने वाले विचारों को हृदय में स्थान दे। अमोनिया अथवा वाइट्राइड आफ आमिल सूं घने से भी बहुधा दौरा रुक्त जाता है अथवा उसका वेग कम हो जाता है। जिल स्थान पर भी दौरा हुआ हो वहॉं से दौरे की अवस्था में रोगी को हटाना नहीं चाहिये , किन्तु अग्नि अथवा जल का ध्यान रखना चाहिये। आराम से रोगी को लेटा देना चाहिये। शरीर के कसे हुए कपड़ों को ढ़ीला कर देना चाहिये। इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि रोगी कोई शारीरिक चोट अपने को न पहुँचा सके। यदि रोगी से भय हो कि अपनी जीभ लेगा तो उसके जबड़ों के बीच एक काग या लकड़ी का टुकड़ा लगा देना चाहिये। रोगी के मुँह पर पानी के छींटे देना चाहिये , सिर पर हवा करते रहना चाहिये और कोई तीव्र उत्तम सुगन्धि व्यवहार में लाना चाहिये । महापस्मार में ब्रोमाइड साल्ट की मात्रा बढ़ा देनी चाहिये , और आवश्यकतानुसार १६ ग्रेन तक उसमें क्लोरल मिला देना चाहिये। यदि आवश्यकता हो तो मार्फिया या क्लोरोफार्म की पिचकारी भी दी जा सकती है।
   अपामिया - इस नाम के अनेक शहर हैं।
   (१) ओरोन्टेस नदीं के किनारे यह बसा हुआ था। सिल्यूकिडी बंशीय राजाओं का खजाना यहॉं रहता था। सेल्युकस नेक्टर की स्त्री अबामा के नाम पर यह नगर बसाया गया था। सातवीं शताब्दी में बादशाह खुसरू ने नगर का नाश कर डाला था। इसके बाद अरबों ने इसे फिर से बसा कर इस का नाम फामिया रखा। इस नगर का महत्व ईसाईयों के धर्म युद्ध तक देख पड़ता है।
   (२)फ्रीजिया का एक नगर। अंटायोकस ने अपनी माता अपामा के नाम पर इस नगर की स्थापना की थी। सिल्यूकिडी सत्ता , ग्रीकोरोमन तथा ग्रीकोहीब्रू संस्कृति तथा व्यापार का यह मुख्य केन्द्र था। अंटायोकस के पश्चात् यह परगामेनियन राज्य के अन्तर्गत आ गया था। इसके बाद यह रोम तथा मिथ्रीडेटिस के अधिकार में था। तीसरी शताब्दी से इसका पतन आरम्भ हो गया था।