पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२९

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बहुत से पहाडी है, जहाँ आबादी बहुत कम है। जिलेका मुख्य स्थान आकियाव नगर है, आबदी अधिकतर बौदध (२५००००) और मुसल्मानों (१५५२००) की है। समस्त प्रान्तमे जितने मुसलमान है उनके आधे केवल इसी एक जिले में है।

आधेसे ज्यादा लोग आराकानी भाषा बोलते हैं और लगाभग १३ लोग बंगाली बोलते हैं। खेती- यहां की जमीन बामलूमिश्रित और नम है। इसमें पैदावार अच्छी होती है वर्षा भी अधिक होती है। चौरस भागमें धान और दूसरी जगहो में फल इत्यादी पैदा होते हैं। पहाड पर मामूली पैदावार होती हैं। जिस ज़मीन पर बरसात का जमा हुआ पानी बहता है वहां अधिक जुताई की आवश्यक्ता नहीं पडती। वर्षा अधिक होने के कारण कुएँ के पानी की बिलकुल आवश्यकता नहीं रहती। इस जिले में धान के पौधे एक जगह से उखाडकर दूसरी जगह लगाने का रवाज नहीं है। सिर्फ गीली जमीन में इधर उधर धान के बीज छींट देते हैं। एक तो यहां के कृषक आलसी होते हैं। दूसरे यहां के पशु रोगी होते हैं। इन कारणों से खेती की अच्छी उन्न्ति नहीं है। उठौआ खेती करने के कारण यहां के बडे-बडे जंगल नष्ट हो गये हैं। स०१६०३-४ में कुल एक हज़ार एकड जमीन में खेती होती थी। जिसमें ६३१ एकड जमीन में केवल धान पैदा होता था।

अन्य उपज-तंबाकू, ऊख, मिरचा राई इत्यादी हैं। १६०३-४ से कृषि-क्षेत्र उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। चटगांवके बहुतसे लोग यहां आकर बस गये हैं, और् दिन-ब-दिन बसते जा रहे हैं। उनमें बहुतसे तो ज़मीनके मालिक बन बैठे हैं। यहांके लोग अधिकतर भैंसे पालते हैं; भेड़ कोई नही पालता।

खनिज पदार्थ- अभी इसकी अधिक खोज नहीं हुई है। पत्थरका कोयला रद्दी मेलका होनेके कारण उसकी खुदाई नही की जाती। कहा जाता है कि यहाँ सोने चाँदीकी खाने होंगी। परन्तु अभी तक पता नहीं लग सका है। मिट्टीके तेलके कुओं का पता ३० वर्ष पहले लगा था। उनसे अति वर्ष ५०,००० गैलन तेल बाहर निकाला जाता है। यह तेल आस पास बेचा जाता है। कुएँ ३०० फुटसे ७०० फुट तक गहरे होते हैं।

जंगल-सागवानके जंगल बहुत कम हैं। सन १६०३-४ में जंगलकी कुल आमदनी ५५०० रु० हुई थी।

व्यापार- यहां करघेपर सूती और रेशमी कपडे बुने जाते हैं। इसके आलावा सोने चाँदीके काम,बढईगीरीका काम, कुम्हारका काम तथा सुनारीका काम होता है। आराकानी स्त्रीयाँ बुनाईका काम करती है। सिर्फ धान और चावल दोही पदार्थोंका व्यवसाय होता है। अकियाव के बाहर रास्ते बिल्कुल नहीमं हैं। अतः जलपथ से ही लोग व्यापार करते हैं। अकियाव बन्दर में बहुत जगहोंके सटीमर ठहरते हैं। १=४२ ई० में इस बन्दरगाहमें दीप-गृह बनाया गया था। इस जिलेके चार विभाग और अंतगीत विभाग हैं।

विभाग-अकियाव, मिन्विवया, कियाक्ता, वुथिडाँग, टाऊनशिप्सके नाम ऊपरके कोप्टमें दिये गये हैं। हराएक विभागका अधिकारी एक्सट्रा आसिस्टेन्ट-कमिश्नर होता है। आराकान का कमिश्नर सेसनजजका काम करता है।

मालगुज़ारी- १-३२ ई० में कृषिसे २॥ लाख थी। सं० १=३७ में जंगली माल भोपडिया नाव. कारीगर (हाथों से काम करने वाले) आदि पर जो कर थे उठा लिये। १=६४.६५ ई० में मछ्ली पकडने वालों पर कर लगाया गया। १=६६.६७ ई० में कुल आमदनी पांनच लाख थी। १=७६-५० ई० में कानून बन जानेके कारण आमदनी ७७ लाख हुई फिर १८८५-८८ ई० में जाँच होने पर आय ८३ लाख हुई और १६०२-३ ई० में १२ लाख हो गई। आमदनी का खाका (अंक हज़ार के हैं) १५५०-५१-१५६०-६१-१६००-१-१६०३-४ ज़मीन से ७०२-६५६-११५५-१४२० कुल आमदानी २३३६-२६०२-२६६७-३०६७ जिले की जनसंख्या में पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या कम है। केवल आकियावमें टीका लगवाने का कानून आनिवार्य है। (इं० ग० भाग ५) आकियाव (विभाग) - लोअर वर्मा। यह आकियाव जिलेका एक विभाग है। आकियावके अंतर्गत विभाग-उ० अ० २०-६ से २०-१६, पू० रे० ६२-४५ से ६२-५६। इसके अन्तर्गत विभाग में एक गाँव और ६० पुरवे हैं। जनसंख्या करीब ४५००० है। १६०३-४ ई० में मालगुज़ारी ५०,००० थी। ३० वर्गमील ज़मीनमें खेती होती है। आकियाव खास- आकियाव शहर उ० अ २०-५ औउर पू० रे० ६२-५५। यह कलदन नदी