पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३०

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के मुहानेके समीप बसा है। जनसंख्या करीब अडतालीस हज़ार है। इसमें करीब आधे बंगाली और शेष आराकानी चीनी और बर्मी हैं।

 इस गाँव के नामकरण का इतिहास ठीक २ मलूम नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि यह आक्य़ात् नाम क अपम्रंश है। अक्यात् बुद्ध के जबडेके मंदिर को कह्ते हैं। इस गाँव का आराकानी नाम सितत्वे है। इसका अर्थ है कि जहाँ से लडाई शुरू हो। इस सम्बन्ध में दन्त-कथाएँ सुनने में नहीं आतीं। अंग्रेज़ी शासन के पह्ले यह मछुओंका एक गाँव था। उस समय आराकान की राजधानी म्योहंग थी। परन्तू अंग्रेज़ी हुकूमत शुरू होते ही यह गाँव आराकान की राजधानी बनाया गया । बान्दरगाहमें बडे बडे जहाज आ जा सकते हैं। वायु अस्वास्थ्यप्रद होनेके कारण यहाँ हैजा वगैरह संकामक रोग पैदा होते हैं। यहाँं धानका व्यापार अधिकतासे होता है और वह प्रायः हिन्दुस्तानियोंके हाथ्में है। १५८४ ई० में यहाँ म्युनिसपैलिटी की स्थापना की गई। यहाँ जेल, सरकारी कचहरियाँ, दवाखाने आदि हैं। 

अकिलीस-पौराणिक युगके युनानी लोगों में यह एक प्रसिदध वीर पुरूष हो गया है। होमरके इलियट़ महाकाव्य में तो इसका स्थान बहुत श्रेष्ठ है। यह तत्कालीन युनानी लोगों में सर्वश्रेष्ठ योध्दा था। इसके पिताका नाम मेलियस और माता का नाम थीटिस था। इसका दादा एइकस (Aecus) जीयसका पुत्र था।अकिलीस की बाल्यावस्थाके संबन्धमें होमर और उसके वादकों लेखकोंने भिन्न-भिन्न कथाएँ लिखी हैं। होमर का कथन है कि उसकी बाल्यावस्थामें उसकी उसकी मांने उसे पिथिआ(Pythia) में पालपोस कर बडा किया। उसे युध्द-कला संगीत-कला, एवं वैद्यक की शिक्षा दी गई। उसके विषयमें होमरके बाद के लेखकोंने एक कथा कही है कि उसकी माँं उसे अमर बनाने के ख्यालसे प्रति-दिन उसके शरीर में अमृत लागाती थी और रातको जलते हुए कोयलों के नीचे रखती थी। एक दिन पेलियसने यह देख लिया और झटपट लडके को आगके नीचे से निकाल लिया। इसपर थिटीस क्रोधित होकर घरसे चली गई। दूसरी कथा यों है कि उसकी मांने पांच एकडकर उसे स्तिक्ष नदीके जलमें डुबो दिया। जिससे तलवोंके सिवाय उसका सारा शरीर अभेद्य हो गया। आगे चलकर उसे वलिष्ठ् बनाने के खयाल से सिंहकी अँतडी भालू तथा सूअर का मांस खिलाया जाता था। उसकी मां को दो वरदान प्राप्त हुए थे पर वे चैक-लिप्क थे। यदि वह अपने पुत्रों को दीर्घायु बनाने की इच्छा करे तो वह दीर्घ्रायु तो अवश्य होगा; किन्तु घरमें बैठकर जीवन व्यतीत करेगा और संसार में उस्की ख्यात्ति न होगि, और अगर उसका अल्पायु होना स्वीकार करे तो वह ट्राय की समरभूमिमें अपनी कीर्तिको फैमलावेगा। उस्ने दूसर वर स्वीकार किया। परन्तू जिस समय द्राय पर चढाई की गई और शहर के चारों तरफ घेरा डाला गया, उस समय उसकी मांने यह सोचकर कि ट्रायकी समरभूमिमें ही अकिलिसकी मृत्यु होगी, उसे स्त्रीके भेषमें सजाकर लैकोमेडीस राजाके दरबारमें भेज दिया। वहाँ राज-कन्यासे उसकी मित्रता हो गई। उसको निआटोलमस नामक पुत्र भी हुआ। आकिलीसके सिवाय ट्राय विजय कर लेना असम्भव समझकर ओडेसिस (युलिसीस) उसका पता लगानेके लिये सौदागरके भेषमें वहाँ गया और उसके सामने रत्न और शस्त्र फैलाकर बैठ गया। स्त्री वेषधारी अकिलीसने शास्त्र उठा लिये, जिससे तुरन्त पता चल गया कि वह पुरूष है। अनन्तर अकिलीस रणमें गया और बडी बहादुरीसे लडते हुए उसने शत्रुके बारह शहर जीत लिये। कुछ समय बाद अगमेन्ननते उसकी दासी वायसीस को जबरदस्ती उससे छीनकर अपने पास रख लिया। इससे क्रोधित हो उसने युध्द से अपना हाथ खींच लिया। उसको युध्द में शामिल करने के लिये घोर प्रयत्न किया गया परन्तू लाभ कुछ भी नहीं हुआ; किन्तु जब अपने परभ मित्रके मारे जाने की खबर लगी तो वह अपने मित्रकी मृत्यु का बदला लेनेके लिये स्वयं युध्द में सम्मिलित हुआ। उसने शत्रु पक्षके मुखिया हेक्दरके ग्बूनसे अपनी प्रतिहिंसाकी आग बुझ ई। हेक्टरकी अन्त्येष्टि किया क वर्णन समाप्त होतेही इलियड काव्य समाप्त हो जाता है। अकिलीस की मृत्यु के सम्बन्धमें इलियड्में कुछ विशेष हाल नहीं दिया है परन्तु एक दूसरी जगह लिम्बा है, कि मिन रवाके मन्दिरमें जिस समय वह प्रायमकी कन्या पोलिज़ेना की मँंगनी कर रहा था, उसी समय पारिसने उसके तलवेपर बाण मारकर उसका वध किया। उसकी मृत्युके संबन्ध्में और भी अनेक कथाएँं हैं। मरनेके बाद देवताओंकी तरह उसकी पूजा सभी जगहोंमें, विशेषतःल्यूक स्पार्टाके एलिस और हेलेस्पांटक सिगी स्थानमें की जाती थी। होमरने सिध्द किया है कि आकिसील एक्