पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३०३

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किसीमें यह तन्तु रूप से होता हैं । अधिकतर यह जमीन के ऊपर रहता हैं परन्तु किसी किसी में वह आधा या पूरा मिठ्ठि के भीतर घूसा रहता हैं ; और किसी किसी में तो यह जनन- कोश में ही उगता हैं । पुरस्ताणु पर संयोगिक इंद्रियाँ निकलती हैं । रेत की डिबिया में ऐंठ्नदार और बाल सहश तन्तुवाले बहुत से रेत-कोश होते हैं । रज को डिबिया में केवल एक रज कोश रह्ता हैं । रज-कोश से सेवार की भांति इसमें से भी कुछ रस बहता हैं इस कारण उस तरफ रेत का आकर्षण होता हैं । इस संयोग से सेवार की भांती अलिंग पीढी उतपन्न होती हैं । ये ही इस भेड की मुख्य वनस्पतियां हैं । इन वर्गों में अलिंग पीढी का अधिक चिकाश हुआ देख पडता हैं । इनकी भीतरी चनावट में अधिक विस्तार हुआ हैं और उनमें पत्ते, तना और जड स्पष्ट दिखायी पडती हैं । बहुतों में, रज का संयोग होने पर कोश अलग होने लगता हैं । इसके पहले दो विभाग होते हैं और फिर इसके आठ विभाग होते हैं । इनके विभागों से कोश का एक छोटा का समूह तैयार होता हैं । इस समूह से तने का अग्र भाग पता, जड और इसी वर्ग में का एक विशेष अवयव पैर उतपन्न होता हैं । यह पैर अर्थात कोशों का एक समूह होता हैं । इसके योग से एक छोटा सा गर्भ पुरस्थाणु पर चिपककर रहता हैं और पुरस्थाणु से कोष के पदार्थ को सोख लेता हैं । जब गर्भ से स्वतः जडे फूटने लगती हैं और पोषक पदार्थ सूखने लगता हैं, तब पैर व्यंग हो जाता हैं और प्रायः पुरस्थाणु भी नष्ट हो जाता हैं । गर्भ से उतपन्न हुई जड शाखा हीन या शाखा-युक्त होती हैं । वह खडी या जमीन पर फैली रहती हैं । उसमें शाखायें लगते हैं । उनका पत्तों से कुछ भी सम्भन्द नहीं रहता । पत्तें सब तरफ या केवल दो तरफ ही रहते हैं । वे चर्तुलाकार होते हैं इनमें से चार सहश तन्तु नहीं होता किन्तु सपुष्प की तरह असली जडे ही रहती हैं । पत्तियाँ भी सपुष्प के सहश रहती हैं । पत्तियाँ तनों और जडे में से शिराओं का समूह स्पष्ट रूप से जाते हुए दिखाई पडता हैं । इसी कारण इस वर्ग को वाहिनीमय अपुष्प वर्ग कहा जाता हैं । जश में जो उपवृद्धि होती हैं वह एक विशिष्ट प्रकार के संवर्घक छोर से होती हैं । किन्तु इस समय जो वनस्पतियां अस्तित्व में हैं उनमें से बहुत थोडी वनस्पतियों में यह दिखाई पडती हैं । वनस्पतिक रीति से जनन-कोश तैयार होते हैं । ये प्रायः पत्तों पर अथवा कहीं कहीं तनों पर पत्तों के अक्षकोण में निकलती हैं । जननकोश के गुच्छों में जननकोश निकलते हैं । इनके आसपास एक मोती त्वचा होती हैं । इसके भीतरी कोश से जननकोश होते हैं । प्रत्येक परिपक्व जनन्कोश में कई एक फीट का एक कवच होता हैं । जननकोश के आसपास जीवनतव का एक लसदार भाग होता हैं । इनमें से उनकों पोषक द्रव्य मिलते हैं । प्रायः सब जीवनकोशों से पुरस्थाणु होता हैं और उसपर स्त्री और पुरुष दोनों ही इंद्रियां निकलती हैं कई एक से ऐसा इतपन्न होता हैं कि, उसपर केवल एक प्रकार की इंद्रियां निकलती हैं । कितने तो इतने आगे बढ जाते हैं कि जननकोश में ही एक स्त्री जननकोश और दूसरा पुरुष जनन्कोश दो अलग जातियां होती हैं । उनसे क्रमशः रज और रेत उतपन्न करनेवाले पुरस्थाणु उतपन्न होते हैं । इस वर्ग के वनस्पतियों का वर्गीकरण आगे दिया जाता हैं । (१) नेच - इनमें तना शाखा-हीन या शाखायुक्त होता हैं । पत्तियां अच्छी तरह पूर्णवस्था को पहुँची रहती हैं । जननकोश का गुच्छे पतियों के पृष्ट भाग मे अथवा अक्षकोण में निकलते हैं । (२) अश्व पुच्छ का तना शाखा रहित या शाखा सहित होता हैं । पत्तियां वर्तुलाकार होती हैं और एक दूसरे से इतनी सटी रहती हैं की उसका एक सघन आवरण हर एक काएड के अग्र भाग के चारों तरफ हो जाता हैं । विशिष्ट पत्तियों के नीचे के हिस्सों में जननकोश के गुच्छे निकलते हैं और उन सब की एक कलगी सिरे पर होती हैं । (३) मुदगलक इनका तना लंबा और द्विपाद शाखाओं का होता हैं । पत्तियों के अक्षरकोण में या उनके डंठल से कठिन कवचों के जनन्कोश के गुच्छे निकलते हैं । नेच - (१) स्थलनेच को केवल नेच भी कहते हैं चाहिनीमय अपुष्प वर्ग में सबसे अधिक वनस्पतियां इस जाति की हैं । इसके दो भाग करते हैं । एक तो वह जिनकी जनन कोश की त्वचा कोशों के अनेक तहों की होती हैं, प्रथम श्रेणी में इस समय बहुत थोडों वनस्पतियां दिखायी पडती हैं; यध्यपि पूर्वकाल में बहुत होती थी । इनमें से कुछु का पुरस्थाणु जमीन में पूर्ण रूप से गडा रहता हैं ।