पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३१

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आदर्श योध्दा , अत्यन्त क्रोधी और उदासीन प्रकृति का मनुष्य था कहीं २ ऐसा चर्णन भी है कि उसका चीरोचित हृदय कोमलतासे पूर्ण था। अकृत ब्रण- ये परशुरामके अत्यन्त प्रेम-भाजन तथा एक बेद वेत्ता ऋषि थे। जिस समय अम्बा को प्रसन्न करनेके लिये परशुराम और भीष्ममें संग्राम हो रहा था, उस समय ये परशुरामके सारथी हुए थे। (वनपर्व अ० ११५ उद्योग पर्व अ० १७६) अकोट ताल्लुका- जिला अकोला। उ० अ० २०५१ से २११६ पू० रे०७६ ४६ से ७७१२। इस ताल्लुकेमें कुल २६४ खालसा और दो जागीरी गाँंव हैं। उत्तए दक्षिणकी लम्बाई लगभग २६ मील और चौडाई २० मील है। उत्तरमें अमरावती जिलेका मेलघाट तल्लुका पश्चिममें बुलडाता जिलेका जलगांव ताल्लुका है। ताल्लुके का प्रदेश प्रायः चौरस है और ज़मीन गहरी तथा काली और मिट्टी उपजाऊ है परन्तू उत्तरका प्रदेश् पहाडी है जिसकी चौडाई लगभग ५ मील है। तल्लूकेमें पानी की कमी है। कुएँका पानी आधिकतर खारा होताअ है। कई जगहों पर दो २ मील दूर तकसे झर्नों का पानी लाना पडता है। इस ताल्लुकेमें सडकोंका अच्छा प्रबन्ध है। अकांट, मुडगाँंव और मालेगाँव में रौनकदार बाजार हैं। इस ताल्लुकेमें मन्दिर बहुत हैं और कई स्थानोँमें वार्षिक मेले लगते हैं। (अकोला डिस्ट्रिक्ट गजेटियर) अकोट-(गाँव) यह ताल्लुके का मुख्य स्थान है और यह अकोलाके उत्तरमें २५ मील पर बसा है। अकोला और अकोट के बीच एक पक्की सडक है। जनसंख्या करीब २६००० है। यहाँ सभी प्रकार के इमारतें हैं, जैसे दवाखाना अंग्रेज़ी और मराठी स्कूल आदि। यहाँ हफते में प्रति बुधवार और रविवार को बाजार लगता है। १५५४ ई० में म्युनिसिपैलिटी की स्थापना हुई। यहाँं कपास का बाजार है। कपास से बिनौले निकाल्नेवाले दस और रूई दबानेवाले चार कारखाने हैं। यहाँ से लगभग ५००,००० रूप्यों का कपास प्रति वर्ष भेजा जाता है। यहाँ लेन देन का व्यापार जोरों पर है और मेलघाटकी इमारती लकडियों का व्यापार होता है। आजकल यहाँ दरियाँ अच्छी बनाई जाती हैं। किसी जमानेमें अकोटकी दरियाँ बहुत मशहूर थीं। जोगवन चिचखेड और कमलापुर, ये तीनों कसबे मिलाकर यह गाँव बना है। आबादी कुछ घनी है। हरएक घरमें एक २ कुँआ है। पुराने जमानेमें यह गाँव मिट्टी की चहार दीवारी से घिरा था और उसमें जगह २ छः दरवाजे बने थे, किन्तु इस समय उसका नामोनिशान भी नहीं है। जिस स्थान पर आजकल यह तहसील है वह पेह्ले किले के नाम से पुकारा जाता था। यहाँ मुसलमानों की आबादी काफी है। यहाँ के बडे २ कारखानों की इमारतें और उनके ऊपर लकडियों में खुदे हुए नक्काशीके काम तथा दिवाकर भाईका दीवानखाना देखने योग्य है। सरदारसिंह और फरनवीस की हवेलीयाँ भी प्रसिध्द हैं। फरनवीस की हवेलीमें मज़बूत तहखाने हैं। कह्ते हैं कि सरदेशमुखके घर से लेकर वाग तक एक सुरंग है। गाँवके पास अकोलाके रास्ते पर एक और "एकगाडा नारायण" की समाधि है, जिसे हिन्दु मुसलमान दोनों पूज्य मानते हैं दूसरी तरफ मीरजाफर करोडा की कब्र है। दोनों इमारतों पर फारसी शिलालिपियाँ हैं। मीरजाफरके वंशजोंके अधिकारमें जो ज़मीन है वह उन्हें इनाममें मीली थी। इसलिये वहाँ प्रतिवर्ष उत्सव मनाया जाता है। पास ही में गैबीपीर हैं। लोगों का विश्वास है, कि उक्त गैबीपीरके यहाँ जानेसे जूडी बुखार अच्छा हो जाता है। यहाँ हिन्दुओंके बहुतसे देवालय हैं, किन्तु उनमें कोई विशेष वर्णन योग्य नहीं हैं। नरसिंह बाबाका मन्दिर महत्वपूर्ण और सबसे उत्तम है। नंदीबाग, बालाजी और केशवराज के मन्दिर भी साधारणतः अच्छे है। उक्त बाबा नरसिंह एक मुसलमान फकीर के शिष्य थे। १५५७ ई० में इनकी मृत्यु हुई। प्रतिवर्ष कार्तिक मासमें इनके मन्दिरमें उत्सव मनाया जाता है जिसमें प्रायः बीस पच्चीस हज़ार मनुष्य एकट्ठा होते हैं। जनता द्वारा करीब १२० एकड ज़मीन देवालयको दान दी गई है। नरसिंह बाबाके जीवन पर लोगों की बडी श्रध्दा है। (अकोला डिस्ट्रिक्ट गजेटियर)। अकोला-जिला-बरार प्रान्तका एक जिला उ० श्र० २० १७ से २११६ और पू० दे० ७६ २४ से ७७२७ है। इसके उत्तरमें मेलघाट पहाड , पूर्वमें दर्यापुर और मूर्तजापूर ताल्लुका, दक्षिण में मंगरूल वाशिम और मेह्कर ताल्लुका पश्चिममें चिखली और मलकापुर ताल्लुका है। यह चौरस प्रदेश है। इसमें पूर्णा नदी बह्ती है। यहांकी जमीन काली और उपजाऊ है। यह जिला पाइन घाटकी तराईके बीचमें बसा है। यहाँ कालबीट (एक प्रकारका हिरन) सूश्रर। नील-गाय, चीते