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शाब्द भी है। ये अप्सरा यें गान-विधा में कुशल तथा देवताओं के उपभोग के लिये हैं। इनका कोई स्थायी पति नहीं होता।

अग्वेद में इनका वर्णन् मिलता है। उस में इन्हें'हँसती हुई अपने जार के पास जाने वाली' बताया है|अथर्व बेद में इनका विशेष वर्णन मिलता है। सायन ने अपने भाष्य में इन्हें 'जल में विहार करने वाली'लिखा हैं। ये काम उत्पन्न करके दूसरों को मोहित करने वाली होती हैं(अ० ६;१३,१)। ये नृत्य करने वाली होती हैं(अ० ४; ३७,७) ऋग्वेद में जिस एक अप्सरा का नाम मिलता है वह 'उर्वशी' है। दसवें मणडल में (१०.६५ १०.१७) में पुरुरवा तथा उर्वशी का प्रेम प्रेलाप दिया हुआ है।

महाभारत में भी इनका उल्लेख अनेक स्थानों में आता है। एक जगह मिलता है कि देवर्षि कश्यप द्वारा प्राधा को रम्भा नामक अत्सरा उत्पन्न हुई। महाभारत तथा अन्य पुरागों में इनका इन्द्रसभा में नाचते गाते हुए तथा उत्कृष्ट ऋषि मुनीयों की तपस्या भंग करने के लिये प्रयत्न करते हुए, उल्लेख मिलता हैं। अप्सराओंके दो भेद हैं-(१)दैविक तथा(२) लौकिक। एक स्थान में उल्लेख मिलता है कि दैविक में १० तथा लौकिक में ३४ अप्सरायें हैं। उर्वशी,घृताची,रम्भा, तिलोत्तमा तथा मेंनका इनमें मुख्य है और इन्हों का उल्लेख स्थान स्थान पर आता है। अत: इन्हीं का उल्लेख नीचे दिया भी जाता है।

एक बार इंद्र सभा में नारद ने पुरूरवा के रूप यौवन का ऐसा उत्कृष्ट वर्णन किया कि उसे सुनकर उर्वशी उसपर मोहित हो गई, और पुरूरवा के साथ ही रहने लगी। इंद्र इसके वियोग से अति विह्वल हो उठा। अत: गंधवौं की सहायता से कपट करके उर्वशी को फिर इंद्र सभा में बुलवा लिया। इस कथा का विशेष वर्णन बडे सुंदर रूप से विक्रमोर्वशी नामक कालिदास कृत नाटक में दिया गया है। उर्वशी को ही मित्रावरूण द्वारा वसिष्ठ उत्पन्न हुए थे।

एक बार भारद्वाज ऋषि नदी के तट पर स्नानार्थ गए थे। वहाँ पर घृताची के रूपलावराई को देखा,जिससे वह कामातुर हो उठे। वहीं पर इनका वीर्य स्खलित हो गया। इन्होंने उसे दोने में रोप लिया। आगे चलकर उसी से द्रोणाचार्य की उत्पत्ति हुई।

जिस समय समुद्र मथा गया उस समय उस में से चौदह रत्न प्राप्त हुए। उन्हीं में से रंभा नाम की एक अप्सरा भी थी। यह भी बडी सुंदर थी। इंद्र ने इसे विश्वामित्र की तपश्चर्या भंग करने के लिए भेजा था। इस पर विश्वामित्र ने इसे शाप दे दिया था कि वह एक सहस्र वर्ष पर्यंन्त पत्थर की शिला होकर रहे। रामायण में इसके सम्बन्ध में मिलता है कि एक बार कैलास पर्वत पर विचरण करते हुए रावण से इसकी भेंट हो गई और वह इस पर मोहित हो गया। यधपि उसने अनेक प्रार्थना की कि वह उसके भाई कुबेर के पुत्र नलकूबर की पत्नी है, अत: उसे वर्ज्य है, किंतु उसने इसके साथ बलात्कार कर ही डाला।

शुम्भ निशुम्भ नामक असुरों द्वारा इहलोक तथा देवलोक को अनेक कष्ट पहुँचने लग। तब इसका उपाय पूछने ब्रह्मदेव के पास गये। तब ब्रह्म देव ने विश्वकर्मा को अनेक रत्नों के अंश लेकर एक असाधारण सुंदरी बनाने की आग्न्य दी, और उसने तिलोत्तमा नामक अप्सरा बनाई। ब्रह्मा ने इसे उन्हीं असुरों के पास भेजा। इसे देख कर दोनों ही अत्यंत मोहित हो गए और इसे अपनी अपनी स्त्री बनाने के इच्छुक हुए। दोनों में घोर युद्ध हुआ और आपस ही में लड कर मर गए।

पुत्र प्राप्ति के लिए पांचाल देश के राजा एक बार घोर तप कर रहे थे। जिस जंगल में वह तप कर रहे थे। जिस जंगल में वह तप कर रहे थे वहीं पर सब शृगारों से युक्त मेंनका पहुँची। वे उसके रूप लावण्य पर मुग्ध हो उठे, और उनका वीर्य स्खलित हो गया। इससे वे अत्यंत लज्जित हो उठे और उसे पैरों के नीचे दबा दिया, किंतु उसी से इन्हें द्रुपद नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। यही द्रौपदी के पिता थे। एक बार विश्वामित्र घोर तपस्या कर रहे थे। उन्हें तप करते देखकर इंद्र को अपने पदच्युत होने की आशंका होने लगी। अत: इंद्र ने उनका तप नाश करने के लिए मेनका को भेजा। मेनका को विश्वामित्र के क्रोध का भय था, अत: अपनी सहायता के लिए कामदेव को भी साथ में भेजने की इंद्र से प्रार्थना की। अत: इन दोनों ने जाकर उन्हें कामविह्वल कर डाला जिससे उनका तप नष्ट हुआ। मेनका को विश्वामित्र ही द्वारा शकुन्तला उत्पन्न हुई थी।

स्कन्द्पुराण में अप्सरा कुएड का उल्लेख मिलता है। ब्रम्हदेव ने सब देवताओं के थोडे थोडे उत्त्मोत्त्म अंश लेकर एक अप्सरा का निर्मण किया थ। जब वह कैलास पर्वत पर गई तो उसे देख कर शंकर भी मोहित हो गये। किन्तु समीप हो पार्वती थीं, जिसके भय से वह उसे खुल कर देख नहीं सकते थे। जब वह शंकर की प्रद्क्षिण करने लगी तो शंकर ने उसे निरन्तर अपने