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दृष्टिकोण में रखने के लिये चारों और चार मुख बना लिये। नारद ने इस भेद को पार्वती से कह दिया, जिससे उसने क्रुध्द होकर उनकी सब आँखों को बन्द कर दिया। इस से संसार में हाहाकार मच उठा। नारद ने पार्वती से प्रार्थना की कि शिव की आँखें खोल दें, किन्तु पार्वती ने इस पर ध्यान न दिया, तब शिव ने ललाट में तीसरा नेत्र उत्पन्न किया। इस पर पार्वती ने उस अप्सरा को शाप दिया कि वह कुरूप हो जावे। किंतु ब्रह्मा ने उसे अप्सरकुण्ड में स्नान करने का आदेश दिया जिससे वह फिर अपने पूर्व रूप को प्राप्त हो गई।

एक समय नरनारायण ऋषि बद्रिकाश्रम में कठोर तप कर रहे थे। उनके तप में विघ्न डालने के लिए इंद्र ने अनेक अप्सराओं को भेजा। नरनारायण ने इनका आगमन सुन आम्रच्यूत से एक अलौकिक अप्सरा तैय्यार करी जो इन अप्सराओं से बहुत अधिक सुन्दर थी। इस पर वे लज्जित होकर इन्द्र के पास लौट गई और सब समाचार कह सुनाया। उस ऋषि -निर्माणित अप्सरा को इंद्र ने अपने पास लाकर रख लिया। इसी का नाम उर्वशी हुआ।(अवंती ख्ण्ड अध्याय=)

इस भाँति देश के भिन्न भिन्न प्रान्तों में भिन्न भिन्न कल्पनाएँ देख पडती है। ऐसी कल्पना भी है कि समय का प्रभाव इनके रूप यौवन पर कुछ भी नहीं होता। ये सदा ही तरुणी तथा लावण्य मयी बनी रहती है। इनमें भी भोग विलास की लिप्सा होती है। क्रोध और हर्ष का समावेश होता है। क्रुद्ध होने पर शाप देने की शक्ति भी इनमें होती है। ये सर्वगामिनी होने पर भी अपवित्र नहीं होती। बहुधा इनके पति गंधर्व भी हुआ करते है। महाभारत में कथा मिलती है कि जब इन्द्र लोक में अस्त्र विधा के हेतु अर्जुन आये हुये थे और वहाँ रह रहे थे तो उनके रूप पर उर्वशी मोहित हो गई थी। उसने अर्जुन से अपनी काम तृप्ति के लिए अनेक प्रार्थनायें कीं किन्तु अर्जुन सहमत नहीं हुआ क्योंकि वह उसे अपने पूर्वजों द्वारा भोगी जाने के कारण माता रूप में देखता था, इस पर उसने क्रुध्द होकर अर्जुन को शाप दिया था कि वह नपुं सकत्व को प्राप्त हो। अज्ञातवास में इसी शाप के कारण अर्जुन को बडी सहायता मिली।

भारत के अनेक प्रांतों में आज भी अनेक ऐसी ही धारणाएयें चली आती हैं। गावों में परियों, वनदेवियों इत्यादि की अनेक कथायें प्रचलित हैं। नाग कन्याओं के समान जल में भी ऐसे ही अप्सराओं के रहने की धारणा अभी तक प्रचलित है। पूर्वकाल में तो ऐसी अनेक कथायें मिलती है। दूसरी बार पुरूरवाका संयोग उर्वशी से जल विहार करती हुई ही हुआ था। ऐसे ही महाभारत में गन्धर्वराज चित्रांङद का उल्लेख जल में विहार करते हुए मिलता है। इन्हीं सब कारणों से आज भी गाँव इत्यादि में नदीतट पर कोई बडा पत्थर मिल जाता है तो उसे पूर्वकालीन अप्सरा मानकर उसकी सुन्दर, चुन्दडी तथा चूडियाँ चढाकर पूजा करते है। अनेक ग्रामीण कथाओं में मिलता है कि आकाश में उडने वाली होतीं थीं,समुद्र में रहती थी तथा सर्वत्र जा सकती थीं। बहुधा सुन्दर राजकुमारों इत्यादि को ये चुरा ले जाती थीं। (अधारग्रंथ-वेद,संहिता,ब्राह्मण पुराण, वैदिक माइथोलोजि आफ मैकडानल,हिंदु क्लैसिकल डिक्शनरी बाई डासन, महाभारत इत्यादि)

मुसलमानी कल्पना- इन धर्म में भी इन्हें स्वर्ग में रहने वाली सुंदरियाँ माना है। ये गान विधा में चतुर तथा सदा युवति बनी रहती हैं। मृत्यु के उपरान्त जो धर्मात्मा स्वर्ग में जाते हैं उनके भोग विलास के लिए ये होती हैं। इन्हें ये लोग 'हूर' कहते हैं। इसी से मिलती जुलती इनके यहाँ भी 'परी'इत्यादि को मानते है। इन पारियों का उल्लेख अनेक फारसी पुस्तकों में मिलता है। सहस्र्रजनीचरित्र (अलिफलैला) (Arabian Nights) किस्सा हातिमताई,इत्यादि इनकी घटनाओं से परिपूर्ण हैं।

पाश्चत्य कल्पना-यूनान देश के इतिहास तथा पुराणों में इनका उल्लेख बहुत आता है। पाशात्य कल्पना में विशेषता यह है कि इनका सम्बन्ध प्रकृत्ति से अत्यन्त घनिष्ट रक्खा गया है। इन्हें 'निम्फ'(Nymph) फेयरी (Fairy) इत्यादि नामोंसे सम्बोधित करते हैं। इन में दो जातियाँ मानी हैं-एक तो जलमें रहने वाली और दूसरी स्थ्ल पर विचरण करने वाली। ये वन,पर्वत,घटियों में रह्ती हैं और इन्हीं की ये अधिष्ठत्री समभ्की जाती थी। उसी भाँति जल में रह्ने वाली जलस्वामिनी समभ्की जाती थीं। ये सदा एक सी रहती हैं। वृध्दावस्था तथा रोग इन्हें अत्यन्त दीर्घजीवी मानते हैं। इनकी संख्या लगभग ३००० के हैं। ये असाधारण शक्ति से सम्पन्न होती हैं। इनकी गणना