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उपदेवताओं में होती थी। इनकी पूजा की जाती थी। इनका निरादर करने का साहस कोई नहीं करता था। इन्हें नग्न देखने से ये पीडा पहुँचाती थीं, और देखने वाला उन्मादग्रस्त हो जाता था। ये अदोतीय सुन्दरी, तरुणी तथा फूलों और वल्कलों से विभूषित अथवा एक वस्त्र से अच्छादित् वर्णित की गई हैं। स्थान स्थान पर रहने वाली अप्सराओं का नाम भी उनके निवास स्थान से ही निर्धारित किया जाता था।( आधार ग्रंथ-बमेन्,टाइन-सम फेजेज़ आफ दी कल्ट आफ दी निम्फ। क्लासिकल, डिक्शनरी। रिलीजन एराड एथिकूस। नेचर वरशिप)

अफगानिस्तान- यह मध्य एशिया का एक पहाडी प्रदेश है। यह देश भारत और फरस के मध्य में वसा हुआ है। इसका महत्व रूस और बृटिश भारत के मध्य में स्थित होने के कारण गत शताब्दी से बहुत चढ गया है। यह उ० अ० ३० से ३५ और पू० रे० ६२ से ७० तक में स्थित है। इसका क्षेत्र फल २४\००० वर्गमील है और आधुनिक आबादी ६३=०५०० के लगभग है।

भौगोलिक वर्णन- इस नाम से इस प्रदेश का बहुत पुराना इतिहास नहीं देख पडता। पहले यह छोटे छोटे कई भागों में विभक्त था। आजकल इस नाम से जिस प्रान्त का बोध होता है वह प्राचीन हेरात(Herat), सेसिस्थान,काबुल, कन्दहार,आदि प्रदेशों से बना हुआ है। इस लेख में हज़ारा प्रान्त के पहाडी प्रदेश तो अवश्य सम्मिलित किये गये हैं,किंतु अफ्गान तुर्किस्तान,अफ्गान ,राज्य के अंतर्गत होते हुए भी,इस लेख में सम्मिलित नहीं किया गया है। इस पर स्वाधीन लेख अन्यत्र ही लिखा गया है।

इसके उत्तर में रूसी तुर्किस्तान कह सकते है, यधपि बहुत कुछ उत्तरी सीमा का भाग हिन्दुकुश पर्वत, हेरात तथा मुरगाव नदियों द्वारा घिरा हुआ हैं। इसके पश्चिम में ईरान है और इसकी पश्चिमीय सीमा सेसिस्तान की भील से आरम्भ होती है। इसके पूर्व में सुलेमान पर्वत की श्रेणियाँ सिन्धुनद के तटतक चली आई हैं। इसके दक्षिण में बेलुचिस्तान है। इसकी उपरोक्त सीमा बहुत पुरानी नहीं है। यह १६वीं शताब्दी के अन्तिम २५ वर्षों में ही बनी थी। आजकल जो अफगानिस्तान के नाम से विख्यात है उसका बहुत कुछ ज्ञान द्वितीया अफ्गान युद्ध के बाद ही प्राप्त होता है। १५५४ ई० में रूसो-अफगान कमीशन ने इसकी उत्तरी सरहद निश्चित की थी, और १६०४-१६०५ ई० में इरानीवलूची कमीशन द्वारा इसकी पश्चीमीय सरहद निश्चित हुई।

प्रान्तीय विभाग-यह चार भागों में विभाजित किया गया है:- (१) काबुल अथवा उत्तरीय अफ्गानिस्तान, (२) कंदहार अथवा दक्षिणी अफगानिस्तान (३) हेरात प्रदेश तथा (४) कृलात ए.खिलजई अथवा अफगानी तुर्किस्तान ।

नदी- यहाँ की नदियों में काबुल नदी सबसे मुख्य समझी जाती है। उसके बाद हेलमएडकी गणना की जा सकती है, यधापि विस्तार में यह काबुल से भी बडी है। इसका उद्गम कोह अबाबा के उच्चतम शिखर से होता है,और यह अफगानिस्तान के सबसे अधिक अज्ञात प्रदेश में होकर बहती है। इस प्रदेश में 'हज़ारों' की अधिक बस्ती है। अन्य मुख्य नदी हरिरुद है जो हेरात प्रदेश में होकर बहती है। लोरा,आक्सस तथा गोमल यहाँ की अन्य उपयोगी और मुख्य नदियाँ हैं। कुछ प्रदेश ऐसे है जहाँ बाँघों तथा नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। इन नदियों देश की पैदावार में बडी सहायता मिलती है।

पर्वत-यह देश अनेक पवत्तौंसे परिपुर्ण है। हिन्दुकुश यहाँ का सबसे मुख्य पर्वत है जो देश के अधिकांश भागमें फैला हुआ है। कोह अवाबा दूसरा मुख्य पर्वत है। फीरोंज पठार यहाँ का विख्यात है। सफेद कोहकी सबसे ऊँची चोटी शकरम लगभग १५६०० फीट ऊँची है। इस पर्वत पर जङल पाये जाते है। यह समपूर्ण देश पहाडी तथा पथरीला है।

हस्ते तथा दरें-अफगानिस्तान से भारत में आनेके लिये पहाडों में अनेक मुख्य दरें हैं। खैबर,कुर्रम,टोची इनमें से प्रधान हैं काबुल और जलालाबाद के बोच में दो रास्ते हैं। लाराबन्द दर्रा तथा काबुल दर्रा। काबुल और पेशावर के बीच में खैबर दर्रा है। बोलन दर्रे से अफगानिस्तान और भारत का मुख्य व्यापार होता है। इन दरौं का ऐतिहासिक महत्व बहुत कुछ है। भारत का इतिहास आज बिल्कुल ही भिन्न होता यदि ये दरों न होते। आजकल भी इन दरौं का राजनैतिक महत्व कम नहीं है। व्यापार भी इन्हीं दरौं द्वारा होता है।

धरातल- सम्भव है कि सीतोपल (कटेसियस) काल में जब भारत वर्ष और दक्षिण अफ्रीका स्थल द्वारा एक ही में मिला हुआ था,उस समय सपूर्ण अफगानिस्तान चाहे जल में डुबा हुआ न हो किन्तु कुछ भाग तो अवश्य ही जलमें था। सीतोपल