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कालके अन्तिम दिवसमे सृष्टिमें अनेक उत्कृष्ट परिवर्तन हुए। ऐसा अनुमान है कि उसी समय हिमालय पर्वत ऊपर उठ आया। अफगानिस्तान का तो कुछ भाग तृतीय कालके बीतने पर समुद्र के ऊपर आया था।

पैदावार यधपि यहाँ खनिज पदार्थ बहुत है किन्तु उनका उपयोग अभीतक बहुत कम हुआ है। सोना यहाँ बहुत कम पाया जाता है।हिंदू कूश के पञ्त्रशीर की धाटीयोमें चाँदी की कुछु खानो श्रवश्य है।उत्तर पश्र्विममें बाजौर प्रान्त में पायाजाता है। गोमल श्रोर कुर्रम के समीप इसकी बहुताय है।हजारा श्रौर हेरातमें गन्धक पायाजाता है।शिनवारी प्रान्तमें लेड मिलता है।गोमल ओर कुर्रमके बीचके प्रदेश जुरमतटमें कोयला मिल जाता है।बहुधा इन सबकी खानें यों हो पडी हुई है।पर्वत-प्रधान देश होनेसे यहाँ की कृषिमें अभी तक श्रधिक उन्न्ती नहीं देख पडती। भारत के सामान ही यहाँ भी दो फसलें होती है। एक तो शिशिर में बोई जाती है ओर गरमी में काटी जाती है।इस फसलमें अधिकतर गेहूँ जौ इत्यादि होते है।दुसरी वसन्तमें बोई जाती है। और जाडे के आरम्भ में काटी जाती है। इसमें चाँवल ,चुकन्दर,तम्बाकू,फली इत्यादि होती है।

      सफेद कोह पर भी जडुल है। ६००० फीटसे लेकर १०००० फिट की ऊँचाई तक केवल सेवार इत्यादि देख पद्ती है। ३००० फीट की ऊँचाई तक जैतून के वृक्ष बहुतयतसे पाये जाते हैं। शाहबलूत..फर,, यू,, सिडर इत्यदि के पेड देश भर मे होते हैं। यह देश फालों तथा मेवों की तो खान हैं। अखरोट,बादाम,पिस्ता,अप्रिकट,सफ रकन्द,पीच,सेव,नाक,नास्पाती,शफ्ताडू,खुब्बानी,अँगूर तो यहाँं वेहद होते है। यहाँ के निवासी इसका सेवन भो जी खोलकर खूब करते हैं। यहाँ से फल और मेचे अन्य देशो में भी बहुत परिमाण में भेंजे जाते है।

जीवाजन्तु-- जंगली जन्तु यहाँ अधिक नहीं हैं। बन्दर यहाँ कुछ पाये जाते हैं। यूसुफजाई तथा काबुल के उत्तरमे ये अधिक है,किन्तु इनके भेद इत्यादि के विषयमें अधिक ज्ञान नहीं हो सका है। चीता भी कहीं कहीं पाया जाता है। जगली कुत्ते भी देख पड्ते है।भारत के समान लोमडी,नेवले यह्ँ भी होते है। एक तो काले रड्ग का और दूसरे मटमैले रड्ग का भालू यहाँ बहुत होता है। उत्तरीय पूवौ प्रदेशामें हिरन,बारहसिंघे तथा भेडे होतो है। चिम गादड यहाँ बहुत होते है। जंगली गदहे खच्छर तथा दरयाई घोडे भी यहाँ पाये जाते हैं। सर्प बहुघा हरे रबूके तथा डेढ फीट लम्बे देख पड्ते है।ये हानि नहीं पाहुँचाते । हाँ रेगिस्तानी प्रदेशो में काले साँप भी होते है जो अत्यंत विषले होते है। कन्दहार की गौ ये बहुत दूध देने वाली होती है । ऊँट भी यहाँ देख पडते है किन्तु दो कूबड वाले ऊँठ शायद यहाँ के श्रसली नहीं होते। खोरासान, कुर्रम, तुर्कमान के घोडे विख्यात है। ये बडे मजबूत ओर मेहनती होते है,चाहे तेजीमें उतने अच्छे भले ही न हो। बकरे यहाँ बडे बडे तथा सन्दर काले तथा चितकबरे रड्ग के होते हैं। यह्ँ पक्षि होते तो अनेक प्रकार के हैं,और वर्ष के भिन्न भिन्न भागों में भिन्न भिन्न प्रकार के देख पड्ते है। कत्पान हटनने इन पघियों के २२४ भेद बताये है।इनमे से ६५ तो यूरेशिया के मालूम होते है १७ भारतीय ओर १० इन दोनों के वीच के विदित होते है। थोडी सी चिडिया यहाँ की ही है। गरमी के आरम्भ में तो यहाँ भारत तथा अफ्रीका के अनेक पक्षी देख पडते है,ओर जाडेमे यूरे शिया की ओर से बहुतसे आजाते है।

कचामाल-यहाँ उधोग ओर धन्धे बहुत नहीं है,क्योंकि कच्चा माल यहाँ बहुत कम पैदा होता है। काबुल,कन्दहार हेरात,जलालावादमे रेशम पैदा होता है,किन्तु ज्यादातर उनका प्रयोग देश-ही मे हो जाता है। बहुत अच्छे मेल का रेशम पंजाब ओर बम्बाई मे अवश्य भेजा जाता है। यहाँ की दरियाँ ओर कम्बल विख्यात है। ये सुन्दर मजबूत ओर टिकाऊ होते है। ऊँठ भेड तथा बकरों के ऊनका कपडा (Felt) बनाया जाता हे। इन उघोगमे यहाँ वालों ने बडी अच्छी सफलता प्राप्त की है। यहाँ से माला के दाने मक्के तक भेजे जाते है। 

जलवायु-यहाँके भित्र प्रदेशों की जल-वायु में बहुत अन्तर देख पड्ता है,क्योंकि समुद की सतह से हरेक भाग की ऊँचाई नीचाई (Sea level) मे भी बहुत भेद है। कुछ प्रदेश यदि बिल्कुल समतल तथा मैदान है तो कुछ बहुत ऊँचाई पर स्थित है। ५०० फीट की ऊँचाई पर शरद श्रतुमे अत्यन्त शीत पड्ती है। गजनीमें तीन महीने तक बराबर बर्फ पडा करती है, तथा तापमान (Temperature) १०-१५ तक हो जाता है। हजोरा प्रान्त भी अपने जाडे के लिये प्रसिध्द है। काबुल मे उतनी सदीं नहीँ पड्ती।