पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३१९

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जिनसे आपसके भूगडोंका निपटाऱा ये कराते है।जो जातियाँं भली भाँति वस गयी है,उनके गाँव वसे हुए है।यहुतसे नगरोमें भी बसे हुए हैं।खेती बारी और सिपहसालारी ही इनका मुख्य धन्धा है।हरके अपनी अपनी भूमिके खामी है।अफगान जाति सुन्दर सुडौल हषृपुषृ तथ आखेटाप्रिय होती है।इनकारडूरुप साफ होती है,दाढियाँ रख्ते हैं और आगे का वाल मुडाये रहते है,किन्तु पीछे का बढकर कन्धोपर लटकता रहता है।ये हढ कठोर तथा गौरव पूरग होते है।व्यवहारमें ये रुखे विदित होते है।मृत्युसे ये विल्कुल नहीं डरते।ये बडे साहसी तथा धैर्यचानू होने पर शीघ्र ही विचलित हो उठते है।उस समय ये फिर वशमे नहीं आते।अतिथि सस्कारके लिये ये सब कुछ कर सकते है और सहु सकते है।शत्रु भी यदि अतिथि रुपमें आवे तो उसका सत्कार करते है।शररपागत की रज्ञाक्कॅ लिये ये अपनी तथा अपने कुल तक की जान लडा सकते है।छोटो छोटी घातोके लिये हत्या कर डालना इनके लिये मामूली बात है।इनकी दृष्टिमें जिवनका कुछ भी मूल्य नहीं होता।यो तो मित्रता का नाता भी ये खूब निवाहना जानते है,किन्तु किस वातपर ये यिगड उठेगे नहीं कहा जा सकता।

इनकी खियाँ सुन्दर गौरवर्ग की हुष्टृपुष्टृ होती है।इनकी आकुति यहूदी लोगोंसे मिलतो जुलती होती है।बाल्य कालसे यौदननमें पदार्प्ररग करते समय इनका चेहरा गुलावी तथा स्वस्थ्यकर विदित होता है,किन्तु इनके एकान्तवस परदे की प्रथा तथा निरस जिवनके काररजग ये शीघ्र ही रोगी सी देख पडाने लगती है,चेहरा पीलो हो जात है,और आँख घँसी हुई जान पडती है।ये बालों को बीचमें से माग कोढकर दो चोटियों में विभत्क कर लेती है।

ये इस्लाम-धर्मको मानने वाले कोते है,किन्तु धर्मके विषयमें बहुत कम शान इन्हें खयमो पाजिंत हित है।बहुधा वे अपने मुल्लाअओके कथन पर ही अन्धविश्र्वास कर लेते हैं।जादू टॉना शकून तथा ज्योतिष पर इनका श्रटल विश्र्वास होता है।मृतको को ये भी गाड्ते हैं।यघपि ये मूर्ति पूजक नहीं होते किन्तु जियारत और दरगाहे यहाँ कमके कम ९६३ हैं।ये घहुघा कट्टर सुषी जातिके होती है।थोडे बहुत शीया भी देख पडते है।सुत्री तथा शियों में सदा चैमनस्य बना रहता है।अन्य धमविलम्बियो से बिना कारर्ग ये छेड्छाड नहीं करते।

टून लोगोमें अनेक विबाह की प्रथा है।प्र्त्येक मनुध्य चार तक बिवाह कर सकता है।इन मलोगोमें खियोके खरीदने की भी प्रधा थी।इस्न रीतिका यह प्रभाव पडा कि खियाँ भी अपने पति की ज्ंगम सम्पतिके स्नभ्पतिके स्नमभ्की जाने लगी थीं।पुरुष इच्छा होने पर बिना किसी कारगक्रे भी अपनी पलिको तिलाक दे सकता है,किन्तु स्त्री को यह अधिलकार नहीं है।दह केवल काजो से आशा पाने पर ही ऐसा कर सकती है।विघवा-घियाह प्रचलित है।विघवा सघसे पहले अपने पतिके भाईसे विवाह कर सकती है।उसके रहते हुए अथवा विना उसकी अनुमतिके वह दूसरे दसे विवाह नहीं कर सकती।घिवासह कर लेने पर विघचाका अपने पतिकी सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाता।विघवा किसी घ्यत्कि-विशेषसे ही विवाह क्ररनेके लिये बाघ्य नहीं की जाती उसे पूर्ण खतन्त्रत्क रहती है कि जिस पुरुषसे उसकी इच्छा हो विवाह करे।बहुत सी ऐसी विधवायें जिन्हें सम्मान होती है।फिर विवह करना पसन्द नहीं करतीं।ऐसी विघवा अधिक आदर और सनम्मान की हष्टि से देखी जाती हैं।

बिल्कुल ठीक ठीक तो सम्पूजर्ग देशके लिये विवाह की कोई खास अवस्था कह देना कठिन है किन्तु बहुधा तथा साघारण परिरस्थितमें लड्कों की विवाहावस्था ९० वर्ष और कन्याअओं की ९५,९६ वर्ष होती है।जो निर्घन हैं,उअनका विवाह अधिक अवस्थामें भी बडी कठिनतासे हो पाता है।इसी भाँती घिशोष परिस्थितियोमें पड जानेके कारग २५,३० वर्ष तककी कुमारी(बेगम)देखी जाती हैं।बहुधा ऐसो भी देख गया है कि सम्पत्र कुलके लड्के तथा लड्कियों का विवह बहुत छोटी ही अवस्थामें जाता हैं।९२ वर्ष की कन्यायें धनी कुलोँमें अनेक विवहित मिलेगें।अफगनिस्तानके प्रश्रिमीय प्रान्तोँएं तो ऐसी पथा देख पड्ती है कि जब तक दाढी नहीं करते ।गिलको लोग ति और अधिक अव्स्थामें विवाह करते हैं।यों तो बहुधा इन लोगों के सस्बन्ध अपनी जातिमें हीं करना अच्छा समभ्कते है,किन्तु परजाति अथवा परदेशोमें भी विवाह सम्बन्ध स्थापित करनेमें कोई श्राड-