पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३२

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इत्यादि जानवर पाये जाते हैं। यहाँ खूब गरमी पडती है;किन्तु मेलघाटके नरनाला किले पर गर्मी कुछ कम रह्ती है। वर्षा लगभग ३४ इञ्च् होती है। जब कभी पानी कम बरसता है तब पशुओंकी दशा शोचनीय हो जाती है और बहुत से कालके आस बन जाते हैं। अकोला कभी स्वतन्त्र राज्य नहीं था, इसलिये उसका स्वतंत्र इतिहास नहीं है। इस भागमें खढगाँव और बालापुरकी लडाइयाँ तथा नरनाला केलेके घेरे प्रसिध्द हैं। अकबरके समयमें यह जिला नरनाला सरकारके अन्तर्गत एक परगना था। १८५१ ई० तक (जिस साल निजामने बरार को अंग्रेजोंके हाथ सौंप दिया) निजामकी करवसूलीकी प्रथासे बहुतसे बखेडे हुआ करते थे। १८४१ ई० में जामोद के तट पर मुगलरावने भोंसलेका झंडा इस पर फहरा दिया। १८४४ ई० में अकोलामें कुछ धार्मिक बातों को लेकर झगडा खडा हो गया; पर इलिचपुरके ब्रिटिश कर्म्चारियों ने उसे शांत कर दिया। १८४६ ई० में श्रप्पा साहब विद्रोही हो गये; मगर ब्रिटिश सरकार ने सेना द्वारा उनका दमन किया। मुगलोंके शासन में श्रथवा उसके पहले यह जिला या परगना कितना लंबा चौडा था यह नहीं कहा जा सकता। शक १६८५ (सन १७४४) के एक पत्र में मौजे धामणगाँव , परगना अकोलासे २५० बैलों पर ३०० मन गल्ला लादकर पूना भेजे जाने का और उस पर चुद्री न लेनेका उल्लेख है। (राजवाडे खं० १०-१६-८) बरार अंग्रेजोंके अधिकारमें आतेही उसके (पूर्व बरार और पश्चिम बरार) दो भाग किये गए। १८६७ ई० से १८७२ तक अकोला पश्चिम बरार का मुख्य स्थान था। प्राचीन पक्षणीय स्थान- नर्नाला और बालापूर के किले, बालापूरकी छत्री और पातुर पहाडके दो बौध्द विहार देखने के योग्य स्थान हैं। इस जिले के गाँवों और देहातोंकी संख्या ६७६ है। जनसंख्या करीब सात लाख अट्ठानकबे हजार है। इस जिलेमें पांच ताल्लुके थे। उनके नाम- अकोला, अकोट, बालापूर, खानगांव और जलगांव। मुख्य गांव- अकोला, खानगांव, अकोट और शेगांव। इस जिलेकी जमीन काली और उपजाऊ है। ४२ जागीरी गांवों को छाडकर समूचे जिलेमें रैयतवारी बन्दोबस्त है। मुख्य पैदावार ज्वार और कपास है। यहाँ उच्च श्रेणीके घोडे और भेड नहीं पाये जाते। १६०३-४ ई० में जिले भरके बगीचोंका क्षेत्रफल सिर्फ २१ वर्ग मील थ। जमीन उपजाऊ होनेके कारण इस जिलेमें अधिक जंगल नहीं है। जहां कहीं सधारण जंगल हैं वहाँ सलैइ, रवैर सागवान बबूर आदिके पेड पाये जाये हैं। यहाँ का मुख्य व्यापार कपास का बाहर भेजना है। इस जिले में जी०आई०पी० और सी०पी० रेलवे हैं। अकाल-नहरोंकी व्यवस्था न होने के कारण कृषकों को बरसातके पानी पर ही निर्भर रहना पडता है। वर्षा न होने से अकाल पडने की सम्भावना सदा बनी रहती है। १८६२, १८६६-६७ और १८६६-१६०० के अकालमें लोगों को भयानक कष्टों का सामना करना पडा था। १६०० ई० में ८६८८० अकाल पीडित मनुष्यों को काम दिया गया और २२६४२ लोगोंको कर्ज दिया गया था। अनुमान है उस साल जिलेके लगभग आधे पशु मृत्युके मुखमें चले गये। शासन-अन्यान्य जिलों की तरह। १६०३-४ ई० में मालगुजारी से २२५४००० और कुल आय ३१३६००० रू० हुई थी। शिक्षाका प्रमाण फी सदी ५२ है। १६०५ ई० में बरारके छ जिलोंके रकबों में रद्दोबदल किया गया। उस समय अमरावती जिलेका मुर्तजापूर ताल्लुका, वाशिम और मंगरूल पहलेके वाशिम जिलेके ताल्लुके अकोला जिलेमें मिलाये गये। वाशिम जिला तोड दिया गया। अकोला जिलेके खांनगांव और जलगांव ताल्लुके बुलडानामें मिला दिये गये। अकोला (आधुनिक) जिलेका क्षेत्र फल ४१११ वर्गमील और जनसंख्या १६८५४४ (१६२१ की मदु मशुमारी) है। अकोला ताल्लुका- (जिला अकोला) उ० श्र० २० ५३ से २० २३ और पु० रे० ७७ २५ से ७६ ५४ तक। उत्तर-दक्षिण लम्बाई ३० मील, पूर्व-पश्चिम चौडाई लगभग २५ मील। क्षेत्रफल ७३६ वर्ग मील है। इस तालुकेमें कुल ३६८ गांव हैं, जिनमें १६ गांव जागीरी हैं। इसके पश्चिममें बालापुर ताल्लुका पूर्वमें मुर्तजापूर ताल्लुका उत्तरमें पूर्णा नदी, आकोट और दरियापूर ताल्लुका, दक्षिणमें मंगरूल और वासिम ताल्लुके हैं। यह ताल्लुका जिलेके मध्यभाग में है। इसकी जमीन उपजाऊ और चौरस है। केवल दक्खिनी हिस्सा पहाडी है। इस ताल्लुकेकी नदियाँ और नाले दक्षिणसे उत्तरकी ओर बहते हैं। यहाँ प्रति गांव पीछे प्रायः ग्यारह कुएँ हैं, फिर भी इस ताल्लुकेमें खास कर उस हिस्से में-जहाँका पानी खारा है पानी की कमी