पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३२०

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नहीं है।ये अन्य जाति की कन्याओं से तो विवाह सहर्ष कर लेते हैं,किन्तु अपनी कन्या अन्य जातिमें देनेसे अपनी मान मर्यादा पर आघात हुआ समभ्कते है।परदेकी प्रथा यहाँ भी फली होने के कारण बहुधा युवक युवति स्वंय अपना विवाह निश्चय नहीं कर पाते।उनके माता पिताका ही ये कर्तव्य होता है कि भली भाँति देख भाल कर अपने पुत्र पुत्रियोंका विवाह करें।कन्याको देखने के लिये किसी स्त्रीको भेज दिया जाता है।जब सब भाँति सन्तोष हो जाता है।इसके बाद दहेज इत्यादिका दोनों और प्रबन्ध हओ जानेपर तथा गृहस्थो सम्हालने का पूरा इन्तजाम हो जानेपर इस्लाम धर्मानुसार एक दिन काजी मुल्लाओंकें सामने धूमधामसे विवाह सम्पन्न हो जाता है।अमीर तो चार चार तक विवाह करनेके बाद भी घर में अनेक रखेलियाँ डाले रहते है,किन्तु सभ्यताके विकासके साथ साथ यह प्रथा भी कम होती जा रही है।

    इन लोगों का रह्न सहन सीधा सादाहोथै।धनके अभावसे इन्हे पर्याप्त अन्न भी प्राप्त नहीं होता।साल का अधिक भाग तो केवल ये फल और मेवों पर ही काट देते है।धनी लोग गेहूं तथा चावल का प्रयोग करते हैं किन्तु निर्धन तो बहुधा कूटू पर ही निर्वाह करते है।ये मांसाहारी होते है और बकरे का मांस अधिक व्ययहार में लाते है।इन लोगों की पोशाक भी सीधी सादी एक सो देख पडती है।चौडा पैजामा,कमीज या कुरता और चोगा पहनते हैं,और सिर पर साफा लपेटे रहते हैं।आजकल कुछ धनी लोग पाश्चात्य पोशाक भी पहनने लगे हैं।इन लोगों के घर अभी भी बहुधा वैसे ही पुराने ढग्ङके कच्चे ईटोंके देख पडते है।ये एक मब्जिलके बने रहते हैं और मकानके चारों ओर चहार दीवारी खीचीं रहती है।ये आखेटप्रिय तो होते ही है साथ ही और भी ताकतके खेलोँमें भाग लेते हैं।ये कुश्ती और दंगलके बडे प्रमी होते है।गाँवमें छोटी बडे सभी गोली खेलते हैं।यहाँ अभी भी बडे बडे नगरों को छोडकर पाश्चात्य खेल टेनिस क्रिकेट इत्यादि का अधिक विकास नहीं देख पडता।शतरज का खेल यहाँ घर घर प्रचलित है।यों तो यहाँ के लोगों का स्वास्थ्य अति उत्त्म होता है,शारिरिक बल भी पर्याप्त होता है,वृद्धत्व को भी शीघ्र ही नहीं प्राप्त होते किन्तु स्वास्थ्या तथा स्वच्छता(Hygine) के नियमोंसे अनभिज्ञ होने के कार्ण तथा सभ्यता,विज्ञान इत्यादिमें बहुत पिछडे होने के कारण अनेक प्रकारके रोग इस देशको सदा ग्रसे रहते हैं।गत बीस वर्षोँमे तीन यार महामारी का भयंकर प्रकोप हो चुपा है।चर्मरोग,आँखों का रोग,गण्डमाला,गरमी इत्यादि यहाँ के मुख्य रोग हैं।
 इस देश की मुख्य भाषा तो पुश्तो ही मालूम पडती है जो कदाचित इण्डो-आर्य्न(Indo Aryan) भाषा की एक शास्त्र होगी किन्तु आज कल फारसीका ही अधिक महत्त्व देख पडता है।विदेशियोंके अतिरिक्त वहाँके भी धनी तथा सभ्य कुलोंमें इसीका अधिक व्यवहार देख पडता है और यही राज-भाषा भी समभ्की जाने लगी है।जलालाबादमें लगमानी भाषा बोली जाती है।सरहदी देशों तथा वेलुचिस्तानमें बलूची भाषा बोलते हैं।पुश्तो हेरात अथवा हेलमएडसे पश्र्विम में नहीं देखा पश्चिय में नहीं देख पडती।
 अफगान देशका प्राचीन काव्य तथा साहित्य पुश्तो भाषामें ही मिलता है।इनमें से कुछ पुस्तके विशेष उल्लेखनीय हैं।पुश्तो भाषाका जो आज कल सबसे पुराना ग्रन्थ मिलता है वह एक इतिहास है।यह (सन१४१३-१४ ईo)यूलुफजई लोगोंके एक सरदार शेखाली द्वारा लिखा हुआ है।इसने अपनी विजय वर्णन किया है।इसके बाद उसी कुलमें काजूखाँ हो गये थे।उन्होंने भी अपना इतिहास लिखा है।अकबरके शासन कालमें भी वायजद अन्सारी उपमान पोरे-रोशन तथा प्रसिध्द अफगानी साधु अखुन्द दर्वेजा ने पुश्तोमें पुस्तके लिखी थीं।
 इनके स्नाहित्यमें कविताका प्रधानत्व देख पडता है।थोडी बहुत उञकोटि की भी कवितायें देख पडती हैं।इनमें अबदुर्रहमान नामक एक बहुत उञकोटि का कवि होगया है।दूसरा प्रसिध्द कवि खुशहामलखाँ था।यह और गंजेब के समय में होगया था।इसके वंश में अनेक अन्य कवि भी हो गये है।राज्यस्ंस्थापक अहमदशाह ने भी अनेक कवितायें लिखी है।इसके अतिरिक्त देशोंय गाने भी बहुत से मिलते है।
 प्रधान जातियों तथा स्थानों का इतिहास-यघपि भारतवर्ष में सभी अफगानीको'पठान'के नामसे सम्बोधित किया जाता है,किन्तु अफगानी को 'पठान'से उन्हें का बोध होता है जो 'पुश्तो'भाषा बोलते हैं।'पठान'का सम्बन्ध 'पक्टियन'शब्दसे बहुत घनिष्ठ मालूम होता है।सम्भव है