पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३२९

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मार बादसे लागु होगा। इसकी अवाधि तीन वर्ष तक रहेगी। यदि समास होनेके ६ मास पहले इन दोनोंमे से कोई भी राज्य इसका तो तोड्ने की सूचना न दे तो ऍसी अबस्थामे यह एक वर्ष तक और लामू रहेगा।

 काबुलमें अँझेजोंका एक राजदूत रहने लग गाया था। उसी भाँति काबुलकी ओरसे भी भारत, इडलैएड तथा अन्य युरोपियन देशोंमें प्रठिनिधि भेजेब गये। 
 इन सबसे निश्रिभ्त होकर १६२७ ई०में अमीर अमानुल्लाखाँने भारत तथा योरपकी यात्रा आरम्भ कर दी। इनके साथ इनका परिवार तथा अनेक राज्य कर्मचारी भी थे। यह खभि-लाषा थी तो इनके पिताकी भी, किन्तु हत्या हो जानेके कारण पूरी न होसकी। इनका भारतमें बडा अच्छा स्वागत किया गाया। यहाँसे यह योरपको गये। लम्दन्मे यह राज-अतिथि होकर रहे थे। इन्होंने योरपके मुख्य सभी स्थानों को भलीभाँति देखा। अन्तमें टर्कीसे सोवियट राज्य तथा ईरान होतेहुए यह अफगानिस्तानको लौट आये। जिन जिन देशोंमें गये थे वहाँके राजाओंसे इन्होंने अनेक समभ्फौते किये थे। वे सब घोषित करदिये गाये तथा १६२७ ई०की गर्मी में यह खदेश लौटे। इनके अनुपस्थितिमें देशमें पुर्णरुपस्नं शान्ति राही। इस यात्रासे अमानुल्ला-खाँके विचारोंमें घोर परिवर्तन होचुका था। योरपको सभ्यता तथा विकासका इनके ह्रदय पर बहुत कुछ प्रभाव पडा था। अपने देशकी हीन अवस्था पर इन्हों बडा दुःख होता था। राजनै-तिक तथा सामाजिक सुधारोंके लिये इन का ह्र्दय व्याकुल था। इन सबमें इनकी रानीको भी अत्यन्त सहानुमुनि थी। अपने देशमें खियों की गिरी हुई हीन आदस्था देखकर उस विदुषीका ह्रदय आर्द्र हो उठता था। सम्भव है यह इतनी शीघ्रतासे इस कार्य्यमें होथ न डाल देते, किन्तु टकीमें कमालपाशा द्धारा जो जो सुघार इन्होंने देखे थे तथा जिस जागृतिका अनुभव उन्होंने वहाँ किया था उसके लिये इनका ह्रदय लालायित हो रहा था। अतः इन्होंने आचार विचारों की त त्रृहुला तोडकर बडी तीव्रतासे परिवर्तन करना आरम्म कर दिया। फरमान पर फरमान जारी होने लगे। बिना देशकी सहानुभूति प्राप्त किये अथवा स्थितिको भलीमाँति समभे ही इनके सुधार जनता पर बलातू लागू किये जाने लगे। नधे नये नियम बनाये जाने लगे। अभाग्यवश 

देश इन सबके लेचे अभी प्रस्तुत नहीं था। जनता इनके विरुद्ध हो उठा। उधर सेनाका वेतन भी धनके अभावके कारण समय पर नहीं दिया आ रहा था।

   इसमें सन्देह नहीं कि ये सब सुधार देशके हितके लिये ही किये जा रहे थे, किन्तु अभी इन सुघारों के लिये उपयुक्त अवसर न होनेके कारण अमीरके मित्रोंने उनको स्थगित करने अथवा शुनैः उनका उपयोग करनेकी अनुमति दी। इतनाही नहीं अमोर १६२३ ई० का भी ध्यान द्रिलाया गया। इसका शतांस भी नहीं किया गया,था किन्तु कितना भयंकर परिणम हुआ था। सब देखते सुनते हुए भी अमीरने इस ओर ध्यन नहीं दिया। वह अपनी ही धुनसे मस्त था। धर्मके नाम पर मुल्ला इत्यादि जो ढोंग तथा अस्याचाय करते थे वे इसे असहा हो उठे थे। अन्तमें चारों ओर फिर घोर अशान्ति मच उठी। इसी वर्ष मई मासमें गिलजाई तथा खोस्तके मंगल जातिमें लाम मुल्लाने विद्रोहको अग्नि भडका दी। मुल्लाओंका इस देशमें बडा प्रभाव है। अशान तथा अन्धकारके गडेमें गिरि हुई जनता धर्मके नाम पर इन मुल्लाओंके लिये सच कुछ अर्पण कर सकती है। इन सुधारोंसे मुल्लाओंकी भ्कूठी सत्ता पर ही सबसे बडा धका लगता। इन्होकी पोल सबसे अधिक खुलती। यही कारण था कि वे सब अमोर के सबसे वडे बडे शत्रु होगये और भी इनता को उसके विरुद्ध उभाडने लगे। अमीर भी इनका मर्दन करनेके लिये तुला बैठाथा। 
    अन्तमें १६२६ ई०में देशमें भयंकर क्रान्ति मव उठी। वक्का-ए-सक्का नामक एक नीच कुलके अफगानीने देशमें विद्रोहकी अग्नि भड का दो। सेनामें एक तो पहले ही से वेतन वाको होनेसे अशान्ति थी, इसके विद्रोहसे वे सब भी बिगड उठे। फल ये हुत्रा कि वक्का-ए-सक्काकी एकत्रित की हुई फौजने सरकारी फौजको कई बार हराया। विद्रोह दबानेके प्रयस्नमें अमीर पूर्ण असफल रहा। संसार के अन्य भागोंमें समाचार तथा संवाद हत्यदि भेजनेके साधनोंका नाशा कर दिया गया था। अन्तमें लाचार होकर अमीर तथा उसके कुलके लोगोंको काबुल भागकर कन्द-हार आना पडा। वहाँसे भी सन्देह लगा हुआ था। अतः अमीर वहाँसे भी केठा होते हुए बम्बई माग कर आया। बम्बईसे चह योरप चल दिया। कुछ मास तक वक्का-ए-स्क्काके ही हाथ में शासनकी वागडोर रही। इस देशद्रोहीके