पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३३०

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पास न तो धन था, न बुद्धि थी न अनुभव था न थे सच्चे साथी ही। इ ससे शासन की बागडोर सम्हल न सको। बारबार आफ्रमण होते रहे। जो भारतीय थे उनके रक्षाके लिये भारतसे अनेक हवाई जहाज भेजे गये। वे सब कुशलतासे देश में लौट आये। इधर नादिरखाँ जो अमीर शान था, बक्का-ए-सक्काके मुकाबले आडटा। कई घार युद्ध हुए । कभी तो नादिरकी विजय देख पडती थी खभी बक्का-ए-सक्काके सिर विजयका सेहरा देख पाडता था। दोंनों हो का भाग्य अनिश्रित सा होरहा था। एक बार तो नादिरखाँने सब श्राशा छोड दी। विजय बक्का-ए-स्क्काके साथ भाग्याने पलटा खाया। सरहदके इस पारसे चजीरोंकी एक फौज नादिरखाँकी सहायताके लिये पहुँच गई। चद्यपि इनका हि प्राप्त करना था, किन्तु नादिरखाँके नाम पर इन्होने काबुल पर समला करके उसे जाते लिया। इस भाँति नादिखाँ विजयी हुआ। कुछ ही समयके बाद अफगानों की ही अनुमतिसे वक्का-ए-सक्काका वघ कर डाला गया। सल समाप्त होते नादिरस्त्राँ सम्पूर्ण श्रफगामिस्तानका पूर्णरुपसे स्वामी यन बैठा। १६ची अक्तुवर १६२६ ई० को इसका राज्यभिषेक हुआ।