पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३५

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अकड़ ज्ञानकोश (अ) २४ अक्कलकोट अक्कड बेबिलोनियाके नीमरोद राज्यके केन्द्र संधि कर ली। उसीमें श्रकरणको बीजापुरके भागमें जो चार शहर थे उनमेसे एक का हित नाम कारिन्देकी जगह दिलानेका लालच दिया गया अक्कड था। इस शहरका ज़िक्र बाइबिलके पूर्व था। १६८६ ई० के मार्च महीनेमें दोनों भाइयोका खंड (Old Testa ment ) में आया है। अनुमान गोलकुण्डाके चिढे हुए मुसलमान सग्दागने खून किया जाता है कि पूर्वके बेबिलोनियन राजा कर डाला और उनके सिर हाथियों के पैर के नीचे 'सारगन' प्रथमकी जो प्रसिद्ध राजधानी अगडे थी कुचलवा दिये। (देखिये मादराणा) इनके समवह और यह अकड दोनों एक ही हैं। वेबोलो- कालीन एक डच लेखक डी० हैयर्टने लिखा हैनिया का अंतिम सेमेटिक राजा नवोनिडस (५५५- अक्करण बड़ा ही धूर्त और कांइया था, पर वह ५४७ ई० पू०) ने सारगन का काल ईस्वी सनके मदनपंतके जैसा बुद्धिमान नहीं था। दोनों भाई ३८०० वर्ष पूर्व दिया है। इतिहास-वेत्ताओका वैष्णव साम्प्रदायके थे। अनुमान है कि शायद यह राजा ईसाके जन्मके ! [अाधार ग्रंथ-जदुनाथ सरकार का “औरंगजेब का ७०० या इससे भी १०० वर्ष पहले रहा होगा। इतिहास चतुर्थ ग्रंश; ग्रांट डफ-प्रथमग्रंथ; भारत इतिहास बहुतसे शिलालेखों में अगडे का जिक्र मिलता है। संशोधक मंडल-वार्षिक इतिवृत्त शाक ११३८ ।। हो सकता है कि अगडे का अकड-आसुरी बेबिलो- अकलक-(श्रकर काढ़ा) गुजरातीमें अकनियन सेमेटिक अपभ्रंश हो। अगडे शब्दका लकगे: अंग्रेजी Tellitarp root; कहते है। अर्थ 'अग्निमुकुट' (अग अग्नि, वडे-मुकुट) है। इसके छोटे छोटे पौधे होते है जिनकी उँचाई इसका लगाव इश्तर ( Ishtar ) की पूजासे होगा लगभग एक हाथ होती है। अग्य और मिश्र क्योकि नवोनिडस के श्राधार से यह प्रतीत होता यह पाया जाता है। इन देशास इसकी जड़े हिन्दुहै कि इश्तरके पश्चात् अनुनित देवताकी उपासना स्तानमै पाती है । इसका फूल पीले गर्दकं फुलकी अगडे में शुरू हुई। इस अनुनित देवताका देवा- तरह होता है। खाद मृलीके जैसा होता है। लय सिप्पुरमें था। अनुमान है कि अगडे-श्रकड | फलको खाँसीमै पानके साथ देते हैं। (१) दाँतमें युफ्रेटीज (फरात) नदीके किनारे और सिप्पुर दर्द हो तो अकरकाढा और कोरंटी के पत्तको एक नगरका अत्यंत प्राचीन भाग होगा। साथ कूटकर दाँतके नीचे दबाना चाहिये । (२) आसुरी बैविलोनियन साहित्यमें अकडकानाम जीभ शुद्ध करने के लिये इसको दाँतके नीचे दवासुमेरुके साथके राजाओंकी विरुदावलीम मिलता कर इसका रस धीरे धीरे निगलना चाहिये । (३) है। इसका अर्थ प्रोफेसर मेककार्डीके मतानुसार सेंदर पेटम चला गया हो तो अकर काढ़ा और यही निकलता है कि अक्कड शहर और प्रान्तपर | बचको पानीमें घिसकर पिलाना चाहिये। कहते उन्हीं राजाओंका राज्य था। है कि अपस्मार रोगमै इसके चूर्णको शहद में [प्रस्तावना खंड विभाग ३, सुमेरु, असुर और बेबि- मिलाकर देना चाहिये और सूघना भी चाहिये। लोनिया शब्द देखिये।] जीभ यदि लड़खड़ाती हो या उच्चारण स्पष्ट न अक्करणा-कुतुबशाहीका एक प्रसिद्ध राजनी होता हो तो इसको मुहमें रखकर लार के साथ तिज्ञ ब्राह्मण । असली नाम अकरस और पिता इसका रस चूसनेसे ये ऐब दूर हो जाते है। का नाम भानजी । उपनाम पिंगली । मराठीऐति- संधिबायपर इसका काढ़ा लाभदायक होता है। हासिकोका कहना है कि इसका असली नाम एक [पदे-वनस्पति गुणादर्श गुप्त-वैद्यक शब्द-सिन्धु; सेननाथ पंत था। जन्म एक दरिद्र,श्राश्वलायनशाखा | श्रायुर्वेदिक सिस्टम श्राफ मेडिमिन ।। के देशस्थ ऋग्वेदी भारद्वाज गोत्री ब्राह्मण कुलमै | अक्कलकोट–बम्बई इलाकेके अक्कलकोट गज्य हुआ था। १६६६ ई० में इसने और इसके भाई का प्रधान नगर। उ० श्र०७३१ और पू० दे० भादराणा ऊर्फ मदन पंतने गोलकुण्डाके सरदार ७६१५। जनसंख्या १९११ मै ४३०३। यह जी० सैय्यद मुस्तफाके यहाँ नौकरी कर ली। १६७३ ई० आई० पी० रेलवेके श्रकलकोट गेड स्टेशनसे सात के लगभग मदनपंत कुतुबशाहका कारिन्दावनाया मील पर है। पहले इसके चागं और बाँध बँधा गया। उसी साल मुहम्मद इब्राहीम प्रधान सेना-हा था। इसके पीछे खाई थी। श्राजकल बाँध पतिके पदसे हटाया गया और उसकी जगह कहीं कहीं टूट गया है और खाई तो प्रायः आधी अक्करणकी नियुक्ति हुई। ग्रांट डफका कथन है भर गई है। यहाँकी मशहूर इमारत पुराना श्रीर कि १६७६ ई० में शिवाजीने मुगलों और बीजापूर नया राजभवन, हाईस्कूल आदि है। राज्यके । वालोको इच्छाके विरुद्ध गोलकुण्डा दरबारसे शस्त्रागारमें शस्त्रोका संग्रह देखने योग्य है । [इग०] की नियुवाजीने मूडा दर