पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३८

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बची हुई थी।प्रथम माधव्रराव पेशवाने हैदर पर जो चदाइया की थीं,उन्में शाह्जी की सेना का भी एक दल रहता था। २८७६ में शाहजी की सेना का देहान्त हो गया। इसके पीछे उसका पुत्र फतहसिंह उर्फ आबा साहब गडी पर बैटा ।शाह्जी को तुलाजी नामक एक शौर्य पुत्र था। उन्में और् फतहसिंहमें लडाई हुई,जिसमें फतहसिंह ने उसे कैद कर लिया परन्तू वह शीघ्रही पेशवाके पास चला गया और उसने अपने भाई के खिलाफ पूना के दरबार में शिकायत की। थोडे ही समय के उपरान्त सदाशिवराव भाऊ और मार्गकेश्वर उदयोग से दोनों भाइयों में मेल हो गया,तुलजाजीने सतारा जिले के खटाव ताल्लुकों के कुला आदि २००रु की आम्दनीवाले गाव लेकर चुप बैट्ना स्वीकार किया।२५०७ में जब अंग्रेजों सताराका राज्य हस्तगत किया,तब ३ जुलाई १५२० ई० को फतहसिंह से संधि कर उन लोगोंने उसकी जमीन उसे वापस दे दी।१५२२ में फतहसिंह मर गये और उनका लदका मालोजी गडी पर बैटा।

 १५२७ ई० में अंग्रेजों ने मरटा राज्यों की एक फेहरिस्त तैयार की थी जिसमें औकल्कोटकी आमादनी निम्न्लिखित थी
 
   अकलकोट परगना                       २,००,०००
   शोंलापुर से आय                        ४,०००
   पूना शहर से चुंगी का हिस्सा              १०,०००
   सतारा प्रान्त के जिलों की चुंगी का हिस्सा    ११,०००
                     टोटल              २,२५,००
  
  सन १५२५ में मालोजी का देहन्त हो गया। उस्का आट वर्श का पुत्र गड्डी पर बैटा।वह ना बालिग था। इसलिये साताराके राजा राज्य प्रबन्द करने लगे।१५२६ में उन्होंने कुछ वियायों में अनुचित परिवर्तन किये।इस्लिये बोरगॉव के सर्देश्मुख शंकर राव के नेत्रत्व में वहाँ की प्रजा ने विद्रोह खडा किया।उसका दमन करने के लिये शोलापूर और अकलकोट से ब्रिटिश सेना भेजी गयी,परन्तू विद्रोहियोंने कुछ परवाह नहीं की।अधिक छान-बीन होने से पत चला की प्रजा का वागी होन नाजायज़ नहीं था। तब सताराके राजा से राज्य प्रभन्द छीन कर जेमसेन नामक रिजेराट को सौंप दिय गया। 
   १५४६ में सतारा के ब्रितिश राज्यों में मिल जाने पर अक्क्लकोट अंग्रेजों के आघीन हुआ।१५५७ ई० में शाहजी की म्रुत्यु के बाद उस्का पुत्र मालाजी गद्दी पर बैटा। १५६६ में मालोजी को प्रबंध के कारण गड्डी से उतार दिया गया।वह १५७० में मर गया।मालोजी का एक लडका था जिसका नाम शहजी था।शहजी की उम्र कम होने से १५६१तक ब्रितिश सरकार ही राज्य की सब व्यवस्था करती रही। पर उसी साल उसने शहजी को सब अधिकार दे दिये।१५६५ में वह निःसंतान मर गये,इस्लिये अंग्रेजों की सलाह से उसकी स्तोत्रों 'पहले शहजी' के वंशज कुल के जागीरदार गए पतके पुत्र फतहसिंह को गोद लिया।उनके बालिग होने तक पहले की तरह व्यवस्ता की गयी।१६१६ में बालिग होने पर अधीकार उन्के हाथ में आ गया। इस राजा से प्रजा बहुत आशा करती थी।पर इलाज के लिये पूना के सासून अस्पतालों में जाने पर वहाँ दवाके बदले विष पेट में चला गया और वहीं उनकी म्रुत्यु हुई।
  अक्कलकोटके गजा  पहले दर्जे के सरदार हैं।उन्हें गोद लेने का अधिकाअर है। सलामीका मान नहीं है। उनको कर नहीं देना पदता,परन्तु १६२० की सन्धी में एक शर्त थी,कि देशी राज्यों को अपने खर्चे से ब्रिटिश घुडसचारों की एक सेना रखनी होगी।१५६५ ई० में सेना रखने के बदले सिर्फ रुपया देने का निश्चय हुआ।तब से वे ब्रितिश सरकार को प्रती वर्ष १४५६२ देते हैं। आजकल फतहसिंह के बाद उनके पुत्र विजयसिंह राज्य के वारिस है। उनकी अवस्ता केवल १३ वर्ष के हूने के कारण उनके बालिग होने तक राज्य की व्यवस्था करने के लिये अंग्रेजोंने अपनी तरफ से एक अफ्सर नियुक्त किया है।
  अकलकोत के स्वमी महाराज-ये विगत शताब्दी के उत्तराधी में हो गया हैं।इस महाराष्ट्रीय साधु पुरुष का कहाँ और कब जन्म हुआ इसका ठीक-ठीक पता नहीं लगता।अक्कलकोत में आकर बसने के पूर्व ये कुछ वर्ष तक 'मँगलचंढ्ं'में थे।सं०१५५७ में स्वमिजी अक्क्लकोट आये।कहा जाता है की हैदराबाद राज्यों के मरीका नगर के मारिक प्रभु के समाधिस्थ होने पर स्वामि महराज प्रसिढ हुए।
 स्वामीजी मरग तक अक्कलकोट में थे।ये बहुत मशहूर हो गये थे।राजा लोग भी बडे ही भक्ति-भावसे अक्कलकोट की यात्रा करने लगे।उनके भक्तों में सब जांति और सब वर्गों के लोग हैं।स्वामीजी की रहन-सहन के बारे में लोगों को आश्छर्य