पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३९

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होता था। परन्तु उन्में पूरी विरक्ति भरी हुई थी। वे कभी भी किसीके कहने पर नहीं चले और ना उन्होंने किसी को ठीक-ठीक जवाब ही दिया।वे जो कुछ भी बोलते थे वह उनके दर्शन को आने वालों के मूक प्रश्नों का ठीक ठीक उत्तर हो जता था।यद्यपि राजा लोग उनके सुख के लिये सब कुछ करने को तैयार थे;परन्तू वे कभी भोग-विलास में नहीं फँसे।

  स्वमीजी के दिखाए हुए चमत्कारों के बारे में अनेक कहानियाँ कही जाती हैं। भावुक लोगों का कथन है की यहाँ के नीम के वृक्ष की कडवी पत्तियों को उन्होंने मीठा कर दिया,जो अभी तक मीठी हैं।चैत वादी १२ शके १५०८ में स्वमीजी परलोक सिधारे।समधी की जगह पर उनका स्मारक बना हुआ है।
  अक्का देवी-कल्याणी के परिश्रम चालुक्य राजघराने के जयसिंह द्वितीय की यह बहिन थीं।इनका उल्लेख बहुत से पुत्रों  और लेखों में मिलता है। उन उम्मेखों से अनुमान किया जाता है की यह सुप्रसिद्ध रमणीय होगी।गुणाद-वेडगी(सद्गुणों की माता) और 'एअक वाक्ये'(एअक वचनी)आदी विशेपण उसके नामके साथ मिलते हैं।लडाइयों में उसका वर्ण्न किया गया है।१०२१ या १०२२ ई० में जयसिंह द्वितीय के मातहत किसु-काड(सप्त्ती) में वह राज्य करती थी।(ई० ऐ'० स० १५ पृ० २७५)जहाँ तक विदित होता है,वह सोमेश्वर प्रथम के समय में भी आधिकारयुक्त थी। क्योंकि १०४७ ई० के एक लेख में इसे हम वेलगाँव जिलेके गोकागे(गोकाक) का घेरा डालकर बैठी हुई पाते हैं(बीजापुर जिले के आरसीवीडी का शिलालेख)१०५० ई० में किसु-काड (सप्तति),तोरगेर(पद)और मालवाडी(एकशतचत्वारिंश्त)आदी स्थनों में उनका राज्य था।१०५३ ई० में किसुकाड(सप्तति) पर उनके आधिपत्यका लेख मिलता है।(आरसी वीडीका दूसरा शिलालेख)और उस लेख से यह भी मालूम होता है की विक्रम पुर उसकी राजधानी थी।१०६६ ई० के एक लेखमें लिखा है कि बन वासी(द्वादशसहस्त्र)और पातु गल(पंचशत) के आधिपति कादम्ब महामणडलेश्वर तोषिय देवकी माताका नाम भी अक्कादेवी था। धरवाड जिले के होत्तुर गाँव के शिलालेख से यह स्पष्त होता है की उसका पती हानगल के कादम्बों में से होगा,परन्तु उसका नाम नहीं मिलता।
    [बम्बई गजे०-दि डिनैस्टेज आफ दी कैनैरीज डिस्द्रिक्टस आफ बांबे स० १ व पृ०४६५]
     
  अक्किवट-बम्बई प्रान्त के बेलगाँव जिलेके माध्य चिकाडीसे नैऋत्य कोणकी और लगभग १२ मील पर यह गाँव वसा हुआ है।१७५७ ई० में तासगाँव के परशुराम भाऊ ने इस गाँव को घेरा था।उस समय गाँव के लडने वाले भइयोंके काम आने तथा आकाल को तीव्र आँच लगने कारण यह गाँव फतह हुआ। १५२७ ई० में कोल्हपुर सरकार ने यह गाँव अंग्रेजों के सुपुर्द किया,क्योंकि इस गाँव में लुटेरों का एक दल रहता था,जो आस-पास के अंग्रेजी देहातों को सदा दुःख देता था।यहाँ का किला सैनिक अच्छा नहीं था।(वेलगाँव ग)
  अक्चा-यह इंगलैंड में मिडलसेक्स का(इलींग पार्लिमेंटरी विभागका)भाग(urban district)है।यह सेराट पाल गिर्जा के परिश्रम नौमील पर है। यहाँकी जनसंख्या करीब ४०००० है। आज-कल आधुनिक लंडन के अगल बगल के भागों के समान है।इसके नामकी उत्पत्ती"ओकताउन" से है। क्योंकी पहले इस भग में ओक वृक्षों का विस्तीर्ण जंगल था।प्राचीन काल से यह जमीन लंडन के विशप के अधिकार में थी ।तीसरे हेनरी का यह निवासस्थान था। 'कामनवेल्थ'के समय यह प्युरोटन लोगों का अड्डा था। फिलिप नाय(म्रुत्यु १६७२),रेक्ट रिचर्ड वक्सर,सर मेथ्यू हेल,(लार्ड चीफ जस्टिस),प्रसिद्ढ उपन्यास-लेखक हेनरी फील्डिग और वनस्पति शास्त्रग्ण जान विंडले-वहाँ के प्रधान निवासियों में से थे। १५ वीं शताब्दी में क्षक्टनके खारे पानीके कुएँ बहुत मशहूर थे।
   अक्टिअम -अकरनेनिया(यूनान) के उत्तर में आर्टा खडी के मुहानेके पास यह पुराना गाँव है। इस भूभागपर अपोलो अक्टिअसका प्रचीन मन्दिर था। उसे आँंगस्टसने बढाया। उसने अक्टिअमकी लडाई के स्मारक में यहाँ पंच नर्षिक खेल शुरू किये। प्रथमतः अक्टिअम कोरिन्थकी ओर था।ऐसा तर्क किया जाता है,