पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/४

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दो शब्द

आजकल ग्यानभन्ङार,कम से कम पुस्त्क भएङारकी वृद्धि इस प्रकार हो रही है कि किसी एक विषयके भी सब ग्रन्थों का कोई पढ़ना चाहे तो समय मिलना असम्म्च ला होगा । प्राचीन समय में जो काम दस बीस सूत्रोँमै होता था उसके लिये अब दस बीस ग्रन्थों की आवश्यगता होती है । कारन इसका यह है कि प्राचीन समय गुरुमुख से शिक्शा प्राप्त करना सभी विघाथियोंका परम उदेदश्य होता थाः,सुत्र केवल सूचकमात्र होते थे । पर अब तो गुरुअओं अर्थात शिक्श्कों की संन्ख्या इत्नी बङ गई है और इतनी दूर दूर फैलती जाती है कि गुरुमुख का दर्शन भी न्हीं हो सकता । इससे पुस्तकोंका निर्माण और प्रकाशन आवश्य्क हो गया है ।

     पर जितनी पुस्त्कें निकलती हैं उन सबका पढ़ना किसीको लिये सम्भव नहीं है। 

जब एक विषयके ग्रनथोंको भी विघालोलुप जिशसु नहीं पङ सकता तब एक फिर नाना विषयके शान्से सर्वादा व्ंचित रहना पङ़ता ही है । इसी आपत्तिको दुर करनेके लिये विश्वकोशों (Encyclopedia) की रचना होने लगे । ह्मारे देशमे भी ब्ंगाली तथा मराठी विश्व्कोश निकले हैं और बङे उपकार हुआ है और हो रहा है ।

    एेसी अवस्थामें हिन्दीभाषा के उपकरार्थ हिन्दी में एक कोश्का निर्माण परम आवश्यक हो गाया है ।

साँचा:Issues

                            निवेदक-
                  गदा्नाथ फा महामहोपाध्याय,
                                  एम० ए० ङी० लिट ।