पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/४५

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- अगस ज्ञानकोप (अ) ३४ अगस्ता बढ़ता है किन्तु साधारणतः १२) से १४) तक | संस्कारमें अधिक भाग मामा अथवा पिता ही होता है। इस जातिमें विधवा-विवाह भी प्रचलित लेता है। गुटिकगेका विशेष हाथ नहीं होता। है, किन्तु विधवाका बिवाह केवल विधुरही से हो ममेरी या फुफेरी बहनसे विवाह हो सकता है। सकता है। यदि स्त्री भ्रष्ट हो जाय तो पति उसे लड़कियोंका विवाह दस वर्षके पश्चात् और तलाक दे सकता है। उसी भाँति पतिकेभ्रष्ट होने पर लडकोंका अठारह वर्षके उपरान्त होता है। पुनस्त्री भी उसे छोड़ सकती है। साधारणतःइस जातिमें विवाह भी इनमें होता है। पंच और सम्बंश्राद्ध करनेकी प्रथा नहीं है। बहुधा इनके धार्मिक धियोंकी सम्मति मिलने पर तलाक दिया जा कृत्य इनके धर्मगुरु जंगमही द्वारा सम्पादित होते सकता है। ये मांसाहारी होते हैं। इनका हैं। कुछ लोग ब्राह्मणोंको भी बुला लेते हैंऔर वे दर्जा किसानोंसे नीचा और अछूतोंसे ऊँचा होता ही उनके पुरोहित होते हैं। इनके गुरू लिंगायत है। ये लोग शिव, केदारलिङ्ग, भवानी, हनुमान जाति के भी होते हैं, जिन्हें समय समय पर ये जी, इत्यादि देवताओंको पूजते हैं। इनके पुनदान दिया करते हैं। इनमें जो धनी तथा उच्च श्रेणी विवाह तथा अन्तिम संस्कार लिंगायत अगसोंके के हैं वे उत्सवोंके अवसर पर लिंगायतोको उत्सव ही समान होते हैं। पूर्वजोक तर्पणम ये लोग के आगे मशाल लेकर चलनेके लिये बुलाते हैं। "महालय' विधिका प्रयोग करते हैं। अतः ऐसे अवसरों पर रोशनी दिखाना इनका काम प्रत्येक गाँवमे इन लोगोंकी एक पंचायत होती हो गया है। जब लड़की ऋतुमति होती है तो है। उसमें एक मुख्य पञ्च तथा दस सभासद बरको खबर देनेके लिये धोबी भेजा जाता है। होते हैं। मुख्य पञ्च सर्व-समिति से चुना जाता अगस जातिके लोग शैव और वैष्णव भी है। मुख्य पञ्च एक अधिकारीकी नियुक्ति करता होते हैं। उनकी पूज्य देवी लक्ष्मी देवी' हैं। है। उसे 'कोलकर' कहते हैं। इसका कार्य इनकी जातिका देवता, 'भूमिदेवरू' (पृथ्वीका सभामें लोगोंको एकत्रित करनेका होता है। ईश्वर ) होता है। गौरी उत्सवके साथ (अर्थात् दोषीको दण्ड मिलता है। दण्डका भाग देवअगस्त-सितम्बरमें) ये इस देवताका उत्सव | ताओंको चढ़ा दिया जाता है और शेषसे पञ्चके मनाते हैं। ये मिट्टीको भी पूजते हैं, और इस सभासदोंकी जेवनार होती है। लिये उसपर वलि चढ़ाते हैं कि जिससे उनके संसस रिपोर्ट १६०१ व ११ तथा ग] वस्त्र भट्रीमें न जले। वक्कालिग तथा कुरुग। अगस्ता-(अगस्त) इस वृक्ष का मगठी इत्यादि श्रेष्ठ जातियोंको मिलानेके लिये खास नाम " हदगा" है । यह वृक्ष बहुत विशाल होता विधियाँ हैं। दक्षिण कनाडाके जिलेमें इनकी है. इसे बाग में लगाते हैं। इसकी दो जातियां मुख्य तीन जातियाँ हैं-(१) कोकणी खिस्ती, है। एक में सफेद और दूसरी में लाल रंग के फूल (२) कनाडी बोलनेवाले धोबी, जिनका सम्बन्ध फलते हैं। इसके पत्ते श्रावेले के पत्तों की तरह मैसूरके अगसोसे मालूम होता है, और (३) होते हैं। इसमें फूल तथा छीमियां लगती है, जो तुलू वोलनेवाले धोबी। ये अपने माताके कुलमें तरकारी के उपयोग में आती हैं। यह पड़ ७८ वारिस होते हैं। वर्ष से अधिक नहीं बचने पाता। इसके पत्ते, अगसों का दूसरा नाम “मडिवाल" है (मड़ी फूल और छीमियां ओपधि के काम में भी श्राती का अर्थ स्वच्छ कपड़ा है), तुल मडिवालोमें है और उसकी तरकागभी होती है। सर्दी, मम्तकसगोत्रमें विवाह हो जाता है। ये उन जातियोंके शूल और चातुर्थिक ज्वर (चौथिया) में अगस्त्य के जो विल्लवा जातिसे श्रेष्ठ हैं, अथवा मुसलमानों | पत्तों का रस नाक में निचोड़ते हैं। श्रधशीशी और ईसाइयोंके कपड़े धोते हैं। ये शादीके (अध-कपारी) पर भी इसका उपयोग करते है। मण्डपके लिये और कफनके लिये कपड़े देते हैं। सिर के जिस भाग में पीड़ा होती है उसके समय समय पर ये मशाल भी दिखाते हैं। ये दूसरी ओर की नासिका में अगस्त्य की पत्तियों भूत-प्रेतोकी पूजा करते हैं और उनके सामने भेट अथवा फूलों का रस निचोड़ा करते हैं। अपस्मार चढ़ाते हैं। बच्चेके जन्मके सातवें दिन धोबिन | में अगस्त्य की पत्तियों का रस गो-मूत्र श्रीर उसके कमरमें करधनी वाँधती है। इनकी रस्मै | कालीमिर्च की बुकनी के साथ मिलाकर देते है। भाटी (ब्राह्मण पुरोहित ) के समान होती है। अगस्त्य रुक्ष, शीतल, मधुर, चात हारक श्रीर किसी किसी गाँव में इनका नायक 'गुटिकर' त्रिदोप-नाशक समझा जाता है । यह वृक्ष खास अथवा 'गुहिनय' नामसे रहता है। विवाह-'. नौर से नहीं लगाया जाता। यह बहुत शीघ्र बढ़ना